देहरादून। निर्वाचन आयोग ने इस बार स्वीप गतिविधियों के माध्यम से मतदान प्रतिशत बढ़ाने की अपने सर्वोत्तम कोशिश की थी, लेकिन दून के मतदाताओं के आगे सभी प्रयास बेकार साबित हुए। दून के 45 फीसदी वोटर इस बार भी मतदान के दिन घरों से नहीं निकले। ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने इस बार भी मतदान को लेकर शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक जागरूकता दिखाई। यही वजह रही कि विकासनगर क्षेत्र में सर्वोच्च मतदान किया जा सका। देहरादून के सबसे हाईप्रोफाइल राजपुर क्षेत्र के माथे पर मतदान को लेकर बेरुखी का सबसे बड़ा दाग लगा।
कम मतदान की वजह
मतदान के प्रति उदासीन शहरी वोटर्स
मतदान प्रतिशत कम रहने की सबसे बड़ी वजह शहरी वोटर हैं। चुनावी प्रक्रिया और राजनीतिक दलों-उम्मीदवारों के प्रति उत्साह की कमी के कारण शहरी मतदाता मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं लेते। कई बार उन्हें लगता है कि उनका वोट मायने नहीं रखेगा या उनके एक वोट से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
वोट देने में रुचि नहीं रखते कामगार
कामगारों का एक बड़ा तबका वोट नहीं डाल पाता। सामान्य जीवन की चुनौतियों से जूझने की कोशिश में कामगार लोकतंत्र के महापर्व में शामिल नहीं हो पाते। कई बार अन्य व्यस्तताओं में भी उनका वोट नहीं पड़ पाता।
शादियों का सीजन भी बड़ी वजह
शादियों का सीजन भी मतदान प्रतिशत कम होने की वजह है। शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों में इस समय शादियां हैं। ऐसे में उत्तराखंड में मतदान प्रतिशत कम होने की मुख्य वजह शादी का सीजन भी माना जा रहा है। शादी समारोह में व्यस्त होने के चलते लोग बूथों तक नहीं पहुंच सके।
नहीं पहुंचे दूसरों जिलों में रह रहे लोग
मतदान प्रतिशत कम होने की वजह दूसरे जिलों से लोगों का नहीं पहुंचना भी बताया जा रहा है। चुनाव में परिवहन व्यवस्था ठप होने के चलते भी लोग अपने जिले में नहीं पहुंच पाए। टैक्सी का किराया महंगा होने के चलते लोगों ने इसकी सुविधा नहीं ली।
गर्मी भी बनी कारण
दिनभर चटक धूप रहने के चलते विकट गर्मी पड़ी। यह भी मतदान प्रतिशत घटाने का मुख्य कारण मानी जा रही है। हालांकि, कुछ बूथों पर शेड, पानी की व्यवस्था थी। जबकि, कुछ बूथों पर लंबी लाइन होने के चलते भी लोग बिना वोट दिए ही लौट गए।
वोटरों को बूथ तक लाने के प्रयास में कमी
भले ही लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही प्रदेशभर में सरगर्मियां तेज हो गई थीं। लेकिन, चुनाव के दिन वोटरों को बूथ तक लाने के सरकारी और दलों के प्रयास नाकाम साबित हुए। ग्रामीण इलाकों से लेकर मैदानी इलाकों तक यही स्थिति रही।
फर्स्ट डिवीजन नहीं आया दून बेकार गईं जागरूकता की लाख कोशिशें
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