इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) की परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन एक अधिकार के रूप में नहीं मांगा जा सकता। अधिनियम में केवल स्क्रूटनी का प्रावधान है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति विवेक सरन की एकल पीठ ने मेरठ निवासी फैज कमर की याचिका खारिज कर दी।फैज ने 2025 में इंटरमीडिएट परीक्षा दी थी। परिणाम से असंतुष्ट होकर उसने हिंदी और जीव विज्ञान में स्क्रूटनी के लिए आवेदन किया। पांच अगस्त 2025 को बोर्ड कार्यालय में उसे उत्तर पुस्तिकाएं दिखाई गईं पर हिंदी और जीव विज्ञान के कई प्रश्नों में मिले अंकों से संतुष्टि नहीं मिली। इस पर उसने उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन के लिए क्षेत्रीय सचिव को प्रत्यावेदन दिया, जिसे खारिज कर दिया गया।
छात्र ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दोबारा मूल्यांकन की मांग की। इस पर राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि स्क्रूटनी के दौरान जीव विज्ञान के पेपर में योग में त्रुटि पाई गई थी। सुधार के बाद छात्र के अंक 56 से बढ़कर 58 हो गए और कुल प्राप्तांक 439 से बढ़कर 441 हो गए। हालांकि, हिंदी विषय के अंकों में कोई बदलाव नहीं हुआ। बोर्ड ने तर्क दिया कि यूपी इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम-1921 में उत्तर पुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन का कोई प्रावधान नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के रण विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि यदि परीक्षा नियम पुनर्मूल्यांकन की अनुमति नहीं देते तो न्यायालय इसे निर्देशित नहीं कर सकता, जब तक कि कोई गंभीर त्रुटि स्पष्ट रूप से न दिखाई दे। कोर्ट ने कहा कि याची का तर्क था कि उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। उसे हिंदी में 90 और जीव विज्ञान में 96 अंकों की उम्मीद थी। कोर्ट ने कहा कि केवल छात्र की उम्मीद के आधार पर पुनर्मूल्यांकन का आदेश नहीं दिया जा सकता।







