सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अगर कोई उम्मीदवार अपने दोषसिद्धि की जानकारी नामांकन पत्र में नहीं देता, तो उसका चुनाव रद्द माना जाएगा। यह फैसला मध्य प्रदेश की एक नगर परिषद सदस्य पूनम के मामले में आया। पूनम को चेक बाउंस मामले में एक साल की सजा और मुआवजा देने का आदेश हुआ था। लेकिन उन्होंने यह जानकारी अपने नामांकन पत्र में छिपा ली। बाद में जब यह बात सामने आई, तो उन्हें नगर परिषद भिकनगांव की पार्षद पद से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ ने कहा, ‘अगर कोई उम्मीदवार अपनी सजा या दोषसिद्धि की जानकारी छिपाता है, तो यह मतदाताओं के स्वतंत्र और सूचित निर्णय लेने के अधिकार में बाधा है। ऐसी स्थिति में चुनाव अमान्य घोषित किया जाएगा।’
फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर नामांकन रद्द- सुप्रीम राहत से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा चुनाव में राजद उम्मीदवार श्वेता सुमन की याचिका सुनने से इनकार कर दिया। श्वेता ने अपने जाति प्रमाणपत्र को फर्जी बताकर नामांकन रद्द किए जाने के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा, ‘एक बार जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाती है, तब अदालतें उसमें दखल नहीं दे सकतीं। अगर किसी को आपत्ति है, तो उसे चुनाव याचिका दाखिल करनी चाहिए। इसके बाद श्वेता सुमन के वकील ने याचिका वापस ले ली और अदालत ने उन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत आगे कार्रवाई करने की अनुमति दे दी। यह मामला मोहनिया विधानसभा सीट (कैमूर, बिहार) का है, जो अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। चुनाव अधिकारी ने 22 अक्तूबर को श्वेता का नामांकन इसलिए खारिज किया क्योंकि सर्किल अधिकारी की रिपोर्ट के मुताबिक उनका जाति प्रमाणपत्र संदिग्ध था। इससे पहले पटना हाई कोर्ट ने भी 3 नवंबर को उनकी याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था, ‘जब चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी हो, तो अदालतें किसी भी याचिका पर रोक नहीं लगा सकतीं। ऐसा करने से चुनाव प्रक्रिया बाधित होगी।’ मोहनिया सीट पर 11 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान होना है।







