वैसे तो मानसून पहाड़ी राज्यों के लिए हर वर्ष बड़ी चुनौती और विषम परिस्थितियां लेकर आता है, मगर इस बार तबाही के मंजर विकराल हैं। आपदा ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर में जानमाल को भारी नुकसान पहुंचाया है। अचानक बादल फटने की घटनाओं में बढ़ोतरी, भूस्खलन और टूटते ग्लेशियरों से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। स्थानीय लोगों में दहशत तो है ही, पर्यटकों में भी भय व्याप्त है। आपदा के बाद पर्यटकों ने भी दूरी बनानी शुरू कर दी है। इससे राज्यों की आर्थिकी प्रभावित हो रही है।
उत्तराखंड : हर तरफ तबाही, 57 सौ करोड़ की मांगी राहत
उत्तराखंड महीने भर से आपदाओं से जूझ रहा है। ग्लेशियर टूटकर गिर रहे हैं। अचानक बादल फट रहे हैं। नदियां पूरे वेग से उफान पर हैं। लगातार बन रहीं अस्थायी झीलों ने बड़ी आबादी, सरकार और वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। नए भूस्खलन क्षेत्र बनने से जगह-जगह पहाड़ दरक रहे हैं। जमीन और मकानों में गहरी दरारें पड़ गई हैं। इस वर्ष राज्य को 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सबसे बड़ी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है। राज्य की आर्थिकी चारधाम यात्रा से भी जुड़ी है, मगर सीजन में 55 दिन यात्रा नहीं हो सकी। राज्य सरकार ने हालात से उबरने के लिए केंद्र से 5,702 करोड़ की विशेष सहायता मांगी है। राज्य के 13 जिलों में से दस किसी न किसी रूप में आपदा की चपेट में हैं। एक अप्रैल से 31 अगस्त तक 79 लोग जान गंवा चुके हैं। 115 घायल और 90 लापता हैं। 238 भवन ध्वस्त हुए और 2,835 पक्के भवन गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। सर्वाधिक नुकसान उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पौड़ी और पिथौरागढ़ में हुआ है। 5 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा के जख्म अब भी हरे हैं। लापता लोगों की तलाश अभी तक पूरी नहीं हुई है। प्रभावित परिवार राहत शिविरों में रह रहे हैं। बने दर्जनों होम स्टे और होटल मलबे में दबे हैं। धराली को पार कर गंगोत्री जाने वाला मार्ग भी सुचारू नहीं हो सका है। हर्षिल जैसी खूबसूरत घाटी भी सुनसान पड़ी है। पर्यटकों की दूरी से लोगों के कामधंधे चौपट हो गए हैं। कई एकड़ में फैले सेब के बगीचे मलबे में दब गए हैं। मां गंगा के मायके मुखबा के सामने भागीरथी नदी के किनारे पांडव कालीन कल्पकेदार मंदिर भी करीब 40 फीट मलबे में दब गया है। सबसे यमुनोत्री धाम की यात्रा भी जंगलचट्टी के पास नेशनल हाईवे पर भूस्खलन के कारण बंद है। धराली आपदा के अगले दिन पौड़ी जिले के कई स्थानों पर बादल फटने और भूस्खलन की वजह से जानमाल का भारी नुकसान हुआ। चमोली के थराली में बादल फटने से पूरा मलबे से घिर गया। तब से लगातार भूस्खलन हो रहा है। नंदानगर में ही सीढ़ीनुमा खेतों में गहरी दरारें आ गई हैं और एक फीट तक धंस गए हैं।
केदारनाथ की त्रासदी से अधिक नुकसान
उत्तराखंड को इस मानसून केदारनाथ की त्रासदी से अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। विभिन्न धार्मिक व पर्यटन स्थलों तक पहुंचाने वाले हाईवे से लेकर दूरस्थ गांवों को जोड़ने वाले छोटे मार्ग भारी बारिश, भूस्खलन के कारण सर्वाधिक प्रभावित हैं। इन मार्गों को सुचारू करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। सरकार ने अभी तक सड़क, बिजली, पेयजल, पशुपालन, शिक्षा विभाग को 1,944 करोड़ के सीधे तौर पर नुकसान का अनुमान लगाया है। इनमें बहुत-सी संपत्ति आपदा के कारण नष्ट हुई हैं, उन्हें ठीक करने के लिए 3,758 करोड़ की जरूरत का अनुमान है। चिंता राज्य की बड़ी आबादी अपने घर-दुकानें छोड़ने को मजबूर है। नई पीढ़ी होम स्टे और अन्य स्टार्टअप की मदद से अपनी जड़ों से जुड़ने लगी थी। बीते कुछ साल में लोगों ने घर वापसी शुरू की है। अब इन आपदाओं के दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेंगे और पलायन की चिंता फिर बढ़ेगी।
