उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिक डॉ. मणिंद्र मोहन ने बताया कि प्लास्टिक के आर्थिक व सामाजिक लाभ सहित कई महत्वपूर्ण उपयोग हैं। लेकिन इसके गंभीर पर्यावरणीय व स्वास्थ्य संबंधित परिणाम देखने को मिल रहे हैं। शोध से पता चला है कि प्लास्टिक के माइक्रो व नैनो पार्टिकल्स सांस व आंत से अवशोषित होकर शरीर के विभिन्न हिस्सों जैसे लीवर, गुर्दा, फेफड़ा, प्लीहा, ब्रेन एवं ब्लड तक पहुंच रहे हैं। पंतनगर। वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन गया है। यह जल, मृदा और वायु के साथ मिलकर पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। एक अध्ययन में बताया गया है कि प्लास्टिक के सूक्ष्मकण यानी नैनो प्लास्टिक मस्तिष्क में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एक विशेष प्रोटीन के संपर्क में आकर पार्किंसन रोग के खतरे को बढ़ाता है।
जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य को नुकसान
पंतनगर। डॉ. मनिंद्र ने बताया कि प्लास्टिक का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से भी है। प्लास्टिक तेल और गैस से उत्पन्न होता है। जबकि तेल व गैस दोनों ही जीवाश्म ईंधन हैं। अधिक प्लास्टिक उत्पादन के लिए अधिक जीवाश्म ईंधन का उपयोग पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ोतरी करता है, जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है।
प्रति मिनट 10 लाख प्लास्टिक के बोतलों की हो रही खरीद
पंतनगर। प्लास्टिक को लेकर तथ्य चौकाने है। प्लास्टिक आसानी से उपलब्ध होने के कारण मानव इसका आदि हो चुका है। दुनियाभर में हर मिनट दस लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती है, जबकि हर साल दुनिया भर में 400 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है। इसमें से आधा सिंगल यूज प्लास्टिक होता है। विश्व स्तर पर उत्पादित प्लास्टिक कचरे में से 10 फीसदी से भी कम का ही पुनर्चक्रण किया जा सका है। जबकि लाखों टन प्लास्टिक कचरा पर्यावरण में नष्ट हो जाता है।