कभी वह विशाल पेड़ों को हिला देता था। नदी किनारे पहाड़ की तरह तनकर खड़ा रहता था। आज जमीन पर असहाय लेटा है। आंखों में पीड़ा और शरीर में सुइयों की चुभन। जंगल के रखवाले इस हाथी की जिंदगी अब इंजेक्शन और ग्लूकोज की नली पर टिकी है। दवाओं और दुआओं के सहारे बीत रहा हर पल भारी लग रहा है।तीन दिन पहले ट्रेन से टकराकर घायल हुए बेजुबान की कराहों ने देखरेख कर रहे कर्मचारियों को भी स्तब्ध कर दिया है। वन विभाग और डॉक्टरों की स्पेशल टीम लगातार घायल हाथी की सेवा में जुटी है। दिन-रात इलाज चल रहा है। दवाइयां दी जा रही हैं। लेजर थेरेपी हो रही है। फिर भी दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा।
एक्स-रे में कोई फ्रैक्चर तो नहीं मिला लेकिन उसके पीछे का हिस्सा और दोनों पैरों में कोई हरकत नहीं है। विशेषज्ञों को आशंका है कि उसकी नसों को गंभीर क्षति पहुंची है।सोमवार को देहरादून से प्रमुख वन संरक्षक डॉ रंजन मिश्र खुद उसके पास पहुंचे। घायल हाथी की हालत को देखकर उनकी आंखों में भी चिंता झलती। मथुरा से एसओएस वाइल्डलाइफ के वेटनरी विशेषज्ञ डॉ. ललित भी मदद करने आए। दोनों ने टीम को प्रेरित किया कि हाथी के इलाज में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। उसकी हर सांस, हर हलचल पर टीम नजर बनाए हुए है। आसपास खड़े लोग उसकी आंखों में पीड़ा के बीच जिंदगी की उम्मीद तलाश रहे हैं।
हरसंभव उपचार के निर्देश
सांसद अजय भट्ट का कहना है कि ट्रेन से टकराकर घायल हुए गजराज को हर जरूरी उपचार उपलब्ध कराया जाएगा। वन विभाग के अधिकारियों को उन्होंने पल-पल की स्थिति पर नजर रखने के लिए निर्देशित किया है। वन अधिकारियों से मिली जानकारी के आधार पर घायल हाथी की दशा ऐसी नहीं है कि उसको यहां से एयरलिफ्ट करके कहीं बाहर ले जाया जाए, इसलिए उसकी हालत में सुधार होने तक यहां 24 घंटे बेहतर उपचार की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। सांसद अजय भट्ट ने यह बात बिहार में चल रहे विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोबाइल फोन पर बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि वन्य जीव-जंतुओं का ट्रेन की पटरी पर आकर टकराना और घायल होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।V







