घंटे घड़ियाल की गूंज के बीच जनम-जनमों की बंध रही डोर। एक अलौकिक माहौल के बीच सात फेरों का अटूट बंधन। आशीर्वाद खुद न्याय के देवता गोलू का, जिनके दरबार में दहेज के अन्याय की भी कोई जगह नहीं। बरातियों के साथ यहां बैंड, बाजा, शोरगुल नहीं, न कोई चकाचौंध। बस गोलू देव को साक्षी मान स्टांप पेपर पर शपथ के बाद सात फेरे और सात जनमों का बंधन संपन्न। घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर में सालों पहले ऐसे विवाह की रीत जो उस वक्त चलन से बाहर थी, आज एक परंपरा बन चुकी है। गोलू देव मंदिर में विवाह का चलन 1972 से मंदिर के पुजारी केदार दत्त जोशी ने शुरू किया था।
चार दशक तक यहां शादी करने बहुत अधिक संख्या में लोग नहीं जाते थे। तब घरों से बरात ले जाने का ही चलन था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यहां शादी करना एक प्रचलन बन चुका है।अब एक दिन में यहां 10 से 12 शादियां होती हैं। शादी के लिए यहां अलग-अलग स्थान बने हैं लेकिन गर्मियों में जब ज्यादा शादियां होती हैं तो मंदिर में जहां स्थान मिलता है, वहां सात फेरों की रस्म निभाई जाती है। पिछले पांच साल में ही यहां 5,200 और अब तक 25,000 से अधिक शादियां हो चुकी हैं।
न पंडाल, न जयमाल का स्टेज
आजकल की शादियों में पंडाल, जयमाल, बिजली की माला समेत तमाम ऐसे खर्च हैं जो कि दिखावे में ज्यादा हैं। यहां कम खर्च में शादी कर मध्यम वर्गीय परिवार आडंबरी खर्च से भी बच रहे हैं। मंदिर में न पंडाल की जरूरत, न बिजली की माला और न जयमाला का स्टेज। यहां विवाह दहेज रहित होते हैं। बस शादी के लिए जरूरी सामान ही यहां लाया जाता है। मंदिर में ही शादी में शामिल लोगों के लिए खानपान की व्यवस्था की जाती है।
यहां विवाह का विशेष महत्व है। मंदिर में विवाह करने वालों में अगर किसी जोड़े की कुंडली नहीं भी मिली हो तो उसका प्रभाव वर-वधु पर नहीं पड़ता। यह प्रभाव गोलू देवता अपने ऊपर ले लेते हैं। मंदिर में विवाह करने के लिए एक स्टांप पेपर के साथ पांच लोगों को गवाह बनना होता है। विवाह के दौरान दोनों पक्षों के अभिभावकों का होना अनिवार्य होता है। – रमेश चंद्र जोशी, पुजारी घोड़ाखाल मंदिर