रुद्रपुर। मूलरूप से मुनस्यारी पिथौरागढ़ निवासी धर्म सिंह (62) का पैर पोस्ट बर्न कांट्रैक्चर रोग की वजह से टेड़ा हो गया था। धर्म इलाज कराने पंडित रामसुमेर शुक्ला राजकीय मेडिकल कॉलेज पहुंचे थे। कॉलेज के प्राचार्य वरिष्ठ सर्जन डॉ. केदार सिंह शाही ने पोस्ट बर्न कांट्रैक्चर रोग की वजह टेढ़े पैर के घाव की जांच की तो उसमें छाले मिले। जरा सी लापरवाही आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। चार साल की उम्र में जला पैर एक व्यक्ति के 62 साल की उम्र में पहुंचते स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (त्वचा का कैंसर) बन गया। पीड़ित को इसका पता दो साल पहले चला, जब घाव की वजह से उसका पैर टेड़ा हो गया। मेडिकल कॉलेज में उनके पैर में फैले त्वचा के कैंसर का सफल ऑपरेशन किया गया। इसके बाद वह न केवल स्वस्थ्य हो गए बल्कि उनका पैर भी सीधा हो गया।जांच में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (त्वचा का कैंसर) की पुष्टि हुई। इस पर उसे अस्पताल में भर्ती कर सर्जरी की गई। सर्जरी के सफल ऑपरेशन के बाद धर्म सिंह अब स्वस्थ्य हैं। उनका टेढ़ा पैर भी सीधा हो गया।
धर्म सिंह बताते हैं कि जब वह चार साल के थे तो परिवार के साथ सोते वक्त उनका पैर चूल्हे की आग की चपेट में आकर जल गया था। इसके बाद से वह जले हुए पैर के घाव का इलाज करा रहे थे। कभी घाव भर जा रहा था तो कभी दोबारा उभर आता था। दो साल पहले घाव के विकराल होने पर उनका पैर टेढ़ा हो गया। इससे चलने में दिक्कत होने लगी थी। मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के मुताबिक अप्रैल में ही पांच से छह मरीजों के ऑपरेशन किए गए। इनके हाथ, कोहनी, बगल, गर्दन, अंगुली आदि में त्वचा का कैंसर था। अभी दो से तीन और मरीजों का ऑपरेशन होना है।
लक्षण
घाव न भरना व फैलना।
शरीर के अन्य हिस्सों में गांठों का बढ़ना।
घाव के रंग परिवर्तन होना।
लगातार सूजन रहना।
घाव में छाले बने रहना।
कारण
पुराने जख्मों का घाव न भरने से स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा कैंसर होता है। इसके साथ ही धूप के संपर्क में आने वाली त्वचा पर भी लक्षित होता है। इसमें खोपड़ी, हाथों का पिछला भाग, कान या होंठ शामिल हैं। यह शरीर पर कहीं भी हो सकता है। यह मुंह के अंदर, पैरों के तलवों पर या जननांगों पर भी हो सकता है। स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा काली और भूरी त्वचा वाले लोगों में उन जगहों पर होता है जो सूरज के संपर्क में नहीं आते हैं।
कोट
अगर किसी को चोट लगी हो या फिर कोई जल जाए तो ऐसे में लंबे समय तक घाव न भरने और जख्म में बदलाव आना खतरनाक बीमारी के संकेत हो सकते हैं। जले हुए अंगों को अवश्य डॉक्टरों को दिखाएं। उसके लिए फिजियोथैरेपी, कसरत व अलग-अलग तरह की विधाएं होती हैं। जो डॉक्टरों की सलाह पर की जाती हैं। लापरवाही न बरतें। – डॉ. केदार सिंह शाही, प्राचार्य एवं वरिष्ठ सर्जन मेडिकल कॉलेज रुद्रपुर।