काशीपुर के किसान प्रदेश में पहली बार ग्रोईट प्री-होल प्लास्टिक मल्चिंग के प्रयोग से प्याज उगा रहे हैं। इस विधि से पैदावार में 30-35 प्रतिशत वृद्धि होती है। खरपतवार की समस्या उत्पन्न नहीं होती है, जिससे निराई-गुड़ाई में लगने वाले हजारों रुपयों की बचत हो जाती है। मल्चिंग पेपर से पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है और फसल कम समय में तैयार होती है।काशीपुर के कुंडेश्वरी क्षेत्र में कुमाऊं ब्लॉक के दो किसानों ने करीब तीन बीघे में इस नई विधि से प्याज की फसल लगाई है। किसान गोपी बिष्ट ने बताया कि ग्रोईट प्री-होल प्लास्टिक मल्चिंग की मदद से प्याज लगाने से उन्हें काफी फायदा हुआ है। उन्होंने बिना मल्चिंग पेपर के भी प्याज उगाया है, जिसमें दो बार निराई-गुड़ाई करवा चुके हैं।
फसल भी उतनी बेहतर नहीं है। उन्होंने कहा कि पारंपरिक विधि के मुकाबले इस विधि से खेती करने पर फसल की अच्छी ग्रोथ देखने को मिल रही है। अगली फसल में इसका और अधिक प्रयोग करेंगे।इसी क्षेत्र के कैलाश मैथानी ने ग्रोईट प्री-होल प्लास्टिक मल्चिंग पेपर विधि से प्याज बोया है। इससे पौधों की जड़ों का अच्छी तरह से विकास हो रहा है। इसमें पानी भी कम लगाना पड़ता है। मल्चिंग पेपर पानी को सोख लेता है, जिससे नमी बनी रहती है। मल्चिंग पेपर में चार इंच की दूरी पर छेद रहता है, जिससे पौधों की संख्या भी बढ़ जाती है।
इस प्रकार करें प्रयोग
प्याज का उत्पादन बढ़ाने के लिए 25 माइक्रोन के मल्चिंग पेपर का प्रयोग करिए। एक एकड़ में सात मल्चिंग पेपर लगते हैं। एक मल्चिंग पेपर की चौड़ाई चार फीट और 400 मीटर लंबाई होती है। इसके इस्तेमाल से पहले खेत की दो-तीन बार अच्छी तरह जुताई करें। हर जुताई के बाद ढेले को तोड़कर बीज बोने के लिए क्यारी तैयार करें। इस क्यारी में उर्वरक या खाद डालें। इसमें ड्रिप इरिगेशन लाइन बिछाइए। इसके बाद प्री-होल्ड मल्चिंग पेपर बिछाकर पौधे रोपें।
ग्रोइट प्री-होल प्लास्टिक मल्चिंग के फायदे
प्रति एकड़ पौधों की संख्या बढ़ जाती है।
पौध गलन रोग नहीं होता है।
कम समय में फसल तैयार हो जाती है।
प्याज में चमक और रंग आता है।
भंडारण क्षमता बढ़ती है।
मिट्टी से पानी का वाष्पीकरण नहीं होने पाता है।
पौधों की वृद्धि के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है।
मल्चिंग पेपर के प्रयोग से प्रदेश में पहली बार प्याज उगाया जा रहा है। इसके प्रयोग से करीब 30-35 प्रतिशत पैदावार में वृद्धि होती है। इसी के चलते रक्षा जैव-ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (डीआईबीईआर) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की ओर से वित्त परियोजना के तहत क्षेत्र में प्याज के प्रदर्शन में इस विधि को बढ़ावा दिया जा रहा है। – डॉ. अनिल चंद्रा, उद्यान वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र







