Sunday, September 21, 2025
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बिना निर्धारित प्रक्रिया के चार वर्ष बाद पदावनति बड़ा दंड

नैनीताल हाईकोर्ट ने कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी को चार वर्ष से अधिक समय तक उच्च पद पर कार्य करने के बाद अचानक निचले पद पर भेजना गंभीर दंड की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी कार्रवाई बिना अनुशासनात्मक नियमों की निर्धारित प्रक्रिया अपनाए नहीं की जा सकती। न्यायालय ने इस आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को पुनः उच्च पद (लेवल-10) पर कार्य करने देने का निर्देश दिया। मामले में याचिकाकर्ताओं बीरेंद्र सिंह नबियाल और अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इनमें एक याचिकाकर्ता को प्रारंभ में लेखा परीक्षक के पद पर अप्रैल 1998 में नियुक्त किया गया था और अक्टूबर 2005 में वरिष्ठ लेखा परीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया। दो अन्य याचियों को जून 1995 में लेखा परीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया और 2004 में वरिष्ठ लेखा परीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया। सभी याचिकाकर्ताओं को 30 जून 2014 को सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी और जनवरी 2021 में विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) की अनुशंसा पर सहायक निदेशक, लेखा परीक्षक अधिकारी (लेवल-10) के पद पर पदोन्नत किया गया।

उन्होंने चार साल से अधिक समय तक इस उच्च पद पर कार्य भी किया। इस बीच ट्रिब्यूनल ने 14 अगस्त 2023 को विभाग को डीपीसी की समीक्षा करने का निर्देश दिया। इस आधार पर विभाग ने मार्च 2025 में एक नया आदेश जारी कर उन्हें पदोन्नत किया और अगले ही दिन उन्हें उनके पूर्व पद (लेवल-8) पर वापस भेज दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ के समक्ष हुई। कोर्ट ने कहा कि चार वर्ष से अधिक समय तक उच्च पद पर काम करने के बाद पदावनति करना नियम 2003 के तहत बड़ा दंड है, और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही की पूरी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। पीठ ने माना कि 2021 में की गई पदोन्नति वैध डीपीसी के आधार पर थी और ट्रिब्यूनल ने केवल समीक्षा-डीपीसी का निर्देश दिया था, न कि पदावनति का। ऐसे में विभाग का 19 मार्च 2025 को जारी पदावनति का आदेश अवैध है। न्यायालय ने इस आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को पुनः उच्च पद (लेवल-10) पर कार्य करने देने का निर्देश दिया।

18 मार्च को सचिव ने दी पदोन्नति अगले ही दिन निदेशक ने कर दिया पदावनत
इस प्रकरण पर विभाग ने अजीब प्रक्रिया अपनाई। 18 मार्च 2025 को सचिव वित्त ने इन्हें सहायक निदेशक के पद ( लेवल 10) पर पदोन्नत किया और अगले ही दिन 19 मार्च को निदेशक ने उन्हें सहायक निदेशक (स्तर-10) के पद से सहायक लेखा परीक्षक अधिकारी (स्तर-8) के पद पर वापस कर दिया। मामले में वर्ष 2022 में दिनेश चंद्र पांडे ने उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण के समक्ष याचिका दायर कर मांग की थी कि उनकी वरिष्ठता की गणना पदोन्नति आदेश की तिथि से की जाए, न कि कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से। अगस्त 2023 में न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया कि दिनेश की पदोन्नति पर विचार करने के लिए उसके कनिष्ठों की पदोन्नति की तिथि से एक समीक्षा विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) आयोजित की जाए। यदि दिनेश योग्य पाया जाता है, तो उसे सभी परिणामी लाभों के साथ पदोन्नति दी जाए। न्यायाधिकरण के आदेश के क्रम में, 18 मार्च 2025 को प्रतिवादियों को सहायक निदेशक के पद पर पदोन्नत किया गया लेकिन 19 मार्च 2025 को सहायक निदेशक (स्तर-10) के पद से सहायक लेखा परीक्षक अधिकारी (स्तर-8) के पद पर वापस कर दिया गया।

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