Thursday, November 6, 2025
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सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई तय हुई तारीख ओटीटी और सोशल मीडिया के अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने की मांग

ओटीटी को लेकर अक्सर अधिक बोल्ड और अश्लील कंटेंट को बढ़ावा देने की बात की जाती रहती है। कई लोगों ने ओटीटी के लिए एक सख्त कानून लाने की भी बात की है। अब सुप्रीम कोर्ट सोमवार 28 अप्रैल को इस मामले से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करेगा। इस याचिका में केंद्र से ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खुले तौर पर अश्लील कंटेंट की स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है।

दो जजों की पीठ करेगी सुनवाई
इस याचिका में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लील कंटेंट के खुलेआम स्ट्रीमिंग पर प्रतिबंध लगाने के लिए नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी के गठन के लिए दिशा-निर्देश तय करने की मांग की गई है। इस याचिका पर जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ सुनवाई करेगी।

अपराध को बढ़ावा दे रहा अश्लील कंटेंट
याचिका में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया साइट्स पर ऐसे पेज या प्रोफाइल हैं जो बिना किसी फिल्टर के अश्लील सामग्री दिखा रहे हैं। जबकि विभिन्न ओटीटी प्लेटफॉर्म भी ऐसा कंटेंट स्ट्रीम कर रहे हैं जिसमें बच्चों से संबंधित अश्लील कंटेंट भी शामिल है। इसमें कहा गया है कि इस तरह का अश्लील कंटेंट युवाओं, बच्चों और लोगों के दिमाग पर गलत असर डालता है, जिससे अपराध में भी बढ़ोत्तरी होती है। अगर इस पर कोई नियंत्रण नहीं किया गया, तो इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।

याचिका में की गई ये मांग
याचिका में केंद्र सरकार को सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के अश्लील कंटेंट तक हर किसी के पहुंचने पर रोक लगाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। जब तक कि ये प्लेटफॉर्म अश्लील कंटेंट को कंट्रोल करने के लिए खासकर बच्चों से दूर रखने के लिए कोई फॉर्मूला या तंत्र तैयार नहीं कर लेते। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से शीर्ष अदालत के एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने और इस फील्ड के विशेषज्ञों को शामिल करने की मांग की गई है। जो सेंसर बोर्ड की तरह ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की देखरेख कर सके। जब तक कि इसके लिए एक कानून नहीं बन जाता।

राज्यों से कठोर कदम उठाने की मांग
याचिका में दावा किया गया है कि याचिकाकर्ताओं ने संबंधित सक्षम अधिकारियों को कई बार शिकायतें भेजी, लेकिन कोई प्रभावी नतीजा नहीं निकला। याचिका में इसे समय की मांग बताते हुए कहा गया है कि राज्यों को इस बारे में कठोर कदम उठाने चाहिए ताकि डिजिटल स्पेस समाज के लिए घातक न बन सके। क्योंकि इंटरनेट की आसान पहुंच ने इसे सभी के लिए बिना की सेक्योरिटी के आसानी से उपलब्ध करा दिया है।

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