Wednesday, November 5, 2025
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पानी में भी मिलावट दांव पर लोगों की जिंदगी कानपुर से लाते सस्ता केमिकल से बना देते हैं टाटा नमक

गोरखपुर शहर में नमक की री-पैकिंग का खेल लंबे समय से चल रहा है। कानपुर से थोक में पिसा हुआ सस्ता नमक यहां लाया जाता है और यहां उसे नामी-गिरामी ब्रांड के पैकेट में पैक कर बाजार में खपा दिया जाता है। नमक में नमी रोकने के लिए एंटी केकिंग एजेंट के तौर पर पोटैशियम फेरोसायनाइड मिलाया जाता है। इससे नमक फ्री फ्लो हो जाता है। 12-15 रुपये प्रति पैकेट के मुनाफे के चक्कर में धंधेबाज लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय से ऐसा नमक खाने से लिवर खराब हो सकता है। गोरखपुर के नौसड़, ट्रांसपोर्टनगर और लालडिग्गी इलाके के कुछ घरों में चोरी-छिपे चल रहा है। बाजार के जानकारों के मुताबिक, थोक में सस्ता नमक लाने के बाद उसे ब्रांडेड पैकेट में भरा जाता है। इस खेल में प्रति पैकेट करीब 12 से 15 रुपये तक का मुनाफा होने के कारण इसमें शामिल लोग जोखिम उठाने से भी पीछे नहीं हटते।

दिल्ली से लाए गए रैपर में स्थानीय स्तर पर बनाई गई नकली पैकिंग इतनी सटीक होती है कि पहली नजर में ग्राहक को असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों और छोटे दुकानदारों तक ये नकली पैकेट बड़ी आसानी से पहुंच जाते हैं। उपभोक्ताओं को न केवल ठगी का शिकार होना पड़ता है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ने का खतरा बना रहता है। क्योंकि बिना किसी जांच-पड़ताल और गुणवत्ता मानक के यह नमक पैक किया जाता है। त्योहार और शादियों के सीजन में इस नकली पैकेट वाले नमक की मांग और भी बढ़ जाती है। खाद्य सुरक्षा विभाग ने बीते जनवरी में नौसड़ में संचालित एक नमक की फैक्टरी पर छापा मारकर कुछ सैंपल भी लिए थे।नमक स्वाद नहीं सेहत के लिए जरूरी है। पैक्ड नमक में अलग से मिलाए गए तत्व हानिकारक होते हैं। एंटी केकिंग एजेंट, सोडियम की अधिक मात्रा ब्लड प्रेशर को बढ़ा देता है। लंबे समय तक इसके प्रयोग से गुर्दे पर असर पड़ता है।- डॉ. प्रशांत अस्थाना, जिला अस्पताल

पानी में मिलावट लोगों की जिंदगी दांव पर लगा रहे धंधेबाज
पानी पिलाना पुण्य का काम होता है, लेकिन अपने मोटे मुनाफे के लिए धंधेबाज इसमें मिलावट कर लोगों की जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। शहर में शुद्ध पानी के नाम पर हो रहा धंधा सेहत के लिए खतरा बनता जा रहा है। रेलवे स्टेशन, मोहल्लों और दुकानों तक जो पानी जार, बोतल या पैकेट में मिल रहा है, उसकी कोई जांच नहीं होती। इसका फायदा धंधेबाज उठा रहे हैं।रेलवे स्टेशन के सामने की दुकानों पर रोजाना ऑटो से बोतलबंद पानी उतरता है। इसे प्लेटफार्म व ट्रेनों में बेच दिया जाता है जबकि रेलवे स्टेशन पर कुछ चुनिंदा ब्रांड का ही पानी बेचने की अनुमति है। शहर में पिछले छह महीने में हुई अलग-अलग जांच में पर्दाफाश हुआ कि बोतलबंद और पैकेट वाले पानी में आवश्यक खनिज तत्व नहीं हैं। पैक्ड पानी के नमूनों में कोलीफाॅर्म बैक्टीरिया की मौजूदगी की पुष्टि हुई है।इस बैक्टीरिया की वजह से पेट से संबंधित गंभीर बीमारियां होती हैं। इससे पहले जांच में केवल क्लोरीन मिलने की बात सामने आई थी, लेकिन अब बैक्टीरिया की मौजूदगी ने खतरे को और बढ़ा दिया है। इसके बावजूद शुद्ध पानी के नाम पर हर दिन शहर में करीब 20 लाख लीटर पानी की सप्लाई आरओ प्लांट के जरिये हो रही है।

