ग्रामीणों ने वर्ष 2018 से ही इस परियोजना का विरोध किया था और कई बार जिलाधिकारी नैनीताल को ज्ञापन सौंपे थे लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार रामनगर निवासी सतनाम सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि जिस भूमि पर स्टोन क्रशर का निर्माण किया जा रहा है वह राज्य सरकार द्वारा घोषित फ्रूट बेल्ट (फलों की पट्टी) के अंतर्गत आती है। नियमानुसार, कृषि प्रधान और फल पट्टी वाले क्षेत्रों में ऐसी भारी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना वर्जित है। याचिका में कहा कि प्रशासन ने इन बुनियादी नियमों को ताक पर रखकर निजी कंपनी को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया।
याचिका में कहा कि स्टोन क्रशर स्थल पर सिंचाई विभाग की चार मीटर चौड़ी सरकारी ”गूल” (नहर) और लगभग 14 मीटर चौड़े प्राकृतिक बरसाती नाले को अवैध रूप से पाट दिया है। इस अतिक्रमण के कारण न केवल स्थानीय किसानों की सिंचाई व्यवस्था ठप हो गई है, बल्कि मानसून के दौरान पूरे गांव में बाढ़ आने का खतरा पैदा हो गया है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि खनन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से स्थल निरीक्षण की भ्रामक रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट में प्रस्तावित स्टोन क्रशर से पास के सरकारी प्राथमिक विद्यालय, मंदिर और पवित्र आश्रम की वास्तविक दूरी को गलत तरीके से दर्शाया गया है, ताकि वे मानकों के दायरे में आ सकें। निर्माण कार्य के कारण गांव के बच्चों के स्कूल जाने का मुख्य रास्ता भी बाधित हो गया है।







