पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एके उपाध्याय ने बताया कि सैल्मोनेला कई तरह के खाद्य पदार्थों में पाया जा सकता है। इनमें चिकन, बीफ, पोर्क, अंडे, फल, सब्जियां और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ भी शामिल हैं। लोगों को इससे संक्रमण और गंभीर बीमारी होने की संभावना रहती है। सैल्मोनेला प्रोटियोबैक्टीरिया संघ के गामा प्रोटियोबैक्टीरिया वर्ग के एंटेरो बैक्टीरियेसी कुल का एक वंश है। यह एक गतिशील, अंतरबीजाणु नहीं बनाने वाला छड़ी आकृति का एंटेरो बैक्टीरिया है।इसकी कोशिकाएं 0.7-1.5 माइक्रोमीटर व्यास की होती हैं और कशाभिकाओं से घिरी होती हैं। यह रसायनहारी और विकल्पी अवायुजीव है। नैनोवैक्सीन वह उन्नत टीकाकरण तकनीक है जिसमें एंटीजन, एड्जुवेंट या अनुवांशिक पदार्थ को नैनोकणों की सहायता से शरीर में पहुंचाया जाता है। नैनोकण बहुत छोटे और अपनी विशेष भौतिक-रासायनिक गुणों के कारण एंटीजन की सुरक्षा, नियंत्रित रिलीज, लक्षित डिलीवरी और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ाने में सक्षम होते हैं। पारंपरिक वैक्सीन की तुलना में नैनो वैक्सीन अधिक प्रभावी होती है। यह कोशिकाओं के अंदर पंहुचकर मजबूत कोशिकीय और मौखिक प्रतिरक्षा उत्पन्न करती हैं। इसकी कम खुराक में भी बेहतर प्रतिरक्षा प्राप्त की जा सकती है। नैनोवैक्सीन आधुनिक रोग-नियंत्रण और निवारण की बहुत संभावित तकनीक मानी गई है।
अंतरकोशिकीय रोगजनक है सैल्मोनेला
पंतनगर। सैल्मोनेला एक अंतरकोशिकीय रोगजनक है जो मैक्रोफेज जैसी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के भीतर छिपकर संक्रमण फैलाता है। जिससे पारंपरिक वैक्सीन पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाती। नैनो वैक्सीन के नैनोकण एंटीजन को विघटन से बचाते हैं। उन्हें सीधे लक्षित प्रतिरक्षा कोशिकाओं तक पहुंचाते हैं और शरीर में धीमी गति से रिलीज कर मजबूत प्रतिरक्षा विकसित करते हैं। यह तकनीक कोशिकीय और श्लेष्मिक प्रतिरक्षा को बढ़ाती है। सैल्मोनेला के विरुद्ध प्रभावी नैनोवैक्सीन बनाने में पॉलिमेरिक नैनोकण सबसे अधिक प्रचलित हैं। यह एंटीजन सुरक्षित रखते हुए धीरे-धीरे रिलीज होते हैं। लिपिड-आधारित नैनोकण, जैसे लिपोसोम और लिपिड नैनोपार्टिकल श्लेष्मिक सतहों पर बेहतर अवशोषण और लक्षित डिलीवरी करते हैं।
सैल्मोनेला नैनो वैक्सीन में प्रयुक्त मुख्य एंटीजन
सैल्मोनेला नैनो वैक्सीन बनाने में कई महत्वपूर्ण एंटीजन का उपयोग किया गया है। जो प्रभावी और लक्षित प्रतिरक्षा में सहायक हैं। सैल्मोनेला बाह्य झिल्ली की सतह पर पाए जाते हैं और मजबूत कोशिकीय प्रतिरक्षा सक्रिय करते हैं। फ्लैजेलिन बैक्टीरिया का फ्लैजेलर प्रोटीन है, जो शक्तिशाली इम्यूनोस्टिम्युलेटरी अणु है और रिसेप्टर के माध्यम से तीव्र प्रतिरक्षा उत्पन्न करता है। टप कैप्सुलर एंटीजन विशेष रूप से टाइफी के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रदान करता है। एलपीएस और ओ-एंटीजन बैक्टीरिया की बाहरी झिल्ली के घटक हैं और मजबूत एंटीबॉडी बनाते हैं। इसके अलावा टी3एसएस प्रोटीन, जो बैक्टीरिया की टाइप-3 सिक्रेशन प्रणाली से संबंधित हैं, सैल्मोनेला की रोगजनन क्षमता बढ़ाते हैं।
12 साल तक किया गया शोध कार्य
जीबी पंत कृषि विवि के पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय में 12 साल तक किए गए इस शोध का उद्देश्य सैल्मोनेला के विरुद्ध एक सुरक्षित, प्रभावी और उन्नत नैनो वैक्सीन विकसित करना था। इसमें वैज्ञानिक डाॅ. यशपाल सिंह, डाॅ. अंजनि सक्सेना, राजेश कुमार, डाॅ. अनिल कुमार, डाॅ. अवधेश कुमार, डाॅ. एसपी सिंह, डाॅ. जीके सिंह, डाॅ. मंजुल कांडपाल, डाॅ. अमित कुमार, डाॅ. मीना मृगेश, डाॅ. अरूण कुमार, डाॅ. मनीष वर्मा, डाॅ. एके उपाध्याय, डाॅ. तनुज अंबवानी व ममतेश सक्सेना का विशेष योगदान रहा। कुलपति डाॅ. मनमोहन सिंह चौहान ने इस उपलब्धि के लिए सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
नैनो-वैक्सीन का डिजाइन और निर्माण
पंतनगर। नैनो-वैक्सीन के डिजाइन और निर्माण में एक बहुचरणीय वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रयोग किया गया। इसमें उपयुक्त एंटीजन और नैनोपार्टिकल का चयन सबसे महत्वपूर्ण है। वैक्सीन बनाने के लिए पहले ऐसे नैनोकण चुने गए, जो एंटीजन सुरक्षित रखने, नियंत्रित रूप से रिलीज करने और लक्षित कोशिकाओं तक पहुंचाने में सक्षम थे। निर्माण प्रक्रिया में नैनोकणों का आकार, आवेश, सतह गुण, लोडिंग क्षमता और रिलीज प्रोफाइल को ध्यान से अनुकूलित किया गया।







