रामनगर। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर चारधामों के साथ- साथ कई शक्तिपीठ हैं। इन्हीं में से एक मां मानिला देवी शक्ति पीठ है। ये मंदिर रामनगर से लगभग 70 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर सल्ट क्षेत्र (अल्मोड़ा) में स्थित है। मानिला देवी मंदिर दो भागों में बंटा हुआ है। इसे स्थानीय भाषा में मल्ला मानिला (ऊपरी मानिला) और तल्ला मानिला (निचला मानिला) कहते हैं। यह स्थान कुमाऊं क्षेत्र में 1,820 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव ने मंदिर का कराया था निर्माण। शक्तिपीठ मानिला देवी मंदिर के मुख्य पुजारी रमेश लखचौरा ने बताया कि साल 1488 में कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर में काले पत्थर से निर्मित दुर्गा माता और भगवान विष्णु की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं। पर्यटन की दृष्टि से भी मंदिर का विशेष महत्व है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1977 में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। मानिला क्षेत्र में आए दिन चोरी होती थी। मान्यता है कि मां आवाज लगाकर मानिला के ग्रामीणों को चोरों के गांव में घुसने की जानकारी देती थी और ग्रामीणों को सचेत करती थी।
मां मानिला देवी का कटा हाथ नहीं उठा पाए चोर। एक बार चोरों ने मानिला देवी की मूर्ति चुराने की योजना बनाई।लेकिन सिर्फ दाहिना हाथ ही अपने साथ ले जा पाए। मंदिर से कुछ दूर जाकर चोरों ने एक स्थान पर मां मानिला देवी का कटा हाथ जमीन पर रख दिया, लेकिन जाते वक्त वो देवी का हाथ उठा नहीं पाए। इसके बाद लोगों ने सामूहिक प्रयास से उस स्थान पर मां मानिला देवी का एक और मंदिर बनवाया, जिसे तल्ला और मल्ला मानिला देवी का मंदिर कहा जाता है।
अप्रैल में भव्य मेले का होता है आयोजन। मुख्य पुजारी रमेश लखचौरा ने बताया कि पांडवों के समय की बनाई हुई दो गुफाएं भी मंदिर परिसर में मौजूद हैं। इन गुफाओं में ध्यान लगाने पर घंटियों और ढोल नगाड़ों की आवाजें गुफा में सुनाई देती हैं। जो भी भक्त और नवविवाहित दंपति मंदिर में आकर सच्चे मन से पूजा-पाठ कर मन्नत मांगते हैं। वो जल्द पूरी होती है। उन्होंने बताया कि 14- 15 अप्रैल को हर वर्ष एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है। जिसे स्याल्दे बिखौती का मेला कहा जाता है। इस मेले में देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां मानिला देवी के दर्शनों के लिए यहां पर पहुंचते हैं।