चित्रकूट जिले में कोषागार घोटाले की जांच में लगातार नई परतें खुल रही हैं। जांच में अब यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि कई मृत पेंशनरों के नाम पर भी सरकारी धन का भुगतान किया गया। अब यह मामला केवल घोटाले तक सीमित नहीं रहा बल्कि, इसे लेकर वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं।अब तक की जांच में करीब 43 करोड़ 13 लाख रुपये के गबन की पुष्टि हो चुकी है। यह राशि 93 खातों के माध्यम से जारी की गई, इनमें से भी सिर्फ तीन खातों से ही लगभग 10 करोड़ रुपये की निकासी दर्ज है। इस प्रकरण में चार कोषागार कर्मियों सहित 97 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है।
मृत पेंशनरों के नाम पर निकली करोड़ों की रकम
सहायक लेखाकार संदीप कुमार श्रीवास्तव भी इस मामले में आरोपित रहे हैं। उन्हें पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर उनकी तबीयत बिगड़ गई थी और इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद से जांच और तेज कर दी गई है। जांच में सामने आया है कि कई मृत पेंशनरों के नाम पर फर्जी सत्यापन कराकर उनकी पेंशन और अन्य भुगतान जारी कर दिए गए।
वरिष्ठ अधिकारियों से की जाएगी पूछताछ
कोषागार के भीतर और बाहर के लोगों की मिलीभगत से यह नेटवर्क वर्षों तक सक्रिय रहा, जिसके जरिए सरकारी धन निजी खातों में भेजा गया। जांच अधिकारी के अनुसार, यह मामला केवल मौजूदा चार कर्मचारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि घोटाले की अवधि में तैनात रहे वरिष्ठ अधिकारियों से भी पूछताछ की जाएगी।
ऑडिट को लेकर भी उठ रहे सवाल
वर्ष 2014 से 2025 के बीच एजी ऑफिस की ऑडिट टीमें चित्रकूट कोषागार का निरीक्षण करती रहीं, लेकिन करोड़ों रुपये की यह गड़बड़ी सामने नहीं आ सकी। इससे ऑडिट को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जांच कर रहे एक अधिकारी ने बताया कि अब तक जो तथ्य मिले हैं, वे केवल सतह का हिस्सा हैं। वास्तविक धन प्रवाह इससे कहीं अधिक प्रतीत होता है। फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि गड़बड़ी की शुरुआत वर्ष 2018 से हुई या इससे पहले से। जांच टीमें पुराने अभिलेखों, भुगतान की स्वीकृतियों और पैसा कैसे किस माध्यम से गया इसकी जांच में जुटी हैं।
जांच के कुछ अहम बिंदु
जब मूल पेंशन राशि से कई गुना अधिक धनराशि पेंशनरों के खातों में भेजी जा रही थी, तो अधिकारियों ने इस पूछताछ क्यों नहीं की।
ग्राहक वेरिफिकेशन की यह लापरवाही अब जांच का केंद्र बन गई है। अधिकारियों की यही कार्य प्रणाली अब जांच को कर्मचारियों से लेकर वरिष्ठ कोषाधिकारियों तक ले जा रही है।
जांच में ये भी पता लगाया जा रहा है कि वरिष्ठ अफसरों ने किस अभिलेख को देखकर अतिरिक्त पेंशन राशि वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। अधिकारियों के यही हस्ताक्षर अब जांच के अहम सबूत बनेंगे।
जांच में प्रश्न बिंदु जोड़ा गया है कि क्या उनके सामने प्रस्तुत अभिलेख फर्जी थे या उन्होंने बिना जांच के मंजूरी दे दी। यह अब जांच का सबसे संवेदनशील बिंदु बन गया है।







