Sunday, September 21, 2025
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पाकिस्तान से आए ये हिंदू विस्थापित क्यों सीएए के नियम से हैं परेशान- ग्राउंड रिपोर्ट

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए ग़ैर मुसलमानों को नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधित क़ानून (सीएए) देश में लागू कर दिया गया है ।

यह क़ानून न सिर्फ भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चाओं में बना हुआ है ।

पाकिस्तान से सटे राजस्थान में बड़ी संख्या में विस्थापित हिंदू परिवार रहते हैं । सीएए लागू होने के बाद इनमें से कुछ परिवारों में खुशी है । लेकिन, अधिकतर परिवार परेशान हैं ।

“हमारे कई परिचित लोगों को सीएए के तहत भारतीय नागरिकता मिलने से राहत मिलेगी । लेकिन, अंदरूनी रूप से मैं बहुत परेशान हूं ।”

“मैं अपने परिवार को लेकर 11 जनवरी, 2015 को भारत आया था । सीएए के मुताबिक़, मैं 11 दिन की देरी से भारत आया हूं, सिर्फ़ इसलिए मेरे परिवार को भारतीय नागरिकता नहीं मिलेगी । जबकि, हम भी हिंदू हैं, हम भी पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर ही भारत आए हैं ।”

यह कहना है हेम सिंह का । वे अपने परिवार के साथ पाकिस्तान से भारत आए थे । वो और उनका परिवार जोधपुर की आंगणवा सेटलमेंट में रह रहा है ।

सीएए क़ानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ऐसे अल्पसंख्यक जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में आए वो भारत की नागरिकता पाने के पात्र हैं ।

सीएए से ख़ुशी भी और ग़म भी

जोधपुर ज़िला मुख्यालय से क़रीब 13 किलोमीटर दूर आंगणवा सेटलमेंट है, जहां क़रीब ढाई सौ परिवारों के आठ सौ लोग रहते हैं ।

इनमें से अधिकतर लोग मूल रूप से गुजरात से हैं, जिनके बुज़ुर्ग दशकों पहले पाकिस्तान जा बसे थे ।

यहां रहने वाले क़रीब चालीस लोगों को सीएए के नियमानुसार नागरिकता मिल सकती है ।

बस्ती की एक झोपड़ी के अंदर क़रीब बीस लोग बैठे हुए सीएए पर चर्चा कर रहे थे । इनमें से एक रामचंद्र सोलंकी हैं । जो दो बेटी, दो बेटे और पत्नी के साथ 31 दिसंबर 2014 को भारत आए थे ।

बीबीसी से वो कहते हैं, “बहुत ख़ुशी का माहौल है क्योंकि अब हम आधिकारिक रूप से भारत के नागरिक हो जाएंगे ।”

वह झोपड़ी में बैठे दूसरे लोगों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “सीएए के बाद हमें जितनी ख़ुशी है, उतना ग़म भी है । हमारी बस्ती में अगर दो घरों में ख़ुशी का माहौल है तो तीन सौ घरों में ग़म भी है । क्योंकि सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 के बाद भारत आए लोगों को नागरिकता नहीं मिलेगी ।”

इसी बस्ती में रहने वाले हेम भील अपने भाई, चार बच्चों और पत्नी के साथ 2014 में भारत आए हैं ।

हेम भील कहते हैं, “हमने सुना है कि सरकार ने क़ानून बनाया है कि अब हमें नागरिकता मिल जाएगी । हमारा तो वैसे ही भविष्य निकलने वाला था मज़दूरी में । लेकिन सुनकर अच्छा लगा अब कि बच्चों का भविष्य सुधरेगा ।”

हेम भील की पत्नी अमर बाई कहती हैं, “पाकिस्तान में रहकर मज़दूरी करने वाले रिश्तेदारों से आज बात हुई तो वह भी कह रहे थे कि तुम लोगों को नागरिकता मिल जाएगी ।”

विस्थापितों के पढ़ने वाले बच्चों को उम्मीद

हेम भील और अमर बाई की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी कविता को पासपोर्ट के आधार पर स्कूल में दाख़िला मिला था ।

वो कहती हैं, “कल ही पिता ने बताया था कि हम 2014 में भारत आए हैं इसलिए हमें नागरिकता मिल जाएगी । अब हम भारत के हो जाएंगे ।”

