सेल्फी का शौक अब सिंड्रोम में तब्दील हो रहा है। हर आयु वर्ग के लोग इसकी चपेट में है। सेल्फी लेने से लेकर इंटरनेट मीडिया पर अपलोड करने फिर उस पर मिलने वालीं प्रतिक्रियाओं को देखने की तीव्र जिज्ञासा को सेल्फाइटिस सिंड्रोम के रूप में पहचाना जा रहा है। विश्वभर में सेल्फाइटिस सिंड्रोम के लिए कई शोध किए जा रहे हैं।अमेरिकन साइकेट्री एसोसिएशन की ओर से जारी शोध में बार-बार सेल्फी लेने की आदत को सेल्फाइटिस सिंड्रोम का नाम दिया गया है। इसे आम भाषा में सेल्फी फीवर भी कहा जाता है। शोध में यह भी बताया गया कि इसका लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है।
दिनभर में कम से कम छह सेल्फी
दून अस्पताल के मनोरोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. जया नवानी बताती हैं कि सेल्फाइटिस सिंड्रोम के तीन अलग-अलग स्तर हैं। पहला स्तर जिसे सौम्य कहा जाता है, इसमें कोई भी व्यक्ति दिनभर में तीन सेल्फी लेता है, लेकिन इसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपलोड नहीं करता। इसके दूसरे स्तर तीव्र या एक्यूट सिंड्रोम में व्यक्ति दिनभर में तीन सेल्फी लेता है और तीनों को सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपलोड करता है।अंतिम स्तर क्रोनिक सेल्फाइटिस सिंड्रोम में व्यक्ति दिनभर में कम से कम छह सेल्फी लेता है और सभी को सोशल मीडिया पर अपलोड करता है। इसके बाद इस पर मिलने वाली प्रतिक्रियाओं को हर दूसरे मिनट में देखता हैइन मानवीय गतिविधियों का असर मानसिक स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है। चिकित्सक डॉ. नवानी के मुताबिक इससे पीड़ित लोगों में अवसाद, चिंता, बॉडी डिफॉर्मिक डिसॉर्डर, ध्यान में कमी और आक्रामकता समेत व्यवहार में कई तरह के नकारात्मक बदलाव देखने के लिए मिलते हैं।