दून अस्पताल में जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से मरीजों में डायबिटिक रेटिनोपैथी रोग की पहचान की जाएगी। चिकित्सकों के मुताबिक इसके इस्तेमाल से एक साथ 50 से भी अधिक मरीजों की रेटिना में होने वाले इस रोग की पहचान एक साथ की जा सकेगी। इसके लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। शहर से देहात तक मधुमेह (डायबिटीज) के मरीजों की संख्या में बढ़ती जा रही है। इसके अलावा बच्चों में भी टाइप-1 डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है। दून अस्पताल के रेटीना विशेषज्ञ की ओपीडी में हर रोज करीब 10 मरीज डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित मिल रहे हैं।
चिकित्सक बताते हैं कि आज भी कई मधुमेह के मरीज ऐसे हैं, जो डायबिटिक रेटिनोपैथी के शिकार हैं, लेकिन जांच न होने की वजह से उनको रोग के संबंध में जानकारी ही नहीं हैं। आमतौर पर यह समस्या पर्वतीय और दूरगामी क्षेत्रों में देखने को मिलती है। जहां पर संसाधन के अभाव लोग जांच से वंचित रह जाते हैं, लेकिन फंडस कैमरे के माध्यम से एक साथ ही कई मधुमेह के मरीजों की फोटो खींचकर उनकी एआई साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की जा सकेगी।
दिल्ली-ऋषिकेश एम्स के बाद दून अस्पताल में लगेगा एआई साफ्टवेयर
दून अस्पताल के रेटीना विशेषज्ञ डॉ. नीरज सारस्वत ने बताया कि यह साफ्टवेयर वर्तमान में दिल्ली और ऋषिकेश एम्स में संचालित किया जा रहा है। इसको दून अस्पताल में स्थापित करने के लिए अधिकारिक प्रस्ताव आया है। यह एआई आधारित सॉफ्टवेयर मरीजों के लिए काफी मददगार साबित होगा। इससे कम समय में अधिक लोगों में डायबिटिक रेटिनोपैथी की पहचान की जा सकेगी।
संसाधन विहीन इलाकों में लोगों को मिलेगी राहत
चिकित्सकों के मुताबिक दून अस्पताल के नेत्र रोग विभाग में एआई सॉफ्टवेयर स्थापित होने से ऐसे क्षेत्रों को सबसे अधिक लाभ मिलेगा जो चिकित्सा के क्षेत्र में आज भी संसाधन विहीन है। चिकित्सक की टीम पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित गावों के सभी मधुमेह पीड़ित लोगों को एकत्रित कर उनकी फंडस कैमरे के माध्यम से फोटो खींचेगी। इन सभी फोटो को एक साथ एआई सॉफ्टवेयर में लगाकर जांच करने के बाद रोग से पीड़ित मरीजों की पहचान की जा सकेगी। दून अस्पताल में डायबिटिक रेटिनोपैथी की पहचान के लिए एआई सॉफ्टवेयर स्थापित होने से बड़ी संख्या में मरीजों को लाभ मिलेगा। इसकी मदद से कम समय में अधिक मरीजों में रोग की पहचान की जा सकेगी। – डॉ. अनुराग अग्रवाल, चिकित्सा अधीक्षक, दून अस्पताल