Thursday, November 6, 2025
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जानिए कैसी होती थी निर्माण की शैली प्रकृति के व्यवहार का रखा ध्यान पूर्वजों ने बनाए सुरक्षित मकान

पहाड़ों में बने पुराने मकान प्राकृतिक आपदाओं से काफी हद तक सुरक्षित रहे। इसके पीछे स्थल चयन (नदी, गदेरों से दूरी) से लेकर निर्माण सामग्री का खासा योगदान है। पर्वतीय क्षेत्रों में भवन निर्माण की शैली टिकाऊ के साथ ही प्राचीन कला और विज्ञान का बेजोड़ नमूना था। सीमांत क्षेत्रों के मकानों को जलवायु के अनुरूप बनाया जाता था।मकान के सबसे नीचे बकरियों के लिए बनाया जाता है। साथ ही इनमें घास रखी जाती थी। उसके बाद प्रथम तल पर छोटे-छोटे कमरे बनाए जाते थे जिसमें लोग स्वयं रहते थे। उसके बाद सबसे ऊपर रसोई होती थी जिसकी छत पठाल (पत्थर की सिलेट) की होती थी। इससे जहां धुआं आसानी से निकल जाता था वहीं आग की गर्माहाट से बर्फ छत से आसानी से पिघल जाती थी और नीचे वाली मंजिल में रहने वाले लोगों के लिए गर्म हो जाता था। इसके अलावा निचले इलाकों में बने पहाड़ी शैली के मकानों में प्रथम तल पर बनी खूबसूरत तिबार (बरामदे) यह न केवल सौंदर्य का प्रतीक होते थे बल्कि भूकंप की स्थिति में मकान एकदम ढहता नहीं था। मकान की सबसे ऊपरी मंजिल पर ढाईपूरा यानी ढलानदार छत वाला कमरा होता था जो गर्मियों और सर्दियों दोनों में आरामदायक रहता था।

छत पर भी अंदर से लकड़ी के फट्टे और बल्लियों का किया जाता था प्रयोग
इसके साथ ही पास ही कोठार बनाए जाते थे जिनमें अनाज और अन्य खाद्यान्न सुरक्षित रखे जाते थे। इन्हें मकान से अलग इसलिए रखा जाता था ताकि कभी आपदा में मकान को कोई नुकसान हो तो राशन सुरक्षित रहे। राजमिस्त्री नत्थू लाल बताते हैं कि पहले मकानों में पिलर की जगह लकड़ी के स्लीपर को प्रयोग किया जाता था। ज्यादा मंजिला मकान बनाने के लिए तो पूरे भवन का ढांचा लकड़ी से ही बनाया जाता था। उसके बाद उसमें कटे पत्थर और चिकनी मिट्टी से दीवार बनाई जाती थी जो डेढ़ से दो फीट तक होती थी। छत पर भी अंदर से लकड़ी के फट्टे और बल्लियों का प्रयोग किया जाता था। मुखवा गांव के सुमित सेमवाल बताते हैं कि उनका पैतृक मकान लगभग 240 वर्ष पुराना है। इसने कई भूकंप और आपदाएं झेली हैं लेकिन न तो इसकी संरचना बदली और न ही इसका अस्तित्व हिला। आज सीमेंट और कंक्रीट के बढ़ते प्रचलन ने इस अनोखी भवन निर्माण शैली को लगभग विलुप्त कर दिया है जो घर कभी गांवों की पहचान हुआ करते थे वे अब इतिहास और यादों में सिमटते जा रहे हैं।

निर्माण सामग्री का रखा जाता था ध्यान
श्रीदेव सुमन विवि के डॉ. डीसी गोस्वामी कहते हैं कि पहले भवन निर्माण के समय कई बातों का ध्यान रखा जाता था। इसमें निकट पानी का जल स्रोत न होना, ढलान सभी बातों को परखते थे। भवनों के कमरे बनाने में खासकर चौड़ाई को कम रखा जाता था। इसके अलावा बहुमंजिला भवन नहीं बनते थे। तुलनात्मक तौर पर निर्माण में कम वजन वाली चीजों का इस्तेमाल होता था। लोनिवि से मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत्त हुए बीसी बिनवाल कहते हैं कि पहले भवनों को तैयार करने में स्थल चयन का महत्वपूर्ण रोल हुआ करता था। इससे उन्हें नुकसान कम पहुंचता था। पुराने मकानों के अलावा लोनिवि के डाक बंगला भी उदाहरण है। सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक एसके सिंह कहते हैं कि ब्रिटिशकाल के बने फारेस्ट रेस्ट हाउस इसके उदाहरण हैं। बहुत कम को प्राकृतिक आपदा से नुकसान पहुंचा होगा। ब्रिटिशकाल के 100 साल से अधिक पुराने रेस्ट हाउस आज भी पूरी तरह उपयोग में हैं।

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