Saturday, December 20, 2025
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हाथरस में है 125 साल पुरानी गोवर्धन जी की लेटी प्रतिमा

ब्रजभूमि के संतों की परंपरा में परम संत पं. गयाप्रसादजी महाराज का नाम श्रद्धा और भक्ति के साथ लिया जाता है। इनकी भक्ति स्थली और उनकी अस्थियों का विश्राम स्थल भी श्रीकृष्ण गोशाला में है। लगभग 125 वर्ष पुरानी यह गोशाला आज भी सेवा और संस्कारों का प्रतीक बनी हुई है। यहीं पर उसी समय की गोवर्धन जी की लेटी प्रतिमा भी है।पंडित गयाप्रसाद महाराज को श्रद्धालु लाल के बाबा के नाम से भी जानते हैं, इन्होंने सांसारिक जीवन से वैराग्य लेकर अपना संपूर्ण जीवन भगवान श्रीकृष्ण और गिरिराज महाराज की सेवा में समर्पित कर दिया था और अपना जीवन गोवर्धन की तलहटी में बिताया और वहीं से 11 सितम्बर 1994 को गोलोकवासी हुए। उनके शरीर त्याग के बाद, उनके अस्थि-अवशेषों को हाथरस के उनके अनुयायी और गोशाला के व्यवस्थापक श्याम कुमार शर्मा गोवर्धन से लाए थे और गोशाला में स्थित मंदिर के भूतल में उन्हें समाधिस्त किया गया। यह स्थल उनके तप और स्मृति का साक्षी बन गया। उसी दौरान गोशाला में वर्ष 1995 में गोवर्धन से लाई गई शिला आज भी स्थापित है।हर साल यहां भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इस साल यहां 25 व 26 अक्तूबर को अभिषेक आदि का आयोजन कियाा जाना है। हाथरस की यह श्रीकृष्ण गोशाला आज भी गोसेवा का केंद्र होने के साथ ब्रज की भक्ति परंपरा, संत जीवन और श्रीकृष्ण प्रेम की जीवंत धरोहर बन चुकी है।वर्ष 1962 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्दभानु गुप्ता ने गोशाला का पुनर्निर्माण कराया था। आज इस गोशाला में लगभग 370 गायों की सेवा होती है।

गया प्रसाद जी की कर्म स्थली रहा जागेश्वर का स्कूल
पंडित गया प्रसाद जी ने अपने जीवनकाल में हाथरस के मोहल्ला जागेश्वर स्थित स्कूल में अध्यापन कार्य किया और शिक्षा के साथ-साथ भक्ति और सेवा के आदर्शों को भी समाज में फैलाया।

गोशाला के साथ अन्य दो संस्थाओं का हो रहा संचालन
करीब सवा सौ साल स्थापित हुई गोशाला का संचालन आज भी दानदाताओं के सहयोग से चल रह है। अच्छी बात यह कि सवा सौ सालों में संस्था सार्वजनिक धार्मिक सभा के द्वारा सिर्फ गोशाला नहीं बल्कि शहर के सरस्वती इंटर कॉलेज, सरस्वती डिग्री कॉलेज और रामलीला कमेटी का भी संचालन करती है।श्रीकृष्ण गोशाला से मैं करीब 14 वर्ष की उम्र में जुड़ा था। तलहटी में बाबा के शरीर त्यागने के बाद मैंने कुछ लोगों के साथ उनकी अस्थियों के साथ परिक्रमा लगाई और गोशाला आ गया। यहां करीब सात दिन तक अस्थियां रखी रहीं। तब उनके पुत्र मानस ने यहां विश्राम स्थल में पधरवाया था। – पं. श्याम कुमार शर्मा, गोसेवक एवं गोशाला व्यस्थापक।

गऊ सेवा अपने आप में एक भक्ति है। गोशाला में करीब 14 कर्मचारी अपने श्रम के साथ गोसेवा में लगे हुए हैं। पंडित गयाप्रसादजी के गोशाला स्थित विश्राम स्थल बृज की भक्ति परंपरा, संत जीवन और श्रीकृष्ण प्रेम की जीवंत धरोहर का प्रतीक है। – डा. राधेश्याम शर्मा, पूर्व प्राचार्य, सरस्वती महाविद्यालय, हाथरस।

संस्था के पास करीब 108 बीघा जमीन है, जिसकी चहारदीवारी कराई गई है, गोशाला में लगातार कुछ न कुछ कार्य कराया जाता है, भव्य सत्संग भवन बना हुआ है, बाबा की परम कृपा व ठाकुरजी के आशीर्वाद से खुद ब खुद सब काम हो रहे हैं। – दीपेश अग्रवाल सराफ, अध्यक्ष, श्रीकृष्ण गोशाला, हाथरस

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