“हमें उम्मीद है कि नागरिकता के मिलने के बाद पढ़ाई और नौकरी में लाभ मिलेगा । पढ़ाई करके आईपीएस अधिकारी बनना चाहती हूं ।”

सी बस्ती में हेमी बाई का घर है जिनकी बीते साल सितंबर में शादी हुई थी । वह अपने परिवार के साथ सितंबर, 2014 में भारत आई थीं ।

वह कहती हैं, “मुझे बीते दिन ही जानकारी मिली कि भारत सरकार ने सीएए लागू किया है ।”

जोधपुर के सरकारी गर्ल्स कॉलेज से वो बीए की पढ़ाई कर रही हैं ।

वह कहती हैं, “पाकिस्तान में पांचवीं तक ही पढ़ी थी । भारत आने के बाद कोर्ट के ज़रिए स्कूल में दाखिला हुआ था । नागरिकता मिलने से उम्मीद है कि हमारे भविष्य में काफ़ी सुधार होगा । इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात नहीं हो सकती है कि हम भारत के हो जाएंगे । नागरिकता मिल जाएगी तो नौकरी भी लग जाएगी । मैं बीए के बाद बीएड करूंगी और शिक्षिका बनना चाहती हूं ।”

‘हमें भी मिलनी चाहिए नागरिकता’

सीएए क़ानून के तहत हेम सिंह को भारत की नागरिकता नहीं मिलेगी क्योंकि वो इसके लिए ज़रूरी डेडलाइन के 11 दिन बाद भारत आए ।

वो कहते हैं, “हमें जो सुविधा मिलनी चाहिए अभी तक नहीं मिली है । हमें भारत आए नौ साल हो गए हैं । मैं चाहता हूं कि मेरे माता-पिता और बच्चों को सुविधा मिलनी चाहिए । जो भारत के अन्य लोगों को सुविधाएं मिल रही हैं, हमें भी मिलनी चाहिए ।”

रामचंद्र सोलंकी उन लोगों में शामिल हैं जिन्हें नागरिकता मिल सकती है ।

वह कहते हैं, “हम चाहते हैं कि हमारे साथ सबकी नागरिकता हो जाए तो और अच्छा है । साल 2015, 2016 या बाद में भी जो आए हैं उन सबको इसमें शामिल किया जाए ।”

“अस्सी साल की उम्र के बुज़ुर्ग चाह रहे हैं कि हम भी नागरिकता देख लें और भारत का बनकर मरें । इसी आस में जी रहे हैं ।”

पाकिस्तान विस्थापित परिवारों के लिए काम कर रही संस्था सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा भी सीएए में 2014 की डेडलाइन के ख़िलाफ़ हैं ।

वह कहते हैं, “2014 से 2024 तक दस साल का सफ़र है, इन्हें भी सीएए के तहत नागरिकता की श्रेणी में रखना चाहिए । जिसने भी भारत में छह साल पूरे कर लिए हैं उन्हें उन्हें नागरिकता मिलनी चाहिए ।”

नागरिकता से क्या होगा बदलाव?

राजस्थान हाई कोर्ट में अधिवक्ता अखिल चौधरी कहते हैं, ”भारतीय नागरिकता प्राप्त होने के बाद अन्य भारतीयों की तरह ही सभी सुविधाएं, सरकारी योजनाओं का लाभ और कानूनी हक़ इन्हें प्राप्त होंगे ।”

जोधपुर की काली बेरी सैटलमेंट में रहने वाले गोविंद भील 1997 में पाकिस्तान से भारत आए थे । उन्हें 2005 में नागरिकता भी मिल गई ।

वह कहते हैं, ”नागरिकता मिलने से पहले सब परेशान करते थे । लेकिन, नागरिकता मिलने के बाद से जीवन आसान हो गया । हालाँकि नागरिकता मिलने के बाद भी खुद की छत नहीं है ।”

वहीं हेम भील कहते हैं, “अभी हमें बहुत परेशानी हो रही है । स्कूलों और अस्पताल में जो सुविधाएं भारतीय लोगों को मिलती है, वो अभी हम पाकिस्तानी विस्थापितों को नहीं मिलती है । नागरिकता मिलने के बाद हमें भी मिलेगी ।”

सोढ़ा कहते हैं, “प्रताड़ित होकर भारत आए इन लोगों को सिर्फ़ नागरिकता ही नहीं बल्कि उनके पुनर्वास की व्यवस्था भी की जानी चाहिए ।”

