दिल्ली व पंजाब में फल-फूल चुकी आम आदमी पार्टी (आप) को हरियाणा की जमीन पर जड़ें जमाने में वक्त लग सकता है। पिछली बार 46 उम्मीदवार उतारकर लगभग हर सीट पर जमानत जब्त करवाने वाली आप इस बार अकेली ऐसी पार्टी है जिसने सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं। कांग्रेस व भाजपा ने एक-एक सीट दूसरे दलों को दी है। आप को उम्मीदवार तो मिल गए पर अब उनकी जीत सुनिश्चित करने का कड़ा इम्तिहान है। हरियाणा में आप नेतृत्व के संकट से जूझती आई है। पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की जेल से 177 दिन बाद हुई रिहाई से उसकी जान में जान आ गई है।
दिल्ली के पूर्व सीएम केजरीवाल तीन दिन से प्रचार कर रहे हैं। कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का उनका प्रयास है। केजरीवाल हरियाणा के ही भिवानी जिले के सिवानी के हैं, पर उनकी सियासी कर्मभूमि दिल्ली रही है। हरियाणा का बेटा होने की बात कहकर वह यहां पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। केजरीवाल कहते हैं कि इस बार आप हरियाणा में किंगमेकर होगी, क्योंकि किसी एक को बहुमत नहीं मिलने वाला है। आप की उपलब्धि यही होगी कि वह मुकाबले को त्रिकोणीय बना दे। उसके पास पांच-छह से ज्यादा अनुभवी उम्मीदवार नहीं हैं। संगठन खड़ा करने के दावे प्रदेश के नेता करते रहे हैं। अब उन दावों की परीक्षा होनी है, जो आसान नहीं है। 2019 के विधानसभा चुनाव में उसे केवल 0.48 प्रतिशत वोट मिले थे, जो नोटा से भी कम थे। ज्यादातर उम्मीदवारों को एक हजार से भी कम वोट मिले व जमानत जब्त हो गई। 2019 में आप ने तीन सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा और वोट फीसद 0.36 रहा था।
2024 में उसने कांग्रेस संग गठबंधन में एक सीट कुरुक्षेत्र से चुनाव लड़ा, पर हार गई। यह जरूर है कि इस लोकसभा सीट के नौ में से चार विधानसभा क्षेत्रों में उसे लीड मिली और वोट 3.96 फीसदी हो गए। इसकी एक वजह यह थी कि कांग्रेस के मत भी उसके िहस्से आए। इसलिए आप की जड़ें कितनी जमीन पकड़ पाई हैं, इसका सही अंदाजा इसी चुनाव में होगा। राजनीतिक विश्लेषक व पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. गुरमीत सिंह मानते हैं कि दस सीटें मांग रही आप अगर कांग्रेस के पांच सीटों के ऑफर को ही मान लेती तो भी उसे फायदा होता। कांग्रेस के सहयोग से वह इन सीटों पर जीत की स्थिति में होती। अब उसका मुकाबला भाजपा ही नहीं, कांग्रेस से भी होगा। दोनों की अपेक्षा आप का काडर कमजोर है।
आप हुई मजबूत तो कांग्रेस को नुकसान
हरियाणा में भाजपा के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी है और यह माना जा रहा है कि इसका लाभ कांग्रेस को होगा, पर अगर आप का वोट शेयर बढ़ता है तो वह कांग्रेस को जाने वाले वोट से ही बंटेगा। ऐसी स्थिति में आप राष्ट्रीय स्तर पर अपने इंडिया गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएगी।
हालांकि कांग्रेस नेता मानते हैं कि बहुत कम सीटों पर ऐसी स्थिति हो सकती है। गुजरात व गोवा में भी आप ने भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाया था। वैसे आप नेता कांग्रेस पर प्रहार से बच रहे हैं। उनका निशाना भाजपा ही है।
केजरीवाल पर ही टिका प्रचार का पूरा दारोमदार
दिल्ली की गद्दी आतिशी को सौंपने के तुरंत बाद केजरीवाल हरियाणा का रुख कर गए हैं। पहले उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और प्रदेश अध्यक्ष सुशील गुप्ता ही प्रचार की कमान संभाले हुए थे। मान का पंजाब से लगती सीटों पर प्रभाव है।अब केजरीवाल के आने से एकदम प्रचार में तेजी आई है। उनके रोड शो मे पीले झंडे लिए भीड़ दिखने लगी है। लेकिन यह भीड़ वोटों में कितनी बदल पाएगी, यह आठ अक्तूबर को नतीजे आने पर ही पता चलेगा।
मुफ्त की तीन गारंटियां
आप मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा और मुफ्त इलाज की तीन गारंटियों के अलावा महिलाओं को हर माह एक हजार रुपये व युवाओं को रोजगार के वादे के साथ मैदान में है। इसके लिए वह दिल्ली व पंजाब मॉडल का जिक्र कर रही है।
पंजाब व दिल्ली से लगती सीटों पर फोकस
इन दोनों राज्यों में अपनी सरकार होने की वजह से आप का ज्यादा फोकस इनसे लगती सीटों पर है। अरविंद केजरीवाल ने पंजाबी बहुल इलाकों में ही ज्यादातर रैलियां की हैं।सिरसा, डबवाली, फतेहाबाद, यमुनानगर, पिहोवा जैसी सीटों पर आप ने ज्यादा जोर लगाया है। दिल्ली से लगती सोनीपत, फरीदबाद, गुरुग्राम की सीटों पर भी उसकी नजरें हैं। वैसे पार्टी की कोशिश लगभग सभी बेल्टों में केजरीवाल की रैलियां व रोड शो करवाने की है।