Thursday, November 6, 2025
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संगठित अपराध का रूप देवभूमि में पैर पसार रहा नकली दवाओं का धंधा

देवभूमि में नकली दवाओं का धंधा लगातार पैर पसार रहा है। यहां अब यह एक संगठित अपराध का रूप भी लेने लगा है। बीते तीन सालों में उत्तराखंड में दर्जनभर से ज्यादा ऐसी फैक्टरियां पकड़ी गईं जहां बिना वैध लाइसेंस के नकली दवाएं बन रही थीं। कई मामले ऐसे भी सामने आए जहां पर सामान्य दवाएं नहीं, बल्कि जीवन रक्षक दवाएं भी चंद रुपयों के साल्ट से तैयार की जा रही थीं। पुलिस और प्रशासन सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई तो कर रहा है, लेकिन निगरानी के लिए जिम्मेदार विभाग के पास इतने साजों सामान व संसाधन नहीं, जिससे इस धंधे पर अंकुश लगाया जा सके। बीते वर्षों की बात करें तो नकली दवाओं का गढ़ हरिद्वार के आसपास के औद्योगिक क्षेत्र रहे हैं।

यहां दशकों पहले बंद हो चुकी कुछ फैक्टरियों को नकली दवाओं के सौदागरों ने अपना ठिकाना बनाया था। भगवानपुर, रुड़की, झबरेड़ा, मंगलौर ये सब वे इलाके हैं, जो कई बार सुर्खियों में रहे हैं। पिछले साल रुड़की क्षेत्र में पकड़ी गई फैक्टरी में बाकायदा 40 मजदूरों को लगाकर काम किया जा रहा था। यही नहीं वर्ष 2021 में रुड़की के पास एक फैक्टरी से करोड़ों रुपये का कच्चा माल भी बरामद किया था। सेहत से खिलवाड़ करने वाले ये नकली दवाओं के सौदागर बेहद सफाई से काम करते हैं। माल भी इस तरह से सप्लाई किया जाता है, जिससे ये जीएसटी के दायरे में भी न आएं। बीते तीन साल की बात करें तो राज्य में नकली दवाएं बनाने के आरोप में 18 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

कुरियर से भी भेजते थे दवाएं
तीन साल पहले एसटीएफ ने रुड़की क्षेत्र की फैक्टरी पर छापा मारकर करोड़ों रुपये की दवाएं पकड़ी थीं। जांच में पता चला कि यहां से दवाओं की सप्लाई मुंबई तक हो रही थी। चौंकाने वाला खुलासा तो उस वक्त हुआ जब यह पता चला कि ये लोग इन दवाओं को कुरियर से भेजते थे। ताकि, ये टैक्स के दायरे में भी न आएं। इसी तरह से पिछले साल देहरादून में एक नामी कंपनी के नाम से दवाएं बनाई जा रही थीं। तीन लोग जब गिरफ्तार हुए तो पता चला कि इनकी एक महीने की कमाई ही 40 लाख रुपये थी।

मानकों से कम कर्मचारी हैं निगरानी वाले विभाग में
कहने को 200 मेडिकल स्टोर और 50 फार्मा कंपनियों पर एक औषधि निरीक्षक का मानक है। राज्य में छह वरिष्ठ औषधि निरीक्षक और 33 औषधि निरीक्षक के पद स्वीकृत हैं। मुख्यालय, देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में पांच-पांच, नैनीताल में तीन, पौड़ी में दो और बाकी जिलों में एक-एक औषधि निरीक्षक होना चाहिए। पर धरातल पर स्थिति अत्यंत बुरी है। ऐसे में नशीली और नकली दवा के धंधेबाजों के हौसले बुलंद हैं।

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