हिमाचल : ढाई माह में 360 की मौत 3979 करोड़ का नुकसान
हिमाचल प्रदेश ढाई महीनों से प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। बादल फटने, भारी बारिश, बाढ़ व भूस्खलन के कारण जून माह के आखिरी सप्ताह से लेकर अब तक 360 लोगों की मौत हो चुकी है। 47 लोग लापता हैं। इस मानसून सत्र में सैकड़ों घर जमींदोज हो गए। 5,162 घर क्षतिग्रस्त हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 3,979 करोड़ का नुकसान हो चुका है। प्रदेश के सभी जिले आपदा का दंश झेल रहे हैं, लेकिन कुल्लू, मंडी, चंबा, शिमला व कांगड़ा सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ढाई माह के दौरान ही प्रदेश में 50 से ज्यादा स्थानों पर बादल फटे हैं, जबकि बाढ़ की 96 और भारी भूस्खलन की 133 घटनाएं हो चुकी हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में बादल फटने के साथ भारी भूस्खलन हो रहा है। कागड़ा व ऊना के निचले इलाके बाढ़ और जलभराव से बेहाल हैं। बारिश- भूस्खलन से एनएच समेत सैकड़ों सड़कें बंद पड़ी हैं। कुल्लू, चंबा, मंडी, सिरमौर, शिमला और कांगड़ा जिला के कई इलाकों का सड़क संपर्क कट गया है। चंडीगढ़-मनाली और कालका-शिमला एनएच रोज बाधित हो रहे हैं। सड़कें अवरुद्ध होने के कारण 5,000 करोड़ रुपये (सालाना) की बागवानी को बड़ी मार पड़ी है। रेल और हवाई यातायात भी बाधित है। पर्यटन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। प्रदेश में 30 जून की रात को मंडी के सराज, करसोग और नाचन क्षेत्र में एक ही रात 17 जगह बादल फटे। पवित्र मणिमहेश यात्रा के दौरान चंबा के भरमौर में भारी तबाही हुई। करीब 20 मणिमहेश यात्रियों की जान चली गई। मणिमहेश और किन्नौर कैलाश यात्राओं को समय से पहले बंद करना पड़ा है।
पंजाब : 1500 गांव बाढ़ की चपेट में, 3.87 लाख प्रभावित
आपदा की चपेट में आए पंजाब में नदियों के उफान से तबाही का मंजर है। इतिहास की सबसे बड़ी बाढ़ त्रासदी ने सबको झकझोर कर रख दिया है। अब तक 46 लोगों की जानें जा चुकी हैं। 1.74 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हो चुकी है। सभी 23 जिलों के करीब 1500 गांव और 3.87 लाख से अधिक आबादी बाढ़ की चपेट में है। लोगों के आशियाने, सामान और पशुधन बाढ़ में बह चुके हैं। रावी, ब्यास व सतलुज नदी पंजाब की लाइफलाइन मानी जाती हैं। इनकी सहायक नदियों व रजवाहों के जरिये हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली तक जलापूर्ति होती है। यहीं से कुछ पानी पाकिस्तान में भी प्रवेश करता है। पहाड़ों से आने वाले पानी के प्रबंधन के लिए रूपनगर व बिलासपुर सीमा पर सतलुज नदी पर भाखड़ा डैम, पठानकोट में रावी नदी पर रणजीत सागर डैम और शाहपुर कंडी डैम व कांगड़ा में ब्यास नदी पर पौंग डैम बने हुए हैं। हिमाचल व पंजाब में सामान्य से अधिक बारिश के चलते बांधों के गेट कई बार खोलने पड़े। इसका सीधा नुकसान पंजाब ने झेला। 1988 में पंजाब में सबसे भीषण बाढ़ आई थी। तब 11.20 लाख क्यूसेक पानी डिस्चार्ज हुआ था। इस साल 30 अगस्त तक ही 14.11 लाख क्यूसेक पानी डिस्चार्ज हो चुका था। नदियों का जलस्तर बढ़ने से तटबंध कमजोर होकर टूट रहे हैं। बाढ़ का पानी गांवों में घुस रहा है। अमृतसर, तरनतारन, कपूरथला, पठानकोट, गुरदासपुर, मोगा, फिरोजपुर, फाजिल्का, होशियारपुर में हालात सबसे खराब हैं। अमृतसर के अजनाला के 45 गांवों में 4 फीट तक पानी भरा है। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीएसएफ और स्थानीय प्रशासन की टीमें राहत कार्यों में जुटी हैं।
