मानव–वन्यजीव संघर्ष पर उत्तराखंड वन विभाग की ठोस पहल
देहरादून। गुलदार, बाघ, तेंदुओं, भालुओं और हाथियों की बढ़ती गतिविधियों के बीच उत्तराखंड के कई गाँवों में हाल के महीनों में जिस तरह डर और संघर्ष की घटनाएँ सामने आई हैं, उसने वन विभाग को नई और ठोस रणनीति अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। अब विभाग ने ग्रामीणों तक सीधी पहुंच और जंगल–गांव संवाद को मजबूत करने के लिए एक बड़ा निर्णय लिया है।
1993 बैच के IFS अधिकारी और उत्तराखंड वन विभाग के नए प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) रंजन कुमार मिश्रा के नेतृत्व में जारी आदेश के तहत अब से हर महीने के अंतिम शनिवार को पूरे राज्य में ‘प्रभाग दिवस’ मनाया जाएगा। इस दिन वन प्रभागों और रेंज स्तर पर टीमें गांवों में जाकर लोगों को वन्यजीवों के व्यवहार, सुरक्षा उपायों, आपात स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों और मुआवजा प्रक्रिया की स्पष्ट जानकारी देंगी।
यदि किसी इलाके में उस दिन स्थानीय अवकाश हो, तो प्रभाग दिवस निकटतम कार्यदिवस पर आयोजित किया जाएगा।
क्यों जरूरी पड़ा यह कदम?
हाल के महीनों में कई घटनाएँ ऐसी भी सामने आईं, जहाँ समय पर जानकारी न मिलने या घबराहट में गलत प्रतिक्रिया देने से स्थिति और गंभीर बन गई।
विभाग का मानना है कि यदि ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया जाए और संवाद लगातार रखा जाए, तो संघर्ष की कई घटनाएँ शुरू होने से पहले ही रोकी जा सकती हैं।
क्या होगा प्रभाग दिवस पर?
-गांवों में जाकर जागरूकता और प्रशिक्षण
-वन्यजीवों की गतिविधियों की रियल-टाइम जानकारी साझा
-स्थानीय शिकायतों और नुकसान के मामलों की मौके पर सुनवाई
-ग्राम प्रतिनिधियों और वनकर्मियों के बीच नियमित संवाद मंच
इस पहल के सूचनात्मक समन्वय की जिम्मेदारी नोडल अधिकारी वन संरक्षक (मुख्यालय) डॉ. विनय भार्गव को सौंपी गई है, जिन्हें राज्यभर से प्राप्त रिपोर्टों को संकलित कर मुख्यालय को भेजना होगा।
सह-अस्तित्व की ओर कदम
वन विभाग का मानना है कि मानव–वन्यजीव संघर्ष को सिर्फ गश्ती बढ़ाकर नहीं रोका जा सकता, बल्कि इसके लिए जागरूकता, प्रशिक्षण और स्थानीय भागीदारी सबसे अहम हैं। नए HoFF रंजन कुमार मिश्रा की यह पहल गांवों में बढ़ती बेचैनी और डर के बीच एक सकारात्मक और संगठित प्रयास के रूप में देखी जा रही है।







