जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय पंतनगर के वैज्ञानिकों ने जीवाणुरोधी प्लास्टिक बनाने में सफलता हासिल की है। इसकी मदद से स्वास्थ्य और खाद्य उत्पादों सहित आम दिनचर्या में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक के उपकरण अब जीवाणुरोधक बन सकेंगे। यह ऐसा प्लास्टिक होगा जिससे बने उपकरण या सामग्री हवा और पानी के संपर्क में आने पर भी संक्रमित नहीं होंगे। इन्हें बार-बार स्टरलाइज यानी जीवाणु रहित नहीं करना पड़ेगा। करीब 10 साल पहले बन चुके ईको फ्रेंडली प्लास्टिक पर लगातार किए गए शोधों के बाद वैज्ञानिकों ने इसे जीवाणुरोधक बनाने में सफलता पाई है।सीबीएसएच कॉलेज में रसायन विज्ञान के प्राध्यापक डाॅ. एमजीएच जैदी और सूक्ष्म जीव विज्ञान की सेवानिवृत्त प्राध्यापक डाॅ. रीता गोयल ने बताया कि कम ही लोगों को पता है कि बोतल बंद पानी भी सुरक्षित नहीं है। बोतल में पानी भरने के बाद उसे स्टरलाइज कर सील किया जाता है।
जैसे ही बोतल की सील खोली जाती है तो स्टरलाइज खत्म हो जाता है। इससे सूक्ष्म जीव पानी को संक्रमित कर देते हैं। इस कारण सर्जिकल सिरिंज व अन्य उपकरणों सहित फूड प्रोसेसिंग में प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक उपकरणों को बार-बार स्टरलाइज करना पड़ता है।इसको देखते हुए सोचा गया कि ऐसा प्लास्टिक बनाया जाए जो जीवाणुरोधक हो। इसके तहत भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलाॅजी के नैनो टेक्नोलाॅजी टास्क फोर्स से स्वीकृत 36.7 लाख की परियोजना के तहत इस पर काम शुरू किया था। 10 साल के शोध में ऐसे प्लास्टिक को बनाने में सफलता प्राप्त कर ली जो जीवाणुरोधक है।यह प्लास्टिक पानी के संपर्क में आने पर भी 72 घंटे तक जीवाणुरोधक रहता है। उन्होंने बताया कि अब इस तकनीक का पेटेंट होने के बाद इसे एक उद्योग को हस्तांतरित किया जा रहा है। इसकी लाइसेंसिंग की प्रक्रिया जारी है। परियोजना में एमओयू के तहत इस प्लास्टिक से जो भी पदार्थ बनाया जाएगा, वह पंतनगर विवि और डीबीटी का साझा उपक्रम होगा।
ऐसे बना जीवाणुरोधी प्लास्टिक
वैज्ञानिकों ने बताया कि सबसे पहले ऐसे प्लास्टिक पदार्थों को चुना गया जो मानवीय प्रयोग में हानिकारक न हों। साथ ही इसका जैव विघटन संभव हो। इन प्लास्टिक पदार्थों में जीवाणुनाशक नैनो कणों को मिलाया गया और तरल कार्बन डाई ऑक्साइड से जीवाणुरोधक नैनो कणों को अविषाक्त प्लास्टिक पदार्थों में मिलाया गया। इससे जो पदार्थ मिला, उसका उपयोग एंटी माइक्रोबियल यानी जीवाणुरोधक प्लास्टिक बनाने में किया गया। प्राप्त जीवाणुरोधक प्लास्टिक को निकालकर इसे कई आकारों और सामग्रियों में परिवर्तित करना संभव है।
विषाक्त कार्बनिक रसायनों का प्रयोग
प्राध्यापक डाॅ. एमजीएच जैदी के अनुसार अभी जीवाणुरोधी प्लास्टिक का निर्माण विषैले कार्बनिक रसायनों की मौजूदगी में किया जाता है। इनके उपयोग से बनने वाले प्लास्टिक पदार्थों में कार्बनिक रसायनों की विषाक्तता मौजूद रहती है, जो स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हानिकारक साबित होते हैं। नई तकनीक में किसी भी कार्बनिक रसायन का प्रयोग नहीं किया गया है। इससे प्लास्टिक उद्योगों को सरल तकनीक सहित मानव जीवन के लिए स्वच्छ वातावरण मिलेगा।