हरियाणा : 24 से अधिक मौतें फसलें बर्बाद
हरियाणा के 12 जिले बाढ़ जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं। 27 साल बाद सामान्य से 48% ज्यादा बारिश से चारों प्रमुख नदियां यमुना, मारकंडा, टांगरी और घग्घर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। अंबाला, फतेहाबाद, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, कैथल, रोहतक, पलवल, सिरसा व दादरी के हजारों घर पानी में घिरे हैं। अब तक 24 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। 1.92 लाख किसानों की 11 लाख एकड़ फसल को नुकसान पहुंचा है। पलवल, फरीदाबाद, फतेहाबाद, भिवानी, कुरुक्षेत्र व अंबाला में 2,247 लोगों को राहत शिविरों में पहुंचाया गया है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें तैनात की गई हैं। झज्जर के बहादुरगढ़ में सेना के जवान भी बचाव अभियान में जुटे हुए हैं। हाल ये है कि प्रदेश के पांच नेशनल हाईवे पर यातायात बाधित चल रहा है।
जम्मू-कश्मीर : दशक की सबसे बड़ी त्रासदी, अब तक 123 की जान गई
जम्मू-कश्मीर के लिए अगस्त का महीना भारी तबाही लेकर आया। यह एक दशक में प्राकृतिक आपदा का यह सबसे बड़ा प्रहार है। इस तबाही ने राज्य में हो रहे तीव्र विकास की गति को काफी पीछे धकेल दिया है। प्राकृतिक आपदा में 123 लोगों की जानें जा चुकी हैं। लापता लोगों का 23 दिन बाद भी पता नहीं चल सका है। बादल फटने की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी से लोगों की चिंता बढ़ी हुई है। आसमानी आफत के जख्म इतने गहरे हैं कि उन्हें भरने में बरसों लगेंगे।सबसे भारी तबाही किश्तवाड़ के चिशोती में हुई। मछेल में मां चंडी का दर्शन करने पहुंचे हजारों लोग बादल फटने और पहाड़ों से आए भारी मलबे में फंस गए। 68 लोगों की मौत हो गई। तमाम लोग अब भी लापता हैं। 17 अगस्त को कठुआ में बॉर्डर से सटे इलाके में तीन जगह बादल फटे थे। इसमें सात की मौत हो गई थी। 31 अगस्त को रियासी में भूस्खलन से और रामबन में बादल फटने से पांच मासूमों समेत 11 लोगों की मौत हो गई। वैष्णो देवी यात्रा मार्ग में 26 अगस्त को भारी बारिश के कारण अर्धकुंवारी में भूस्खलन में 34 लोगों की मौत हो गई। यात्रा मार्ग के संवेदनशील इलाकों में स्थित होटलों, दुकानों को तुरंत खाली करने का आदेश दिया गया है। आपदा के चलते 12 दिनों से वैष्णो देवी यात्रा बाधित है। श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने दोबारा यात्रा शुरू होने तक हेलिकॉप्टर और आवास सहित सभी बुकिंग रद्द कर दी हैं। मौसम केंद्र श्रीनगर के उपनिदेशक मुख्तार अहमद के अनुसार, बादल फटने की घटनाएं पहले के मुकाबले बढ़ी हैं। हिमालय की घाटियों में कम दबाव का क्षेत्र बन रहा है। बादलों के छोटे छोटे पैकेट बन रहे हैं। ऐसे में वे नमी को संभाल नहीं पा रहे और बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। अब तक 2500 सड़कों को नुकसान पहुंचा है। जम्मू-श्रीनगर हाइवे एक सप्ताह से बंद है। कठुआ में 37 साल बाद रावी के धारा बदलने से जम्मू श्रीनगर हाइवे के कटने का खतरा बढ़ता जा रहा है। ट्रेनें निरस्त होने से रेलवे को रोजाना ढाई करोड़ रुपये की चपत लग रही है।