आए दिन दोस्ती के नायाब किस्से सुनने को मिलते हैं। एक सच्चा दोस्त आपको हार के मुंह से खींचकर सफलता के शोर तक ला सकता है। यही कहानी ताइक्वांडो खिलाड़ी दोहराहट के ऋषभ अधिकारी की है। इन्होंने राष्ट्रीय खेल में शुक्रवार को अंडर 74 भार वर्ग में कांस्य पदक जीता, जबकि एक समय था जब खराब प्रदर्शन के चलते ऋषभ खेल छोड़ने वाले थे। लेकिन दोस्तों की हौसला अफजाई और साथ देने से वह अब पदक विजेता बन गए। 25 साल के ऋषभ पिछले 15 साल से ताइक्वांडो खेल रहे हैं। इनकी दो बड़ी बहनें शौक के लिए ताइक्वांडो खेलती थींं। उनके साथ ऋषभ भी मैदान पर जाने लगे। साल 2016 में इन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय इवेंट में स्वर्ण पदक जीता था। इसके बाद से इनका प्रदर्शन दिन पे दिन खराब होने लगा। ऋषभ ने बताया कि उस समय खेल छोड़कर वह पढ़ाई पर ध्यान देने लगे। अकेडमी जाना बंद कर दिया। तब कोच और दोस्तों ने ऋषभ को ढांढस बंधाया। उसे खेलने के किए प्रेरित किया। कठिन समय में दोस्तों का साथ मिलने से ऋषभ ने खेलना शुरू कर दिया। शुक्रवार को क्वार्टर फाइनल में ऋषभ की लड़ाई चंडीगढ के साहिल से हुई। इसमें उन्होंने जीत दर्ज की लेकिन उनके हाथ में गंभीर चोट लग गई। बावजूद इसके वह सेमीफाइनल खेलने गए। हालांकि इन्हें यहां हार का सामना करना पड़ा लेकिन खेलने के जुनून ने सबका दिल जीत लिया।
पदक जीतकर पिता की विरासत को बढ़ाया आगे
रानीखेत के काव्य तलरेजा ने शुक्रवार को 87 किलो से अधिक भार वर्ग में कांस्य पदक जीता। काव्य के पिता अंतरराष्ट्रीय ताइक्वांडो खिलाड़ी थे। उनके पिता ने रानीखेत और अल्मोड़ा में ताइक्वांडो को काफी बढ़ावा दिया। वैसे तो काव्य चार साल की उम्र से ताइक्वांडो खेल रहे हैं, लेकिन 14 वर्ष में आकर उन्होंने पिता नरेश तलजेरा की ताइक्वांडो के प्रति गंभीरता देखी। तो काव्य भी पूरी तल्लीनता से ताइक्वांडो में जुट गए। करीब डेढ साल पहले काव्य के पिता स्वर्गवासी हो गए। काव्य का यह पहला राष्ट्रीय खेल है और कांस्य पदक जीत लिया। उन्होंने यह पदक अपने स्व. पिता को डेडिकेट किया। अब वह बच्चों को ताइक्वांडो सीखाते भी हैं।