Sunday, September 21, 2025
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खड़िया खनन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए क्या किया

बागेश्वर जिले की तहसील कांडा के कई गांवों में खड़िया खनन से आई दरारों के मामले में हाईकोर्ट ने पूछा है कि पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए व खनन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। यह जानने के लिए राज्य स्तरीय पर्यावरण अथॉरिटी उत्तराखंड के चेयरमैन डॉ. अमूल्य रतन सिन्हा को कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी। कांडा तहसील के ग्रामीणों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजकर कहा था कि अवैध खड़िया खनन से उनकी खेतीबाड़ी, घर, पानी की लाइनें चौपट हो चुकी हैं। वहां 147 खड़िया की खदान हैं। वहां पर पोकलैंड जैसी भारी मशीनों से खनन हुआ है। इससे वहां दरारें आई हैं।

इस तरह के मिले पत्रों पर मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर एवं न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ स्वतः संज्ञान लेकर पंजीकृत जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।शुक्रवार को सुनवाई के दौरान जिला खान अधिकारी ने बताया कि गड्ढों को भरने के संबंध में उत्तराखंड भूजल प्राधिकरण को एजेंसी बनाया गया है। जबकि याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि उत्तराखंड भूजल प्राधिकरण का गठन नहीं हुआ है। इस पर कोर्ट ने कहा कि गड्ढे भरने के संबंध में जिला खान अधिकारी व उत्तराखंड के सचिव सिंचाई के नामित भूजल एक्सपर्ट कार्य करेंगे, जिसकी निगरानी केंद्रीय भूजल बोर्ड और केंद्रीय भूतत्व सर्वे की मौजूदगी में होगा।

खदान सामग्री की नीलामी की दी जा चुकी है अनुमति
पूर्व में कोर्ट ने तीन सदस्यीय अधिकार प्राप्त समिति की अगुवाई में बागेश्वर जिले की खड़िया खदानों की सामग्री की नीलामी की अनुमति दे दी थी। स्टाक के निस्तारण के लिए बनाई गई नीलामी कमेटी को भी हाईकोर्ट अंतिम रूप दे चुका है। जिला खनन अधिकारी नाजिया हसन को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया। कोर्ट ने नीलामी प्रक्रिया को छह सप्ताह में पूरा करने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं कोर्ट ने सरकार को खड़िया खनन के फलस्वरूप हुए गड्ढों को सीजीडब्ल्यूबी की अगुवाई में भरने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने फिलहाल अल्मोड़ा मैग्नेसाइट खदान को खोलने की अनुमति नहीं दी।

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