गीडा से निकल रहीं लाखों बोतलें
गीडा स्थित पैकेज्ड वाटर यूनिट संचालक पुनीत श्रीवास्तव के अनुसार, गीडा व शहर में लगे प्लांटों से प्रतिदिन करीब चार लाख बोतल पानी बाजार में जाता है। इसके अलावा डेढ़ लाख बोतलें बहुराष्ट्रीय कंपनियों की ओर से सप्लाई होती हैं। इतना ही नहीं, शहर में 10 से अधिक अवैध पैकेजिंग प्लांट भी सक्रिय हैं, जहां बिना मानक पालन किए बोतल और पैकेट में पानी भरकर सीधे दुकानों और ग्राहकों तक पहुंचाया जा रहा है।

हाल की जांच में अधोमानक पाए गए नमूने
पिछले दिनों गोरखनाथ क्षेत्र समेत कई इलाकों में पैकेट और बोतल वाले पानी के नमूने लिए गए। इनमें से दो नमूनों की रिपोर्ट अधोमानक आई। सूत्रों का कहना है कि इन नमूनों में सिर्फ क्लोरीन पाया गया, जबकि आवश्यक खनिज तत्व नदारद थे। इसके बाद खाद्य सुरक्षा विभाग ने आठ पंजीकृत कारखानों से 10 नए नमूने लिए हैं और इन्हें विशेष जांच के लिए भेजा है। विभागीय अधिकारी मानते हैं कि यह जांच शहर में बिकने वाले पानी की असली तस्वीर सामने लाएगी।

आरओ प्लांट से हर दिन बिकता है 12 लाख लीटर से अधिक पानी
शहर में करीब 600 आरओ प्लांट संचालित हो रहे हैं। इनमें से अधिकांश किसी विभाग में पंजीकृत हैं और न ही इनके पानी की नियमित जांच होती है। हर प्लांट से औसतन 2000 लीटर से अधिक पानी रोज बेचा जाता है। इस हिसाब से देखें तो हर दिन करीब 12 लाख लीटर पानी तो केवल इन प्लांटों से ही घर-घर जा रहा है, जिनकी कोई जांच नहीं होती। हालात ये हैं कि कई संचालक अब ऑटो पर 1000 लीटर की टंकी रखकर मोहल्लों में घूम-घूमकर पानी बेचते हैं। जबकि नियम यह है कि पानी सील जार में ही उपलब्ध कराया जाएगा और उस पर निर्माता का नाम, उत्पादन तिथि और घुलनशील तत्वों की जानकारी अंकित होगा लेकिन ऐसा कहीं नहीं हो रहा।

बिना रोक-टोक ट्रेनों तक पहुंच रहीं पानी की बोतलें
पानी का धंधा मोहल्लों से लेकर रेलवे स्टेशनों तक फैला है। स्टेशन के गेट नंबर तीन के सामने चाय की एक दुकान के पास हर दिन ऑटो से पानी की बोतलें उतारी जाती हैं। यहां दो घंटे तक इन बोतलों को डीप फ्रीजर में रखा जाता है। इसके बाद पानी की बोतलें प्लेटफाॅर्म नंबर एक से लेकर नौ तक पहुंचा दी जाती हैं। ट्रेन आने के वक्त इन्हें प्लेटफाॅर्म व फुटओवरब्रिज पर कहीं किनारे रखा जाता है और जैसे ही ट्रेन चलने लगती है, इसको बोगियों में रखवा दिया जाता है। रास्ते में भी यात्रियों को बिना जांच वाला पानी पीने को मिलता है। कई बार जांच में ऐसा पकड़ा भी जा चुका है लेकिन धंधे पर रोक नहीं लग पा रही है।जब भी शिकायत आती है, जांच की जाती है। अभी तीन दिन पहले ही चार नमूनों की जांच रिपोर्ट आई है। लोगों को भी पानी खरीदते समय कंपनी का नाम, पैक करने की तारीख, आईएसआई मार्का आदि का ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा बोतलबंद पानी का सील होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा नहीं होने पर पानी खरीदने से बचें।- डॉ. सुधीर कुमार सिंह, सहायक आयुक्त खाद्य

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