बाइक पर चलने वालों को कार का सपना दिखाकर उसे पूरा करने वाले रतन टाटा ने लखटकिया कार के वादे को समय से पूरा करने में ताकत झोंक दी थी। इस सपने को पूरा करने में ऊधमसिंह नगर के सिडकुल पंतनगर में टाटा के प्लांट की सबसे अधिक भूमिका थी। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्लांट ने न सिर्फ टाटा के भरोसे को कायम रखा, बल्कि तय मियाद में लखटकिया कार का निर्माण भी कर दिखाया। ऊधमसिंह नगर में प्लांट लगाकर हजारों लोगों को रोजगार देने के साथ ही इसी प्लांट में देश की पहली लखटकिया कार का उत्पादन भी रतन टाटा की दूरदर्शिता का परिणाम था। पश्चिम बंगाल के सिंगूर में विवाद के बाद रतन टाटा ने कंपनी के दूसरे प्लांट के बजाय पंतनगर प्लांट को न सिर्फ चुना बल्कि वे खुद भी कार के उत्पादन से जुड़े प्लांट में पहुंचे थे।
टाटा का पंतनगर प्लांट तब चर्चा में आया, जब सिंगूर में नैनो प्लांट का काम अक्तूबर 2008 में रोकना पड़ा था। लोगों को लखटकिया कार मुहैया कराने का वादा पूरा करने के लिए रतन टाटा ने तब कंपनी के मिनी ट्रक बनाने वाले पंतनगर प्लांट में नैनो कार का उत्पादन शुरू करने का फैसला किया था। 16 अप्रैल, 2009 को वह विशेष विमान से पंतनगर प्लांट में आए थे। ट्रक बनाने वाले प्लांट में रतन टाटा के भरोसे पर नैनो कार का सफल उत्पादन किया गया। इसी प्लांट से बनाकर तैयार हुई नैनो कार के मालिक अशोक विचारे को रतन टाटा ने जुलाई 2009 में अपने हाथ से चाबी सौंपी थी। हालांकि बाद में वर्ष 2010 में गुजरात के सानंद में टाटा के प्लांट में नैनो कार का उत्पादन हुआ।