आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दो साल देहरादून में कैदी के रूप में बिताए थे। आजादी के परवानों को उनकी खबर ना लगे और कहीं वह जेल तोड़कर उनको आजाद ना करा लें अंग्रेजों ने दो बार विभिन्न जेलों से नेहरू को दून में शिफ्ट किया था।नेहरू को अंग्रेजों ने 1934 में कैद कर लिया था। उनको मई 1934 को देहरादून ट्रांसफर कर दिया था। नेहरू यहां तीन महीने दो दिन कैद में रहे और उसके बाद उनको यहां से नैनी जेल में भेज दिया गया था। दूसरी बार उनको अंग्रेजों ने छह साल बाद नवंबर 1940 में इस जेल में कैद किया। वह यहां एक साल नौ महीने 10 दिन कैद में रहे और उनको यहां से फिर लखनऊ भेज दिया गया था।
पहले पुरानी तहसील में थी सेंट्रल जेल, बाद में सुद्धोवाला जेल बनी
अंग्रेजी शासन काल में देहरादून की पुरानी तहसील में ही सेंट्रल जेल थी। यही पर तमाम कैदियों को रखा जाता था, पंडित नेहरू को स्पेशल बैरक में रखा गया था। बाद में देहरादून के सुद्धोवाला में जिला जेल का निर्माण कराया गया और जेल वहां पर चली गई।
बैरक और स्थान सही करके उनकी याद में रखा गया
पुरानी तहसील का अधिकतर हिस्सा खत्म हो गया। जिस हिस्से में पंडित नेहरू कैद रहे है उस बैरक और स्थान सही करके उनकी याद में रखा गया है।
प्रसिद्ध पुस्तक भारत की खोज के अंश भी यहीं लिखे थे
चाचा नेहरू ने प्रसिद्ध पुस्तक भारत की खोज लिखी थी। बताया जाता है कि अपने बंदी काल के दौरान उन्होंने इस पुस्तक को लिखना शुरू कर दिया था। भारत की विभिन्न जेलों में वह कैद रहे। यहां देहरादून की इस जेल में भी उन्होंने इस पुस्तक के अंश लिखे।
नेहरू वार्ड का कराया जाएगा सुदृढ़ीकरण
जिस बैरक में नेहरू कैद रहे हैं, उसकी हालत आज ज्यादा अच्छी नहीं है। सड़क टूटी हुई है और मुख्य गेट पर अवैध रूप से पार्किंग रहती है। इसके अलावा चाचा नेहरू जहां खाना बनाते थे और जो शौचालय है उसके दरवाजे भी इस समय जाम हैं। इसके अलावा बैरक में लगी टाइलें भी उखड़ी हुई हैं। बताया जाता है कि इस बैरक के सुदृढ़ीकरण का प्रस्ताव पास हो चुका है और जल्द ही इसका सौंदर्यीकरण कराया जाएगा।