Sunday, September 21, 2025
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सीमैप के वैज्ञानिकों ने ईजात की तकनीक अब 90 दिनों में तैयार होगी मेंथा की फसल

केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिकों ने मेंथा उत्पादन के लिए नई सस्य तकनीक ईजाद की है। इससे अमूमन 125-130 दिनों में तैयार होने वाली मेंथा की फसल अब 90 दिनों में ही तैयार हो जाएगी। इस तकनीक में कटाई के समय मानसूनी बारिश से होने वाले नुकसान से बचाव तो होगा ही, फसल की सिंचाई और लागत में भी कमी आएगी।देश में मेंथा की खेती जनवरी-फरवरी से मई-जून तक होती है। इसको तैयार होने में 125 से 130 दिन का समय लग जाता है। जो किसान मटर, सरसों फसल की कटाई या आलू खोदाई के बाद फरवरी-मार्च में मेंथा की फसल बोते हैं। उनकी कटाई के समय मानसून आ चुका होता है। इससे उनको मेंथा की कटाई में अड़चनें आती हैं और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।सीमैप ने उनकी इस परेशानी को समझा और प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. आरके उपाध्याय के नेतृत्व में प्रभारी वैज्ञानिक डाॅ. आरसी पड़लिया, डाॅ. अमित तिवारी और तकनीकी स्टाफ ने मेंथा फसल उत्पादन की समय अवधि न्यूनतम करने पर काम शुरू किया। लगभग चार वर्ष की मेहनत में उन्हें सफलता मिली और नई सस्य तकनीक ईजाद हो गई। मेंथा की ”सिम क्रांति” प्रजाति मुफीद पाई गई। संवाद

यह है मेंथा उत्पादन की नई सस्य तकनीक
सीमैप के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. उपाध्याय ने बताया कि किसान अभी तक 125-130 दिन में मेंथा उत्पादन के लिए जड़ (सकर्स) लगाते हैं, जिसे 90 दिन में तैयार करने के लिए उन्होंने प्लांटिंग मैटीरियल का सोर्स बदल दिया, क्योंकि जड़ें जमने में 15 से 20 दिन का समय ले लेती हैं। उन्होंने दिसंबर में जड़ से तैयार होने वाले मेंथा के पौधे का एरियल पार्ट (ऊपरी बायोमास का छह इंच भाग) तोड़ लिया। चूंकि इस दौरान फसल लगभग तैयार होती है, इसलिए उसके उत्पादन पर इसका कोई प्रभाव भी नहीं पड़ता है। इस एरियल पार्ट को हाई डेंसिटी (पाॅली टनल) में 15 बाई 15 इंच की दूरी पर रोप दिया गया। इस तकनीक से लगभग 90 दिनों में मेंथा की फसल तैयार हो गई। इसमें सिर्फ एक बार सिंचाई और निराई गुड़ाई की आवश्यकता हुई और विभिन्न कीट व्याधियों से भी छुटकारा मिल गया। इस तकनीक में मेंथाऑयल का उत्पादन भी प्रति हेक्टेयर 150-180 लीटर ही प्राप्त हुआ।

ये मिलेंगे फायदे
फसल अवधि लगभग एक माह कम होने से फसल जल्द तैयार होगी।
पानी की खपत कम होगी।
फसल की देखभाल और लागत में कमी आएगी।
अनचाही मानसून की बारिश के नुकसान से बचा जा सकेगा।
खेत एक माह पहले खाली होने से किसान अगली फसल जल्द बो सकेंगे।

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