देश के स्कूलों में टीन की छत (एस्बेस्टस) से होने वाले वायु प्रदूषण और बच्चों की सेहत को बचाने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने इन्हें हटाने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। न्यायिक सदस्य अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की पीठ ने स्कूलों की छतों में इस्तेमाल होने वाली जहरीली एस्बेस्टस शीट्स को पूरी तरह हटाने का आदेश दिया। ये शीट्स फेफड़ों, खासकर बच्चों के लिए खतरनाक बीमारियां पैदा कर सकती हैं। एनजीटी ने देशभर के सरकारी और निजी स्कूलों को एक साल के अंदर इन्हें हटाकर सुरक्षित विकल्प लगाने को कहा है।
एनजीटी ने आदेश में कहा है कि यदि छत की शीट अच्छी स्थिति में है, तो उसे हटाने की जरूरत नहीं, लेकिन उस पर पेंट या सुरक्षात्मक कोटिंग लगाई जानी चाहिए। अगर शीट खराब हो चुकी है, तो उसे तुरंत गीला करके और विशेषज्ञों की मदद से हटाया जाए, ताकि हवा में हानिकारक रेशे न फैलें। वहीं, स्कूलों को सिर्फ प्रमाणित पेशेवरों से ही ऐसी सामग्री की मरम्मत, स्थापना या हटाने का कार्य कराना होगा। इसके अलावा, स्कूल कर्मचारियों को एस्बेस्टस से जुड़े जोखिमों और सुरक्षा उपायों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाएगा।एनजीटी ने कहा, यह फैसला पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 और हवा प्रदूषण रोकथाम कानून 1981 के तहत है। सावधानी का सिद्धांत अपनाते हुए बच्चों की सेहत को प्राथमिकता दी गई। ट्रिब्यूनल ने खुद मॉनिटरिंग का जिम्मा लिया है। न्यायमित्र प्रोग्रेस चेक करेंगे।
एस्बेस्टस कचरे का निपटान विशेष
पीठ ने कहा कि एस्बेस्टस एक खतरनाक केमिकल है, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। सुप्रीम कोर्ट के 2011 के बैन के बावजूद स्कूलों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। अदालत ने पाया कि ज्यादातर राज्यों ने अभी तक सर्वे तक नहीं किया, न ही हटाने की योजना बनाई। सीपीसीबी और राज्य प्रदूषण बोर्ड की निगरानी भी कमजोर है। एनजीटी ने आदेश दिया है कि एस्बेस्टस कचरे का निपटान सीलबंद कंटेनरों या विशेष बैग में किया जाए और उसका परिवहन केवल अनुमोदित निपटान स्थलों तक किया जाए। वाहनों को ढककर चलाया जाए और उन पर स्पष्ट रूप से एस्बेस्टस कचरा लिखा हो। साथ ही, कचरे को केवल लाइसेंस प्राप्त खतरनाक अपशिष्ट निपटान स्थलों पर ही डंप किया जा सकता है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड करें नियमित निरीक्षण
पीठ ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को आदेश दिया कि वे नियमित निरीक्षण करें और निपटान प्रक्रिया का पूरा रिकॉर्ड रखें। इसके अलावा, एनजीटी ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसबी) को आदेश दिया है कि वह छह महीने के अंदर एस्बेस्टस से जुड़े वैज्ञानिक साक्ष्य और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की समीक्षा करें। साथ ही, स्कूलों, घरों और अन्य भवनों में इसके उपयोग को कम या बंद करने की नीति तैयार करें। यही नहीं, एस्बेस्टस के सुरक्षित संचालन, रखरखाव और निपटान के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी करें।
सरकार और विभाग को सौंपी जिम्मेदारी
एनजीटी ने कार्यों की जिम्मेदारी भी सौंपी है। इसमें मुख्य काम शिक्षा मंत्रालय को सौंपा गया है। इसमें राज्यों को गाइडलाइंस देंने और फंडिंग का इंतजाम करने का आदेश है। साथ ही, हर तीन महीने में रिपोर्ट देनी होगी। इसके अलावा, पर्यावरण मंत्रालय को नए नियम बनाने और सीपीसीबी को गाइडलाइंस तैयार करने को कहा। स्वास्थ्य मंत्रालय को बीमारियों की जांच और जागरूकता प्रोग्राम चलाने के आदेश दिए गए हैं। राज्य सरकारों को लोकल लेवल पर सर्वे, हटाना और सजा का काम करने का काम सौंपा है और एक महीने में एक्शन प्लान बनाने के लिए कहा है।
खुद ऑडिट नहीं करेंगे स्कूल प्रबंधन
वहीं, स्कूल प्रबंधनों को खुद ऑडिट न करने के लिए चेतावनी दी। ऐसा करने पर स्कूल बंद हो सकता है और जुर्माना भी लगेगा। एनजीटी ने कहा है कि मंत्रालय और सीपीसीबी अपनी कार्य योजना और नीतियों की रिपोर्ट छह महीने की अवधि समाप्त होने के एक महीने के भीतर अदालत को सौंपे। यदि रिपोर्ट नहीं दी गई तो महापंजीयक मामले को दोबारा न्यायपीठ के समक्ष रखेंगे।
श्रमिकों की सुरक्षा के लिए ये कदम उठाने होंगे
एनजीटी ने कहा है कि जिन जगहों पर एस्बेस्टस का उपयोग होता है, वहां श्रमिकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए ये कदम उठाने होंगे।
कार्यस्थलों पर हवा में एस्बेस्टस के स्तर की निगरानी
खतरे के संकेत और चेतावनी बोर्ड
सुरक्षात्मक कपड़े और मास्क (पीपीई) का उपयोग
स्वास्थ्य जांच व प्रशिक्षण को अनिवार्य किया गया
एस्बेस्टस के संपर्क वाले क्षेत्रों में धूम्रपान, खाना या पानी पीना पूरी तरह प्रतिबंधित होगा।
क्या है मामला
बच्चों की सेहत से जुड़ा एक अहम मामला एनजीटी में पहुंचा था, जहां दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के एक अतिथि शिक्षक ने देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट की छतों पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि ये छतें टूटने पर सूक्ष्म रेशे हवा में फैलाती हैं, जो बच्चों के फेफड़ों में जाकर कैंसर और गंभीर बीमारियां पैदा कर सकते हैं। उन्होंने 2022 के नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल के अध्ययन का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि एस्बेस्टस वाली इमारतों में धूल प्रदूषण बढ़ता है और बच्चों को ऐसी इमारतों से दूर रखा जाना चाहिए। साथ ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की चेतावनी का भी उल्लेख किया गया है कि सभी प्रकार के एस्बेस्टस फेफड़ों, स्वरयंत्र और अंडाशय के कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं।