वह कहते हैं, “इनके पास अभी बिजली नहीं है, पानी नहीं है, स्कूल नहीं हैं, शौचालय नहीं हैं, रोड नहीं हैं । जब यह सभी सुविधाएं मिलेंगी तो ही बदलाव आएगा ।”

पाक विस्थापितों की एक और बस्ती

जोधपुर ज़िला मुख्यालय से क़रीब बारह किलोमीटर दूर काली बेरी है । जोधपुर किले के बगल से गुज़र रही सड़क सूरसागर से होते हुए काली बेरी पहुंचती है ।

काली बेरी के नज़दीक इलाकों में पत्थर की खदानें हैं । इनमें पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए बहुत से लोग मज़दूरी करते हैं ।

काली बेरी में डॉ अंबेडकर नगर कॉलोनी से होते हुए एक पक्का रास्ता भील बस्ती के लिए जाता है । यह क़रीब 2,800 लोगों की भील बस्ती चार सौ पाकिस्तान विस्थापित परिवारों की है ।

मुख्य सड़क के बाईं ओर इस भील बस्ती में कच्ची-पक्की सड़कें हैं, एक सरकारी स्कूल है । उसके बोर्ड पर लिखा है ‘राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय पाक विस्थापित’ ।

स्कूल के बगल में माया का घर है । वो 2013 में अपने दस सदस्यों के परिवार के साथ भारत आईं थीं ।

वह कहती हैं, “नागरिकता के लिए बहुत प्रयास किया । खूब भाग-दौड़ी की । लेकिन नागरिकता नहीं मिली । थक गए ।”

जब हमने ये पूछा कि क्या उन्हें सीएए के बारे में कुछ पता है तो माया कहती हैं, “फ़ोन पर देखा था कि सरकार नागरिकता देने जा रही है । हमें ख़ुशी हुई । अच्छा है यह हमारा मुल्क है ।”

वह कहती हैं, “नागरिकता मिल जाए तो बच्चों की कोई नौकरी लग जाएगी । कहीं आने-जाने पर रोक नहीं होगी ।”

माया के छह बेटों में से बड़े बेटे की मौत हो गई है, उनके पति और दो बच्चे भी माया के साथ रहते हैं । पांच में से तीन बेटे पत्थर की खदानों में काम करते हैं और दो पढ़ाई करते हैं ।

इसी बस्ती में रहने वाली गुड्डी अपने परिवार के साथ मार्च 2014 में भारत आईं ।

बात करने में हिचकिचाते हुए वह कहती हैं, “दीपावली की तरह ख़ुशी हो रही है । परिवार में चार बेटे दो बेटी और मेरे पति हैं ।”

“एक पढ़ता है और तीन काम करते हैं पत्थर खदानों में । अपनी ज़मीन खरीद सकते हैं, गाड़ी ले सकते हैं । सरकारी लाभ नागरिकता वालों को मिलता है । हमें कुछ लाभ नहीं मिलता है ।”

माया के पति मनु राम कहते हैं, “नागरिकता के लिए दो साल पहले आवेदन किया था । एनओसी भी मिल गई है लेकिन अभी तक नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं मिला है ।”

“अब सरकार कानून लाई है तो हमें नागरिकता मिल जाएगी । सरकारी योजनाओं का लाभ मिल जाएगा, गाड़ी खरीद पाएंगे, बिना नागरिकता के सिर्फ मज़दूरी के अलावा कोई काम नहीं कर सकते हैं ।”

वह कहते हैं, “पासपोर्ट और लॉन्ग टर्म वीज़ा के आधार पर आधार कार्ड तो बन गया था ।”

सीएए क़ानून की ख़ामियां

सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने बीबीसी से कहा, ”मुझे लगता है कि यह कानून ही संविधान में दिए गए हमारी समानता के प्रावधान का विरोध करता है । यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है इस कानून के ऊपर ।”

अरुणा रॉय कहती हैं, “इसमें न किसी से कंसल्ट किया गया है, न कानून के बारे में बातचीत हुई हैं ।”

“आरटीआई, नरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसे कानून में सार्वजनिक भागीदारी रही है । जहां लोगों से बातचीत हुई, लोगों के विचार सुने गए और फिर लागू किया गया । लेकिन सीएए में किसी से बातचीत नहीं की गई है ।”

