हल्द्वानी। गौला नदी के किनारे रह रहे लोगों को बाढ़ की आशंका के बीच उससे बचाने के लिए प्रशासन ने उन्हें झोंपड़ियों सहित वहां से हटा दिया। अब इन 150 परिवार के लोगों का कष्ट यह है कि वे जाएं तो जाएं कहां। फिलहाल खुला आसमान ही उनकी छत है और उजाड़ वाली वही जमीन ठहरने का ठिकाना। पेड़ों की छांव ही चिलचिलाती गर्मी का बचाव है। ढहे आशियानों को बार-बार देखकर उनका एक ही सवाल है कि आखिर अब उनकी सुध कौन लेगा।हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के सामने जवाहरनगर के समीप गौला नदी क्षेत्र में अतिक्रमण हटाए जाने के बाद मंगलवार को वहां का नजारा परेशान करने वाला था। नदी क्षेत्र में एक से दूसरे छोर तक कहीं बांस के डंडे, तो कहीं बिखरी काली पन्नी बता रही थी कि चंद रोज पहले तक यहां एक-दो नहीं बल्कि 50 से अधिक झोंपड़ियां थीं।
कूड़ा बीनकर, गौला नदी से निकाले गए पत्थर तोड़कर उन्हें ट्रकों में लोड कर हर रोज दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने वाले लोग इनमें गुजर बसर कर रहे थे। प्रशासन और वन विभाग ने इन्हें नदी क्षेत्र से इसलिए हटा दिया ताकि मानसून सीजन में ऊफान पर आने वाली गौला नदी के वे शिकार न हों। झोंपड़ी तोड़ने पहुंचे अधिकारियों ने उनसे केवल इतना कहा था कि वे यहां से चले जाएं। नहीं गए तो सोमवार को वहां बुलडोजर भी चलाया गया। उजाड़े गए लोगों का सवाल है कि वे अब कहां जाएं? आर्थिक तंगी के चलते किराये का कमरा लेकर रहना उनके लिए किसी सपने से कम नहीं है। ऐसे में अब इन लोगों की मांग है कि प्रशासन उन्हें कहीं ऐसी जगह विस्थापित करा दे, जहां से बार बार हटना न पड़े। आखिर इसके लिए कई सरकारी योजनाएं भी तो हैं।
पेड़ों पर डाले झूले
गौला नदी क्षेत्र से उजाड़े गए लोगों ने धूप से बचने के लिए पेड़ों पर धोती व अन्य कपड़ों के झूले डाल लिए हैं। ताकि वे कुछ देर आराम भी दे सकें और गर्मी से राहत भी। ये झूले बच्चों को कुछ देर के लिए खुशी भी दे रहे हैं। उन्हें इतना ही पता है कि अब खुले में ही रहना होगा।