देहरादून। उत्तराखंड में संसाधनों के अभाव में आम जनता को ओवरलोडिंग बसों के साथ डग्गामार वाहनों में सफर करना पड़ता है। इसकी कीमत कई बार लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है। अल्मोड़ा बस हादसे में भी ऐसा ही हुआ था। इस हादसे में भी 38 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। अब इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने और यात्रियों की सहूलियत को देखते हुए उत्तराखंड परिवहन निगम पर्वतीय क्षेत्रों में भी बसों का बेड़ा बढ़ाने की सोच रहा है। इससे उत्तराखंड परिवहन निगम पर वित्तीय बोझ भी पड़ेगा प्रदेश के चार जिले ऐसे हैं, जहां आजादी से बाद से तक परिवहन निगम का कोई डिपो नहीं है।
करीब 20 साल बाद फायदा में पहुंचा उत्तराखंड परिवहन निगम। साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन होने के करीब तीन साल बाद यानी साल 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम अस्तिव में आया। तब से लेकर साल 2022-23 तक उत्तराखंड परिवहन निगम हमेशा घाटे में रहा है। एक बार साल 2006-07 में परिवहन निगम को दो करोड़ 75 लाख रुपए का फायदा हुआ था। साल 2022-23 में पहली बार ऐसा हुआ था, जब न सिर्फ उत्तराखंड परिवहन निगम घाटे से उबरा था, बल्कि 27 करोड़ रुपए का मुनाफा भी कमाया था। इसके बाद पिछले वित्तीय वर्ष 2023-2024 में परिवहन निगम ने रिकॉर्ड तोड़ 56 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया था। फिर भी परिवहन निगम की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है कि वो अपने बेड़े में बसों की संख्या को बढ़ा सके।
यूपी से अलग होकर उत्तराखंड को मिली थी 957 बसें। यूपी से अलग होकर बने उत्तराखंड के हिस्से में नई और पुरानी कुल 957 बसें आई थी। इसके बाद उत्तराखंड सरकार ने सीमित संसाधनों के साथ रोडवेज का संचालन किया और जैसे-तैसे कर्ज के दलदल से निकाला गया। कोरोना काल में तो परिवहन निगम का घाटा 520 करोड़ तक पहुंच गया था. हालांकि आज उत्तराखंड परिवहन निगम प्रॉफिट में है और आम जनता को बेहतर सुविधा देने का प्रयास किया जा रहा है।
उत्तराखंड में परिवहन निगम के तीन डिवीजन। उत्तराखंड परिवहन निगम के प्रदेश में तीन डिवीजन है. इनमें देहरादून, नैनीताल और टनकपुर शामिल हैं। इन तीनों डिवीजन के अधीन प्रदेश भर में कुल 20 डिपो मौजूद हैं. देहरादून डिवीजन में कुल 8 डिपो हैं। इनमें देहरादून डिपो, देहरादून ग्रामीण डिपो, देहरादून पर्वतीय डिपो, ऋषिकेश डिपो, हरिद्वार डिपो, रुड़की डिपो, कोटद्वार डिपो और श्रीनगर डिपो शामिल हैं.इसके अलावा नैनीताल डिवीजन में 9 डिपो । इसमें हल्द्वानी डिपो, काठगोदाम डिपो, रामनगर डिपो, भवाली डिपो, काशीपुर डिपो, रुद्रपुर डिपो, रानीखेत डिपो, अल्मोड़ा डिपो और बागेश्वर डिपो शामिल हैं. इसी क्रम में टनकपुर डिवीजन में तीन डिपो हैं। इसमें टनकपुर डिपो, लोहाघाट डिपो और पिथौरागढ़ डिपो शामिल हैं.
चार जिलों में परिवहन निगम का कोई डिपो नहीं। उत्तराखंड परिवहन निगम के प्रदेश के 9 जिलों में डिपो मौजूद हैं। प्रदेश के चार जिले ऐसे भी हैं। जहां देश की आजादी के बाद से अभी तक एक भी डिपो स्थापित नहीं हो पाया है। इन चार जिलों में चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और टिहरी जिले शामिल हैं। चारों जिले पर्वतीय जिले हैं। फिर भी परिवहन निगम इस जिलों में बसों का संचालन करता है, लेकिन समिति संख्या में है। ऐसा नहीं है कि इन चारों जिलों में डिपो की आवश्यकता महसूस नहीं हुई, लेकिन परिवहन निगम के घाटे के चलते इस दिशा में ध्यान नहीं दिया गया। इस दिशा में विचार किया जा रहा है। इस पूरे मामले पर उत्तराखंड परिवहन निगम के एमडी डॉ आनंद श्रीवास्तव ने बताया कि उत्तराखंड के चार जिलों में अभी तक एक भी डिपो नहीं बन पाया है। अब जरूरत को देखते हुए एक या दो जगह पर नए डिपो बनाने और कुछ डिपो की स्थिति को बेहतर करने पर जोर दिया जा रहा है। ये जरूर है कि जब कोई नया डिपो बनाया जाता है, तो फिर उसमें वर्कशॉप भी बनाना होता है।एमडी आनंद श्रीवास्तव भी मानते हैं कि यदि इन जिलों में डिपो बनाये जाते हैं, तो उसका फायदा भी मिलेगा। कई बार इन इलाकों में बस खराब होने पर काफी दिक्कतों होती हैं। क्योंकि 50 से 100 किलोमीटर के अंदर कोई वर्कशॉप नहीं है। ऐसे में यदि आसपास वर्कशॉप होगा, तो बसें आसानी से ठीक हो जाएंगी। साथ ही आम जनता को भी काफी फायदा मिलेगा। परिवहन निगम का उद्देश्य जनता को सेवाएं उपलब्ध कराना है। बसों की संख्या बढ़ने पर आम जनता का सफर पहले से ज्यादा आरामदायक होगा।