वहीं, हिंदू सिंह सोढा कहते हैं, “हमें अफसोस है कि सरकार ने सीएए में 31 दिसंबर, 2014 की डेड लाइन रखी है ।”

वो कहते हैं, ”जो भी धार्मिक उत्पीड़न के बाद आ रहा है सभी को नागरिकता देनी चाहिए । सीएए में सीमित लोगों को ही नागरिकता देने का नियम है । सीएए के तहत भी टाइम बेस्ड प्रोसेस होना चाहिए, नहीं तो इस प्रक्रिया में समय बहुत लगेगा ।”

क्या विस्थापित मुसलमान को भी नागरिकता मिलनी चाहिए ।

इस सवाल पर हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं, “वो इस्लामिक देश से आ रहे हैं तो उनका धार्मिक उत्पीड़न नहीं हो सकता है । लेकिन, भारत में और पाकिस्तान के बॉर्डर के पास दोनों देशों के बीच शादी होती है । इसलिए मैंने 2004 में भी प्रशासन को बोला था कि इन्हें भी नागरिकता मिलनी चाहिए ।”

प्रशासन क्या कहता है?

सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से विस्थापित गैर मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रावधान है ।

राजस्थान गृह विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी राजेश जैन ने बीबीसी को बताया कि राजस्थान में 27,674 विस्थापित लोग लॉन्ग टर्म वीज़ा पर रह रहे हैं ।

अब तक कितने विस्थापितों को नागरिकता दी गई है, इस सवाल पर वह कहते हैं, “साल 2016 से अब तक 3,648 विस्थापितों को नागरिकता दी जा चुकी है । जबकि, 1,926 विस्थापितों ने नागरिकता के लिए आवेदन किया हुआ है, जो प्रक्रियाधीन है ।”

राजस्थान में पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए लोग ही रहते हैं । इसमें भी सबसे अधिक 18 हज़ार लोग जोधपुर में रहते हैं ।

सीएए के नियमों के तहत भारत आने के डेडलाइन की वजह से बेहद कम विस्थापितों को ही नागरिकता मिलती नज़र आ रही है ।

जोधपुर के कलेक्टर गौरव अग्रवाल ने बताया, “जोधपुर ज़िले में क़रीब 18 हज़ार पाकिस्तान विस्थापित परिवार रहते हैं । इनमें से क़रीब 3300 लोगों को नागरिकता मिल चुकी है ।”

“नए संशोधित क़ानून के तहत तीन से चार हज़ार अन्य लोगों को नागरिकता मिल जाएगी । जोधपुर के गंगाणा, काली बेरी, बासी तंबोलियान, जवर रोड़, आंगणवा के आसपास यह लोग रहते हैं ।”

सीएए लागू होने के बाद सरकार ने नागरिकता देने के लिए रजिस्ट्रेशन पोर्टल शुरू किया है ।

क्या राज्य सरकार को केंद्र से निर्देश मिले हैं, इस सवाल पर राजस्थान गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद कुमार ने बीबीसी से कहा कि केंद्र सरकार से फिलहाल हमें कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है ।

फॉर्नर रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (एफआरओ) एडिशनल एसपी रघुनाथ गर्ग भी कहते हैं कि ‘हमें भी कोई गाइडलाइंस नहीं मिली है । निर्देश प्राप्त होने पर जो भी प्रक्रिया होगी उसी अनुसार प्रॉसेस को आगे बढ़ाएंगे ।’

सीएए से पहले कैसे मिलती थी नागरिकता

सीएए से पहले नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत पाकिस्तान से आए विस्थापितों को नागरिकता दी जाती रही है । अधिनियम के अंदर 51 (ए) से 51(ई) तक में इनकी नागरिकता के संबंध में विस्तार से बताया गया है ।

इस अधिनियम में हुए संशोधन के बाद केंद्र सरकार ने जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर के कलेक्टरों को नागरिकता देने के लिए अधिकृत किया हुआ है ।

ज़िलाधिकारियों के स्तर पर योग्य विस्थापित लोगों को प्रक्रिया अनुसार नागरिकता प्रदान की जाती रही है । गृह विभाग के अनुसार नवंबर 2009 में अंतिम बार नागरिकता देने के लिए कैंप लगाया गया था ।

साभार : बी०बी०सी० हिंदी

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