बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू को जमानत दी। पांच साल से अधिक समय बाद उन्हें यह राहत मिली है। हनी बाबू की गिरफ्तारी एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले में हुई थी। जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस रंजीत सिंह भोसले की खंडपीठ ने बाबू की जमानत याचिका मंजूर की। अदालत का विस्तृत आदेश अभी उपलब्ध नहीं कराया गया है।
हाईकोर्ट ने खारिज की एनआईए की याचिका
हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की हनी बाबू की जमानत पर रोक लगाने की मांग को खारिज किया, ताकि वह सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके। हनी बाबू ने मुख्य रूप से बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रहने के आधार पर जमानत मांगी थी।
माओवादी गतिविधियों में शामिल होने का लगाया था आरोप
उनके वकील युग मोहित चौधरी ने कहा था कि अभी तक आरोप तय भी नहीं हुए हैं और निचली कोर्ट में उनकी आरोपमुक्त करने मांग करने वाली अपील भी लंबित है। एनआईए ने आरोप लगाया कि हनी बाबू प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के कमांडरों के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा को फैलाने की साजिश में शामिल थे। उन्हें जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद थे।
भीमा कोरेगांव स्मारक के पास भड़की थी हिंसा
31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। यह मामला कथित भड़काऊ भाषणों से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि इन भाषणों के कारण अगले दिन भीमा कोरेगांव स्मारक के पास हिंसा भड़की। इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। इस मामले में दर्जनों कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया था। इसकी जांच शुरुआत में पुणे पुलिस ने की थी। लेकिन बाद में इसे एनआईए को सौंप दिया गया।







