Sunday, September 21, 2025
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400 मीटर की बाधा दूर करने में लगे चार साल चट्टानी इरादों को पहाड़ों ने दिया रास्ता

प्रलय की निस्तब्धता में सृष्टि का नवगान फिर फिर ये पंक्तियां उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला लिंक प्रोजेक्ट (यूएसबीआरएल) को साकार करने वाले रेल अभियंताओं पर सटीक बैठती हैं। प्रोजेक्ट को अंजाम तक पहुंचाने वाले पूर्व सीईओ संदीप गुप्ता बताते हैं, जब इस काम को हम लोगों ने हाथ में लिया, तो मंजिलें धुंधली सी दिख रही थीं। कदम-कदम पर बाधाएं खड़ी थीं। मार्ग पर पड़ने वाले ऊंचे-ऊंचे पहाड़ संकल्पों को चुनौती दे रहे थे। इस सबको देखते हुए किसी ने कब्रिस्तान कहकर इस प्रोजेक्ट का मजाक उड़ाया, तो किसी ने पागलपन कहा। इस रूट पर सफर करते ही एहसास हो जाता है कि इंजीनियरों के सामने कितनी चुनौतियां रही होंगी। पूरा रूट किसी करिश्मे जैसा लगता है। कटड़ा से बनिहाल तक के 111 किलोमीटर के ट्रैक पर सुरंग ही सुरंग हैं। वह भी बेहद दुर्गम। अंजी खड्ड केबल ब्रिज तो जादू सरीखा लगता है। यही भाव एफिल टावर से भी ज्यादा ऊंचाई पर बने चिनाब ब्रिज को देखकर आता है। इस रेल ट्रैक के इन दो अजूबे निर्माणों के शिल्पी उत्तराखंड निवासी सीईओ संदीप गुप्ता, बिहार निवासी चीफ इंजीनियर सुजय कुमार, लद्दाख निवासी महताब रहे हैं। –विवेकानंद त्रिपाठी
सुरंगों से शानदार सफर का रोमांच

रूट पर कुल 55 सुरंग हैं। इतनी सुरंगों वाला देश का यह अकेला मार्ग है। जम्मू से कटड़ा तक 30 और कटड़ा से बनिहाल तक 25 सुरंग हैं। कुल मिलाकर कटड़ा से बनिहाल तक 111 किलोमीटर के ट्रैक में से 97 किलोमीटर में सिर्फ सुरंगें हैं। एलईडी लाइटों की जगमगाहट एहसास ही नहीं होने देती कि लंबी-लंबी सुरंगों के अंदर आप सफर कर रहे हैं। कहीं कोई जर्क नहीं लगता। बेमिसाल इंजीनियरिंग सफर को गर्व के एहसास से भर देती है।

ट्रेन के साथ ही पहली बार सड़क से जुड़े कई गांव
आसपास के गांवों के लोगों की स्टेशनों पर पहुंच बढ़ाने के लिए 250 किलोमीटर से अधिक लंबी सड़कें बनाई गईं। यह काम रेल प्रोजेक्ट के बजट से हटकर कराया गया। रूट पर पड़ने वाला सांवलकोट गांव तो पहली बार सड़क से जुड़ा है। बक्कल गांव भी ऐसा ही है।

हमारे लिए नई सुबह है यह रेल लाइन
बक्कल के लोग बताते हैं कि रास्ता नहीं होने से उनके बेटे-बेटियों की शादियों में अड़चनें आती थीं। ग्रामीण कहते हैं कि ये रेल मार्ग उनके लिए नई सुबह लेकर आया है। सेब व अन्य फल उत्पादकों के लिए भी यह रेल मार्ग सौगात लेकर आया है। इससे बाजार तक उनकी पहुंच आसान होगी।

सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य टनल टी-33 का
उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल परियोजना में सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य टनल टी-33 का था। 3.2 किमी लंबी इस टनल में 400 मीटर का क्षेत्र मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी) से गुजरता है। आसान शब्दों में कहें तो एमबीटी हिमालय में भूकंपीय दोषों की एक लंबी शृंखला है। यहां खोदाई के दौरान पानी के रिसाव की बड़ी समस्या थी। यहां की चुनौतियों से पार पाने में रेलवे को चार साल का समय लगा। टी-33 टनल माता वैष्णो देवी भवन वाले त्रिकुटा पर्वत की तलहटी में हिमालय की एमबीटी वाले हिस्से में है। यहां बड़ी दरारें थीं, जिसके कारण पानी तेजी से रिसता था। इसे बंद करने के लिए रेलवे के इंजीनियरों व श्रमिकों ने करीब आठ महीने तक दो शिफ्टों में 24 घंटे काम किया। डीप ड्रेनेज पाइपिंग के सहारे पानी को टनल के बाहर मोड़ गया। एक समय ऐसा भी आया कि निर्माण कार्य बंद करने की योजना बनने लगी। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से सलाह ली गई, लेकिन वे भी ऐसी स्थिति देखकर हैरान रह गए। मार्च 2022 में टनल बनाने की प्रणाली में रणनीतिक बदलाव की शुरुआत की गई। यहां गहरे स्थान से जल निकासी के लिए छतरी पाइप लगाने, रासायनिक ग्राउटिंग, फेस बोल्टिंग, अनुक्रमिक उत्खनन आदि का इस्तेमाल किया गया जिससे रिसाव पर काबू पाने में मदद मिली। टी-33 का काम सबसे बाद में पूरा हुआ। ये टनल कटड़ा से शुरू होती है इसके आगे टनल-34 और फिर अंजी खड्ड पर बना केबल स्टेड रेल ब्रिज आता है।

सुरंगों में ट्रेनों को स्विट्जरलैंड की तकनीक से मिलेगी बिजली
बिजली से ट्रेनों के संचालन के लिए उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक प्रोजेक्ट में देश में पहली बार ओवरहेड रिजिड कंडक्टर का इस्तेमाल किया गया है। ओवरहेड रिजिड कंडक्टरों को सुरंगों से गुजरने वाली ट्रेनों के लिए खास तौर पर डिजाइन किया गया है। यह तकनीक स्विट्जरलैंड से ली गई है। यूएसबीआरएल के पहले देश भर में जितने भी रेलमार्गों का विद्युतीकरण हुआ, उनमें पैंटोग्राफ तकनीक वाले ओवरहेड कंडक्टर लगाए गए हैं। इस तकनीक में इंजन के ऊपर बिजली के तार को टच करने वाला एंटीना लगा होता है। इस तकनीक में लचीले तार लगे होने से ट्रेन के ऊपर पर्याप्त जगह की जरूरत होती है। रिजिड ओवरहेड कंडक्टर में बिजली सप्लाई के लिए लचीले तार के बजाय कठोर कंडक्टर का प्रयोग होता है। इसमें तांबे का तार लगा होता है जो बिजली के प्रवाह को निर्बाध रखता है। जहां भी पर्याप्त जगह नहीं होती, वहां इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस रूट पर सुरंगों की छतों पर इसे फिट गया है।

कटड़ा से बनिहाल तक के 111 किलोमीटर में 55 सुरंगें हैं। इनमें से कुछ तो आठ से दस किलोमीटर तक लंबी हैं। सुरंगों में कम जगह में पैंटोग्राफ तकनीक का प्रयोग संभव नहीं था। इसीलिए अत्याधुनिक ओवरहेड रिजिड कंडक्टर लगाए गए हैं। इसे लगाने में प्रति किलोमीटर तीन करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। टनल में विद्युतीकरण का कार्य कराने वाले डिप्टी चीफ इंजीनियर मोहन स्वरूप बताते हैं कि देश में ट्रैकों के विद्युतीकरण के इतिहास में पहली बार इस तरह के रिजिड ओवरहेड कंडक्टर प्रयोग किए गए हैं।

स्काडा सिस्टम से हो रही टनल के बिजली उपकरणों की निगरानी
पूरे टनल की बिजली का प्रबंधन और नियंत्रण स्काडा यानी सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन सिस्टम से हो रहा है। सेंसर से जुड़ा यह सिस्टम कहीं कोई समस्या आने पर तुरंत सूचना देता है। उसे दुरुस्त करने के लिए यंत्र भी तुरंत प्रभावी हो जाते हैं। सुरंगों में पावर सप्लाई निर्बाध बनाए रखने के लिए पांच जगहों से कनेक्शन लिए गए हैं। वहीं, 33 केवी सप्लाई का पोर्टल सब स्टेशन आपातकाल के लिए सक्रिय रहता है। टनल के भीतर दो अंडरग्राउंड सबस्टेशन बनाए गए हैं। खास बात है कि सभी सबस्टेशन स्वचालित हैं। बिजली से संबंधित किसी भी तरह की समस्या आने पर ये सारे सिस्टम तत्काल सक्रिय हो जाने में सक्षम हैं।

हर 70 मीटर पर वेंटिलेशन सिस्टम
सुरंगों में हर 70 मीटर पर वेंटिलेशन सिस्टम लगाए गए हैं। सुरंग में प्रदूषण बढ़ने या धुआं आने पर ये स्वतः संचालित हो जाएंगे। इससे यात्रियों को कोई नुकसान नहीं होगा।

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