देहरादून। उत्तराखंड के ग्लेशियर में बने झील काफी संवेदनशील है। यही वजह है कि भारत सरकार ने उच्च हिमालय क्षेत्रों में मौजूद तमाम ग्लेशियर झीलों का अध्ययन करने के निर्देश दिए हैं। पहले चरण के तहत उत्तराखंड के उच्च हिमालय क्षेत्रों में मौजूद पांच ग्लेशियर झील के अध्ययन किया जाएगा। जिसको लेकर आपदा प्रबंधन विभाग ने विशेषज्ञ टीम तैयार की है, जिसे जल्द ही ग्लेशियर झील का अध्ययन के लिए भेजा जाएगा। तमाम संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञों की टीम धरातल पर पहुंचकर झील के खतरे का आकलन करेगी। भविष्य में किसी भी संभावित आपदा से निपटा जा सके।
उत्तराखंड के 13 ग्लेशियर झील संवेदनशील। इसी साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड में 13 ऐसी ग्लेशियर झीलें चिन्हित की थी, जो बेहद संवेदनशील हैं। गृह मंत्रालय ने इन झीलों को उनकी संवेदनशीलता के आधार पर तीन कैटेगरी में बांटा है. उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सैकड़ों की संख्या में ग्लेशियर झील मौजूद हैं। जिसमें से चिन्हित 13 हिम लेक में से 5 झीलों को ज्यादा संवेदनशीलता के आधार पर A कैटेगरी में रखा है।
चमोली में 1 और पिथौरागढ़ में 4 ग्लेशियर झील ज्यादा संवेदनशील। इसके साथ ही थोड़ा कम संवेदनशील वाले 4 झीलों को B कैटेगरी और कम संवेदनशील 4 झीलों को C कैटेगरी में रखा है. A कैटेगरी की 5 झीलों में से एक झील चमोली और चार झील पिथौरागढ़ जिले में हैं. B कैटेगरी की 4 झीलों में से एक चमोली, एक टिहरी और दो झीलें पिथौरागढ़ जिले में हैं। इसके साथ ही C कैटेगरी की 4 झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी जिले में मौजूद हैं, जो कम संवेदनशील है। ऐसे में गृह मंत्रालय ने सभी 13 ग्लेशियर झील में से अति संवेदनशील पांच झीलों जिसको A कैटेगरी में रखा है, उस पर तत्काल एक्शन लेने के निर्देश दिए थे। इस बात को करीब 5 महीने का वक्त बीत चुका है, लेकिन अभी तक कोई भी टीम इन पांचों संवेदनशील ग्लेशियर झील के अध्ययन को नहीं भेज पाई है. हालांकि, आपदा विभाग के अनुसार चमोली जिले में मौजूद वसुधारा झील के लिए टीम तैयार की जा चुकी है. जिसे जल्द ही भेजा जाएगा।
झील कितना खतरनाक और कैसे होगा ट्रीटमेंट? अध्ययन के लिए 2 टीमें हो चुकी गठित। जो धरातल पर जाकर झील की वास्तविक स्थिति का अध्ययन करेगी। साथ ही ये पता लगाएगी कि ये झील कितना खतरनाक है और उसका ट्रीटमेंट कैसे किया जा सकता है बेहद संवेदनशील पांच जिलों में से दो झीलों के अध्ययन के लिए मार्च महीने में ही दो टीमें गठित कर दी गई थी, लेकिन तक कोई भी टीम निरीक्षण करने नहीं जा सकी है। आपदा सचिव के अनुसार एक टीम किसी कारणवश निरीक्षण करने नहीं जा पाई है, लेकिन एक टीम चमोली जिले में मौजूद वसुधारा झील का निरीक्षण करने जा रही है। झीलों के अध्ययन को गठित विशेषज्ञ कमेटी में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA), एनआईएच रुड़की यानी राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH Roorkee), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग देहरादून (IIRS Dehradun), जीआईएस लखनऊ (GIS Lucknow) और उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन मैनेजमेंट सेंटर (ULMMC) के विशेषज्ञ को शामिल किया गया है।
भविष्य के लिए चिंता का कारण बने ग्लेशियर झील। उत्तराखंड आपदा सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि उत्तराखंड के पांच ऐसे हिम लेक (Glacier Lake) हैं, जिनको संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। जो भविष्य यानी आने वाले समय में चिंता का कारण बन सकते हैं। अभी तक इन झीलों का विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन प्राथमिक अध्ययन के अनुसार ये पांचों हिम झीलें संवेदनशील पाए गए हैं। साथ ही कहा कि अभी करीब 15 साल तक इन झीलों से कोई खतरे की बात नहीं है। भारत सरकार ने इन पांचों झीलों के अध्ययन के निर्देश दिए है। ताकि इन झीलों की जानकारी एकत्र की जा सके कि झील कितने बड़े है, उसकी गहराई कितनी है झील में कितना पानी है साथ ही और कितना खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में एक झील के अध्ययन के लिए विशेषज्ञ की टीम को जाना था, लेकिन वो किसी कारण से नहीं जा पाए हैं, लेकिन एक टीम चमोली स्थित वसुंधरा झील का अध्ययन करने के लिए जा रही है। भारत सरकार ने इसके लिए बजट का भी प्रावधान किया है। जिसके तहत पांच राज्यों के लिए एक साथ बजट दे रही है, लेकिन अभी राज्यों को कितना बजट मिलेगा? अभी ये तय नहीं किया गया है. ऐसे में स्टडी के बाद तय किया जाएगा कि क्या कार्रवाई होनी है, फिर रिपोर्ट के आधार पर काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जो टीम अध्ययन करने के लिए जा रही हैं, उन टीमों में भारत सरकार के कई संस्थानों के वैज्ञानिकों के साथ ही आपदा के जो एक्सपर्ट्स हैं, वो जा रहे हैं. उनकी प्राथमिक रिपोर्ट आने के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
सेटेलाइट डेटा से मिली है प्राथमिक जानकारी, धरातल पर अध्ययन से मिलेगी सटीक जानकारी। सचिव सुमन ने बताया कि जो झील चिन्हित किए गए हैं, उनमें से एक झील चमोली जिले और चार झील पिथौरागढ़ जिले में हैं। सेटेलाइट डेटा से प्राथमिक जानकारी मिली है, लेकिन धरातल पर अध्ययन से ही सटीक जानकारी मिल पाएगी. जिसके अध्ययन के लिए टीम भेजी जा रही है. ताकि, भविष्य में किसी भी संभावित आपदा से निपटा जा सके।वाडिया संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक ने बताई चिंता वाली बात हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के पूर्व निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि साल 1968 में जो सैटेलाइट इमेज लिया गया था, उसमें वसुधारा झील काफी छोटी थी। सैटेलाइट इमेज में दिखाई भी नहीं दे रही थी, लेकिन दो साल पहले 2022-23 में वसुधारा झील का जो सैटेलाइट इमेज लिया गया. उसमें झील करीब 0.8 स्क्वायर किलोमीटर बड़ा दिखाई दे रहा है.भले ही झील की साइज बढ़ गई हो, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि ये झील काफी संवेदनशील है. जो बड़ी आपदा ला सकती है। इसके लिए तमाम पैरामीटर को देखना होता है। साथ ही कहा कि ये मोरेन डैम झील होने के बावजूद ये झील 1 से 2 डिग्री स्लोप पर है। ऐसे में वाडिया संस्थान के अध्ययन के अनुसार वसुधारा झील से आपदा आने की संभावना अभी नहीं है।