इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बढ़ता चलन पूरी ऑटो कंपोनेंट इंडस्ट्री की तस्वीर बदल सकता है, ऐसा कहना है एक नई रिपोर्ट का जो एम्बिट कैपिटल ने जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (ईवी) में पारंपरिक गाड़ियों के मुकाबले ज्यादा पार्ट्स लगते हैं और ये सप्लायर्स के लिए नए रास्ते खोल सकते हैं। लेकिन इसके साथ ही ये बदलाव इंजन आधारित पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों के लिए एक बड़ा खतरा भी बन सकता है।
इंजन पार्ट्स बनाने वालों को भारी झटका
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि जिन कंपनियों का कारोबार इंटरनल कंबशन इंजन (ICE) पर आधारित है, उनके लिए ईवी का आना एक अस्तित्व का संकट पैदा कर सकता है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ, ये कंपनियां अगर समय पर बदलाव करें, तो ईवी-आधारित कंपोनेंट्स जैसे लिथियम-आयन बैटरी, ट्रैक्शन मोटर्स, कंट्रोलर्स और बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) जैसे उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग में उतरकर खुद को बचा और बढ़ा भी सकती हैं।
एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में भी खुल रहे हैं दरवाजे
ईवी सिर्फ बैटरी और मोटर तक ही सीमित नहीं हैं। ये गाड़ियां नई-नई तकनीकों को भी अपनाती हैं, जैसे कि रेजेनरेटिव ब्रेकिंग, ADAS (एडवांस्ड ड्राइवर-असिस्टेंस सिस्टम) और स्मार्ट कॉकपिट्स। ये सारी चीजें कंपोनेंट सप्लायर्स के लिए नए मौके तैयार करती हैं, जिससे उनकी वैल्यू चेन में भूमिका और भी अहम हो जाती है।
कुछ कंपोनेंट्स की मांग होगी ज्यादा
ईवी की डिजाइन ऐसी होती है कि उनमें कुछ पार्ट्स की जरूरत पारंपरिक गाड़ियों से कहीं ज्यादा होती है। उदाहरण के लिए, वायरिंग हार्नेस, ईसीयू (इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल यूनिट्स) और डिफरेंशियल असेंबली की मांग ईवी में ज्यादा रहती है। इसका मतलब है कि कंपोनेंट सप्लायर्स के लिए कमाई के नए रास्ते खुल रहे हैं।
भारत में ईवी का भविष्य
भारत में ईवी अपनाने की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स की हिस्सेदारी 2024-25 में 6.3 प्रतिशत से बढ़कर 2028-29 तक 21 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। वहीं पैसेंजर गाड़ियों में यह आंकड़ा 2.6 प्रतिशत से बढ़कर 10.4 प्रतिशत हो सकता है। सबसे तेज बढ़त इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स में देखने को मिलेगी, जिनकी हिस्सेदारी 22.9 प्रतिशत से बढ़कर करीब 68 प्रतिशत हो सकती है।
लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि ये ट्रेंड काफी उम्मीदें जगाता है, लेकिन इसमें कुछ खतरे भी हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि अभी भी कई अहम ईवी कंपोनेंट्स भारत में नहीं बनते और आयात करने पड़ते हैं। इससे शुरुआती दौर में प्रतिस्पर्धा बहुत तेज हो सकती है। इसके अलावा, जो सप्लायर्स पूरी तरह इंजन और ट्रांसमिशन जैसे पारंपरिक पार्ट्स पर निर्भर हैं, उनके लिए ये बदलाव बड़ा झटका हो सकता है।
एक्सपोर्ट और ग्लोबल मार्केट से जुड़े बड़े खतरे
रिपोर्ट में तीन अहम ग्लोबल चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है – USMCA/टैरिफ सिस्टम, यूरोप में आर्थिक सुस्ती, और चीनी कंपनियों से मिल रही कड़ी टक्कर। भारत की ऑटो कंपोनेंट इंडस्ट्री बड़ी हद तक अमेरिका और यूरोप को निर्यात पर निर्भर है। इसलिए इन बाजारों की कमजोरी नजदीकी भविष्य में उद्योग की कमाई पर असर डाल सकती है।