उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित जल से डाई (रंग) और तेल को एक साथ हटाना मुमकिन हो सकेगा। पंतनगर विवि के वैज्ञानिकों ने एक्सफोलिएटेड ग्रेफाइट और टाइटेनियम ऑक्साइड के मिश्रण से ऐसा कंपोनेंट बनाया है, जिसके प्रदूषित जल में मिलते ही 100 फीसदी तेल और 98 फीसदी डाई डिग्रेड हो जाएगी। इस तकनीक के पेटेंट आवेदन के बाद 28 जून 2024 को यह शोध इंडियन पेटेंट जनरल में प्रकाशित हुआ है।
जीबी पंत कृषि विवि के सीबीएसएच कॉलेज में भौतिक विज्ञान की सह प्राध्यापक डाॅ. दीपिका पी. जोशी ने बताया कि टैनरी, खाद्य व अन्य उद्योगों से निकलने वाला पानी डाई, सिंथेटिक रंग और तेल से प्रदूषित होता है। ये उद्योगों से शोधित कर नालों के जरिये नदी या भूमि में अवशोषित होकर जनमानस के लिए समस्या बनकर उभर रहा है। इससे लोगों में विभिन्न त्वचा, पेट और लीवर व लंग कैंसर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। अभी तक ईजाद तकनीकों में प्रदूषित जल शोधन के लिए रंग और तेल को अलग-अलग निकाला जाता था। उन्होंने शोधार्थी छात्रा नीतू बोरा और एमएससी छात्र विवेक नेगी के सहयोग से प्रदूषित जल के शोधन की ऐसी सस्ती तकनीक विकसित की है, जिससे तेल और डाई को एक साथ हटाया जा सकता है।
ऐसे ईजाद हुई तकनीक
डाॅ. दीपिका ने बताया कि उन्होंने एक्सफोलिएटेड ग्रेफाइट और टाइटेनियम ऑक्साइड के मिश्रण से एक कंपोनेंट बनाया है। इसे प्रकाश की मौजूदगी में उद्योगों से प्राप्त प्रदूषित जल में मिलाया। कंपोनेंट के मिलाते ही प्रदूषित जल में उपलब्ध हानिकारक रंग और तेल अलग हो गए। इसके बाद जल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक पाया गया। बताया कि यह तकनीक जल में उपलब्ध अविषाक्त अणुओं को पर्यावरण हितैषी अणुओं में नियोजित कर देती है। इससे भूमिगत जल का शुद्धिकरण हो जाता है।
वर्तमान परिवेश में ऐसी तकनीकों की बहुत आवश्यकता
कुलपति डाॅ. मनमोहन सिंह चौहान ने शोधकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि प्रदूषित जल में तेल और रंग एकसाथ मौजूद होते हैं। इस नई तकनीक में प्रदूषित जल के प्रकाशीय विघटन के बाद मिश्रित सामग्री का दोबारा प्रयोग किया जा सकता है। औद्योगिक इकाइयों के पर्यावरण में विषाक्त रंगों के निरंतर निकलने से जनमानस में त्वचा और कैंंसर जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। वर्तमान परिवेश में सस्ती और लंबे समय तक कार्य करने वाले प्रकाशीय उत्प्रेरक की नितांत आवश्यकता है।







