Thursday, November 6, 2025
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सिमट रहे सपने खिलाड़ियों के पास संसाधनों की कमी टूटे बल्ले से कैसे सेंचुरी मारें काशीपुर की बेटियां

देश की बेटियों ने वनडे विश्वकप जिताकर पूरे देश का अभिमान बढ़ाया है। उनकी जीत से हर गांव-शहर में हुनरमंद बालिकाओं में देश के लिए खेलने का जज्बा भी बढ़ा है लेकिन टूटे बल्ले से आखिर हुनर कैसे सेंचुरी मारेगा। फटे ग्लव्स पहनकर कैसे बल्ले पर ग्रिप मजबूत होगी। बालिकाओं में जज्बा तो कूट-कूट कर भरा है लेकिन सुविधाओं के अभाव ने उनके सपनों को गली मोहल्लों तक सीमित कर दिया है। काशीपुर में वर्ष 2020 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय रेलवे टांडा के प्रधानाध्यापक शैलेश कुमार ने गरीब बच्चों के लिए मल्टी इनडोर खेल एकेडमी तैयार कराई थी। इसके लिए रेलवे से पुरानी पटरी, ईंट मांग कर काम चलाया था। उन्होंने खुदके खर्च से भी कई काम करवाए। अब एकेडमी में वॉलीबाल, टेबल टेनिस, बॉक्सिंग, खो-खो, हैंडबाल, क्रिकेट में करीब 45 छात्र-छात्राएं पंजीकृत हैं। इनमें से 15 लड़के और 20 लड़कियां क्रिकेट का अभ्यास करतीं हैं। इसी विद्यालय की छात्राएं ऑल राउंडर प्रज्ञा, बल्लेबाज अक्षरा, ऋषिका, गेंदबाज सुनैना व रिंकी पिछले साल रामनगर में राज्य स्तर पर चैंपियनशिप जीत चुकी हैं। यहां से चयन होने पर हरियाणा में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग कर चुकी हैं।

कोरोनाकाल में दान के सामान से सरकारी स्कूली बच्चों के लिए एकेडमी तैयार की है। अभी करीब 45 छात्र-छात्राएं क्रिकेट समेत विभिन्न खेलों में पंजीकृत हैं। इस विद्यालय की बालिकाएं राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग कर चुकी हैं। यह सब गरीब परिवार की बेटियां हैं। खेल सामग्री पर्याप्त नहीं है। बॉक्सिंग रिंग के गद्दे तक फट चुके हैं। संसाधन मिलने पर यहां की प्रतिभाशाली बेटियां भी भारतीय टीम तक पहुंच सकती हैं। – शैलेश कुमार, प्रधानाध्यापक राप्रावि रेलवे टांडा

खिलाड़ियों ने बताई समस्याएं
अंडर-17 टीम में ऑल राउंडर हूं। यहां पांच वर्षों से प्रशिक्षण ले रही हूं। महिला टीम के विश्व कप जीतने पर बहुत खुशी हो रही है। क्रिकेट में ही भविष्य तराशना चाहती हूं लेकिन ग्लव्स फट चुके हैं और बल्ले टूटे हैं। ऐसी खेल सामग्री से चोट लगने का खतरा रहता है। पर्याप्त व्यवस्था मिल जाए तो हम भी आगे बढ़ सकते हैं। – प्रज्ञा राजभर

गेंद, बल्ले, ग्लव्स, पैड आदि फटे-पुराने खेल सामान से अभ्यास करते हैं। गेंद भी अलग-अलग साइज की मिलती है। जूते खरीदने के लिए भी सोचना पड़ता है। डाइट भी नहीं मिल पाती है। प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए स्वयं खर्च करना पड़ता है। देश के लिए खेलने का सपना है लेकिन संसाधनों के अभाव से आगे नहीं रिकी बढ़ पा रहे हैं। – रिंकी

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