Thursday, November 6, 2025
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दस साल में बादल फटने और अतिवृष्टि की 57 घटनाएं खतरे की जद में उत्तराखंड के 3000 गांव

हिमालयी क्षेत्र के 1000 से 2000 मीटर के एलिवेशन बैंड (समुद्र तल से ऊंचाई) में बसे करीब 3000 हजार गांव खतरे की जद में हैं। इसी इलाके में पिछले करीब दस वर्षों में बादल फटने और अतिवृष्टि की 57 घटनाएं हुई हैं। इनमें भी सबसे अधिक 38 घटनाएं ज्यादा खतरनाक थीं। इसका कारण क्षेत्र में सतही तापमान और टोपोग्राफी एलीवेशन के चलते रीजनल लॉकिंग सिस्टम बनना है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की ओर से नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन ईको सिस्टम नामक शोध में 11 बिंदुओं पर आपदाओं का विश्लेषण किया गया है। शोध में यह भी पाया गया कि 18 से 28 डिग्री सतही तापमान वाले क्षेत्रों में पिछले दस वर्षों में बादल फटने की 80 फीसदी घटनाएं हुई हैं। इसका कारण खास परिस्थितियों में बनने वाले रीजनल लॉकिंग सिस्टम को माना गया है। जो 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई के बीच बनता है।

80 प्रतिशत बादल फटने की घटनाएं
जिसमें करीब 3000 गांव बसे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, मानसून सीजन में जुलाई और अगस्त माह में धरती के 18 से 28 डिग्री सतही तापमान वाले स्थानों पर 80 प्रतिशत बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। जबकि 3 से 17 डिग्री वाले स्थानों पर इन घटनाओं की संख्या 20% है। जो यह दर्शाता है कि घाटियों में जहां बारिश कम है और सतही तापमान अधिक है। वहां बादल फटने और अतिवृष्टि के लिए अनुकूल सिस्टम निर्मित होता है। वहीं टोपोग्राफी एलीवेशन की आकृति के चलते भी बादल फटने जैसी घटना के लिए रीजनल लॉकिंग सिस्टम बन जाता है। इसी कारण अपर गंगा बेसिन में पिछले दस वर्षों में छह जिलों हुई 57 घटनाएं हुई हैं। जिसमें बादल फटने की घटनाएं 29 हैं। इनमें भी सबसे अधिक छह घटनाएं चमोली में दर्ज की गई हैं।

घाटियों में तापमान का बढ़ने से भी होता है खतरा
शोध में यह बात भी सामने आई है कि हिमालयी क्षेत्रों में गहराई के साथ अधिक ऊंचाई वाली घाटियों में मानसूनी प्रभाव अलग-अलग तरह के होते हैं। कई घाटियां ऐसी हैं जिनमें घाटियों में पहाड़ियों की दीवारें एक दूसरे को सामने से रिफलेक्ट करती है। जिससे तापमान में वृद्धि होती है। ऐसे हिस्सों में अक्सर दोपहर बाद मौसम खराब होने लगता है। शोध में शामिल डॉ. एमके गोयल, डॉ. मनोहर अरोड़ा, डॉ. पीके मिश्रा, डॉ. संजय जैन और डॉ. एके लोहानी ने विस्तृत अध्ययन किया है। शोध में पाया गया है कि 2010 से 2020 के बीच 57 बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाएं हुई हैं। जिनमें चमोली, टिहरी और रुद्रप्रयाग, जोशीमठ, भिलंगाना, भटवारी, उखीमठ, दशोली, देवप्रयाग, जखोली, थराली और नारायणबगड़ आदि में हुई घटनाएं शामिल हैं।

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