Friday, November 7, 2025
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हजारों भक्त हुए शामिल ये है विशेषता धनतेरस की रात हुई उत्तराखंड की प्रसिद्ध हरियाली डोली यात्रा

रुद्रप्रयाग। सिद्धपीठ हरियाली देवी की डोली यात्रा ने मंगलवार देर सायं हरियाल पर्वत के लिए प्रस्थान किया। इस दौरान जसोली स्थित मंदिर में पूजा अर्चना की गई। देवी के पश्वा ने अवतरित होकर भक्तों को आशीर्वाद दिया। आज हरियाल पर्वत से डोली यात्रा पूजा-अर्चना के बाद वापस जसोली लौटी।

हरियाली डोली यात्रा ने किया प्रस्थान। हर साल की तरह इस बार भी धनतेरस पर हरियाली देवी की डोली ने बड़ी संख्या में भक्तों के साथ जसोली से हरियाल पर्वत के लिए प्रस्थान किया। करीब दस किमी की पैदल यात्रा मंगलवार सायं साढ़े छह बजे जसोली से हरियाली कांठा के लिए रवाना हुई। जय माता दी के जयकारों के साथ डोली कोदिमा के साथ ही विभिन्न पड़ावों से होते हुए हरियाली कांठा को रवाना हुई।

रात भर पैदल चले यात्री। हरियाली देवी की डोली यात्रा पूरे रातभर पैदल मार्ग में ही रही। बुधवार सुबह सूर्य की पहली किरण आते ही डोली ने मंदिर में प्रवेश किया। इस दौरान पूजा अर्चना की गई। मां को भोग लगाकर आरती के साथ दोबारा डोली ने जसोली के लिए प्रस्थान किया। इस मौके पर मंदिर के पुजारी विनोद प्रसाद मैठाणी ने बताया कि मंगलवार शाम को वैदिक मंत्रोच्चार और पूजा अर्चना के बाद डोली ने हरियाल पर्वत के लिए प्रस्थान किया। आज बुधवार पूजा अर्चना के साथ डोली ने पुन: जसोली के लिए प्रस्थान किया।

धनतेरस पर हुआ हरियाली डोली यात्रा का शुभारंभ। पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बद्री ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस बार भी धनतेरस पर्व पर हरियाली डोली यात्रा का आगाज हुआ। यह विश्व की एक ऐसी यात्रा है। जो रात के समय की जाती है और इस यात्रा में हजारों की संख्या में भक्तों ने भाग लिया। यह यात्रा सालभर में एक बार होती है, जिसका इंतजार भक्तों को बेसब्री से रहता है। हरियाली देवी को विष्णुशक्ति, योगमाया, महालक्ष्मी का रूप माना जाता है। इस देवी की क्रियाएं सात्विक रूप में पालन की जाती हैं। यात्रा करने से सात दिन पूर्व तामसिक भोजन मीट-मांस, मदिरा, प्याज, लहसून का त्याग करना जरूरी होता है। देव राघवेंद्र ने बताया कि जसोली गांव से डोली यात्रा ने शाम साढ़े छह बजे हरि पर्वत की ओर प्रस्थान किया, जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से 9,500 फीट है।

सूर्योदय के साथ भगवती की डोली ने किया मंदिर में प्रवेश। हरियाली देवी कांठा यात्रा भारत की पहली देवी यात्रा है। जिसका निर्वहन रात्रि को होता है। इस यात्रा के चार मुख्य पड़ाव हैं। जसोली मंदिर से हरियाली पर्वत की दूरी लगभग दस किमी है। यात्रा का पहला पड़ाव कोदिमा, दूसरा पड़ाव बासो, तीसरा पड़ाव पंचरंग्या और चौथा पड़ाव कनखल रहा। सुबह पांच बजे सूर्य की पहली किरण के साथ भगवती की डोली ने अपने मंदिर में प्रवेश किया। भगवती के मायके पाबो गांव के लोगों ने भगवती का फूल मालाओं, जयकारों के साथ भव्य स्वागत किया। हरियाल मंदिर में पूजा-अर्चना, हवन के बाद यात्रा ने जसोली मंदिर की ओर प्रस्थान किया। यात्रा में बड़ी संख्या में धनपुर, रानीगढ़, बच्छणस्यूं, चलणस्यूं पट्टियों के लोग पहुंचे थे।

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