सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें राज्य चुनाव आयुक्त को यह जांच करने का निर्देश दिया गया था कि एक अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, जो अंग्रेजी समझ सकता है, लेकिन बोल नहीं सकता, क्या कार्यकारी पद पर प्रभावी नियंत्रण कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में चुनाव संबंधी जनहित याचिका दायर करने वाले आकाश बोरा और 53 उन लोगों को भी नोटिस जारी किया है जिन पर बाहरी राज्यों का निवासी होने के बावजूद यहां की मतदाता सूची में शामिल होने का आरोप था।मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई,जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि राज्य चुनाव आयुक्त और मुख्य सचिव इस बात की जांच करें कि क्या अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट संवर्ग का कोई अधिकारी जो अंग्रेजी में बात करने में असमर्थ हो, वह चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) जैसे कार्यकारी पद को संभालने और इसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने की स्थिति में होगा।
हाईकोर्ट के इस आदेश को उत्तराखंड के चुनाव आयुक्त और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से चुनौती दी थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा कि अगले आदेश तक उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 18 जुलाई 2025 के निर्णय और आदेश पर रोक रहेगी। मामले में उच्च न्यायालय इस विषय पर भी विचार कर रहा था कि क्या परिवार रजिस्टर एक ऐसा दस्तावेज है जिस पर निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची को अंतिम रूप देने के लिए भरोसा कर सकता है। इसमें यह देखा गया कि उत्तर प्रदेश पंजीकरण नियम 1994 में परिवार रजिस्टर का उल्लेख नहीं था जो उत्तर प्रदेश पंचायत राज, परिवार रजिस्टरों का रखरखाव नियम 1970 के बाद लागू किए गए थे।
यह था मामला
बुधलाकोट निवासी आकाश बोरा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि उनके ग्राम की वोटर लिस्ट में 82 बाहरी लोगों के नाम शामिल किए गए हैं। इनमें अधिकतर ओडिशा और अन्य जगह के हैं। जब इसकी शिकायत उन्होंने एसडीएम से की तो उन्होंने एक जांच कमेटी गठित की। जांच कमेटी ने वोटर लिस्ट का अवलोकन कर पाया कि इसमें 18 लोग बाहर के है लेकिन अंतिम लिस्ट जारी होने के बाद भी चिह्नित 18 लोगों के नाम वोटर लिस्ट से नहीं हटाए गए। जनहित याचिका दायर करने के बाद उन्होंने ऐसे ही 30 अन्य की लिस्ट भी कोर्ट में पेश की। सुनवाई के दौरान आयोग की तरफ से कहा गया कि कुछ लोगों को चिह्नित किया गया है।वोटर लिस्ट बनाते वक्त बीएलओ के ने घर-घर जाकर वोटरों को चिह्नित किया था। उसी आधार पर लिस्ट बनाई गई लेकिन कोर्ट ने आयोग से पूछा कि जब वोटर लिस्ट बनाई गई तो उस वक्त वोटरों का आधार कार्ड, वोटर आईडी या राशन कार्ड या स्थायी निवास से संबंधित दस्तावेज की जांच की। अगर की है तो उसका रिकॉर्ड पेश करें या मौखिक तौर पर नाम बताए जाने के आधार पर उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल कर दिया।