उत्तरकाशी जनपद के गाजणा क्षेत्र में समुद्रतल से करीब आठ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित नचिकेता ताल जहां अपने प्राकृतिक नैंसर्गिग सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी यह महत्वपूर्ण स्थल है। ताल अपने आप में मृत्यु के रहस्य को छिपाए हुए है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषिकुमार नचिकेता को यमराज ने इसी ताल के किनारे मृत्यु के रहस्य की जानकारी साझा की थी। इसलिए इस ताल का नाम भी नचिकेता ताल है। करीब एक किमी क्षेत्र में फैला नचिकेता ताल नाग देवता सहित ऋषिकुमार नचिकेता की तपस्थली है। वहीं इस तपस्थली से कुछ दूरी पर एक छोटी सी गुफा है जिसे यमद्वार के रूप में जाना जाता है।जनपद के इतिहास के जानकार गुलाब सिंह नेगी ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाजस्रवा नाम के एक ऋषि हुआ करते थे। वह एक बार यज्ञ करते हुए गायदान कर रहे थे लेकिन वह दूध न देनी वाली गाय दान कर रहे थे। तब उनके पुत्र नचिकेता को यह बुरा लगा कि कहा कि अगर मैं भी आपके किसी काम नहीं रहा तो आप मुझे किसे दान करोगे।
बजस्रवा ऋषि ने गुस्से में अपने बेटे को यमराज को दान कर दिया था। मान्यताओं के अनुसार नचिकेता यमलोक पहुंचे लेकिन वहां पर यमराज के न मिलने पर उन्होंने तीन दिन तक उनका इंतजार किया। जब यमराज पहुंचे तो उन्होंने उस बालक से तीन चीजें मांगने को कहा। तब नचिकेता ने पहला अपने पिता के क्रोध को शांत करने सहित यज्ञ विधि की जानकारी मांगी। वहीं तीसरी चीज उन्होंने मृत्यु और उसके बाद ही रहस्य की जानकारी यमराज से मांगी लेकिन यमराज ने मना कर दिया और कहा कि यह गोपनीय है।उसके बाद नचिकेता ने केदारखंड में उल्लेखित चौरंगीखाल के समीप ताल के किनारे यमराज की तपस्या की। उसके बाद यम ने खुश होकर उन्हें वहां पर मृत्यु की रहस्य की जानकारी दी थी। बाद में उस ताल को नचिकेता ताल के नाम से जाना जाता है। वहीं हर वर्ष यहां पर नाग देवता के मेले के आयोजन के साथ नचिकेता की पूजा भी की जाती है।