इस अति दुर्लभ पौधे का नाम भूत पौधा तो है ही, इसकी हरकतें भी भुतहा ही हैं। पौधों जैसा तो इसमें कुछ भी नहीं है। यह उगता भी है, जीता भी है मगर इसमें भूत पौधे की बिलकुल भी भूमिका नहीं। पहला भूत पौधा, इसे पोषक तत्व मिलते हैं दूसरे पौधे से और यह पोषक तत्व देता है तीसरा यानी एक फंगस। मगर दूसरों की कृपा पर पूरी तरह निर्भर यह पौधा वैज्ञानिक लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण श्रेणी में आता है, इसीलिए इसका नैनीताल के जंगलों में मिलना यहां जैव विविधता के एक बड़े संसार को दर्शा रहा है। दुर्लभ पौधा इंडियन पाइप या घोस्ट प्लांट (मोनोट्रोपा यूनिफ्लोरा) नैनीताल जिले के विनायक वन क्षेत्र में मिला है।
यहां इसे पहली बार प्रसिद्ध पर्यावरणविद पद्मश्री अनूप साह ने देखा। साह ने बताया कि इसकी खास बात यह है कि इस पौधे में क्लोरोफिल (हरित लवक) बिल्कुल नहीं होता और यह अपना पोषण अन्य पौधों की जड़ों से प्राप्त करता है। अनोखे स्वरूप वाला यह पौधा पूरी तरह परजीवी प्रकृति का है। सफेद या हल्के गुलाबी रंग का होने के कारण यह किसी पाइप या भूत जैसी आकृति का प्रतीत होता है, इसलिए इसे ‘भूत पौधा’ भी कहा जाता है। इसकी ऊंचाई 10 से 30 सेंटीमीटर तक होती है। पौधे के शीर्ष पर छोटे-छोटे झुके हुए घंटी जैसे फूल खिलते हैं जिनमें हल्की गुलाबी या नीली छटा देखी जा सकती है।
विशेष परिस्थितियों में ही उगता है यह पौधा
यह पौधा प्रकाश संश्लेषण नहीं करता बल्कि माइकोराइजल फंगस के जरिये पोषण पाता है। फंगस दूसरे पेड़ों की जड़ों से कार्बनिक तत्व लेकर इस पौधे को उपलब्ध कराता है। यह अत्यधिक नमी वाली, ठंडी और छायादार जगहों पर ही उगता है। बरसात के मौसम में कुछ हफ्तों के लिए जमीन से निकलकर दिखाई देता है और फिर मुरझा जाता है।
जैव विविधता के लिहाज से अहम खोज
विशेषज्ञों के अनुसार, यह पौधा भारत में बेहद कम स्थानों पर पाया जाता है। नैनीताल में इसका मिलना यहां की समृद्ध जैव विविधता का प्रमाण है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस पौधे का संरक्षण जरूरी है, क्योंकि यह न केवल प्रकृति की अनूठी देन है बल्कि पारिस्थितिकीय अध्ययन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।