केदारनाथ में 16 किमी लंबा गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग बाबा के भक्तों की परीक्षा लेता है। इस मार्ग पर कैंचीदार मोड़ और तीखी चढ़ाई जहां सांस लेने में दिक्कत के साथ बेचैनी बढ़ाती है। वहीं, भूस्खलन और हिमखंड जोन खतरे का सबब बने हुए हैं। साथ ही घोड़ा-खच्चरों का संचालन, अलग से परेशानी पैदा करता है। पूरे पैदल मार्ग पर कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जिसे पूरी तरह से सुरक्षित माना जाए।11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित पंचकेदार में प्रमुख भगवान आशुतोष के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ में आस्था और भक्ति का उल्लास अपने चरम पर है। कपाट खुलने के बाद से यहां पैदल मार्ग पर भक्तों का रेला उमड़ रहा है।
16 किमी मार्ग के हर हिस्से पर रौनक बनी हुई है। लेकिन, यह मार्ग सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील है। गौरीकुंड घोड़ा पड़ाव पूरा चट्टानी है, जो बरसात में आए दिन बाधित होता रहता है।चीरबासा भूस्खलन जोन है, जहां प्रत्येक बरसात में पहाड़ी से पत्थर गिरने से दुर्घटनाएं होती रहती हैं। जंगलचट्टी से लेकर भीमबली तक दो किमी का क्षेत्र पूरा चट्टानी है। हालांकि भीमबली से रामबाड़ा का दो किमी हिस्सा सुरक्षित है। यहां रास्ता सीधा है। दूसरी तरफ घोड़ा-खच्चरों के संचालन से भी पैदल मार्ग पर बिछे पत्थर खिसक रहे हैं। साथ ही जानवरों की लीद और मूत्र से कीचड़ रहता है।
छह किमी हिस्सा सबसे दुर्गम
जून 2013 की आपदा में गौरीकुंड-भीमबली-रामबाड़ा-गरुड़चट्टी-केदारनाथ पैदल मार्ग रामबाड़ा से केदारनाथ तक पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था। आज, भी इस हिस्से पर तबाही के निशान मौजूद हैं। तब, केदारनाथ तक पहुंचने के लिए नेहरू युवा पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी ने रामबाड़ा से मंदाकिनी नदी के दायीं तरफ से केदारनाथ तक नौ किमी नए रास्ते का निर्माण किया। आठ फीट चौड़े इस पैदल मार्ग पर रामबाड़ा से छानी कैंप का छह किमी हिस्सा सबसे दुर्गम है।
तीखी चढ़ाई और कम होती ऑक्सीजन से होती दिक्कत
रामबाड़ा से बड़ी लिनचोली तक कैंचीदार मोड़ वाली चढ़ाई, बाबा के भक्तों को कमर सीधी नहीं करने देती। साथ ही जैसे-जैसे यात्री धाम के लिए आगे बढ़ते हैं, ऑक्सीजन की कमी से सांस लेने में दिक्कत, रक्तचाप बढ़ने के साथ सिरदर्द की शिकायत होती है, जो कई बार जानलेवा हो जाती है। साथ ही इस छह किमी क्षेत्र में छह हिमखंड जोन भी हैं, जो अलग से परेशानी का सबब बने हैं। टीएफटी चट्टी, हथनी गदेरा, कुबेर गदेरा, भैरव गदेरा आदि हिमखंड जोन यात्रा के पहले पूरी तरह से सक्रिय रहते हैं, जिस कारण आवाजाही में दिक्कत होती है। बीते वर्षों में इस छह किमी क्षेत्र में सबसे अधिक दुर्घटनाएं हुई हैं, जिसमें कई यात्रियों की मौत भी हुई।
रुद्रा प्वाइंट से हेलिपैड तक भी नहीं सुरक्षित
पैदल मार्ग रुद्रा प्वाइंट से एमआई-26 हेलिपैड तक सीधा है। लगभग ढाई किमी इस हिस्से में घोड़ा पड़ाव भी है, लेकिन यह पूरा हिस्सा दो तरफा खतरे से घिरा हुआ है। निचली तरफ मंदाकिनी नदी के तेज बहाव से भू-कटाव हो रहा है। वहीं, ऊपरी तरफ से लगी पहाड़ी का अधिकांश हिस्सा भूस्खलन की जद में है।
नहीं बन सकी सुरक्षा की योजना
केदारनाथ आपदा के दस वर्ष बाद भी गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग की सुरक्षा को लेकर कोई योजना नहीं बन पाई है। जबकि केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। पैदल मार्ग से ही निर्माण सामग्री धाम पहुंचाई जा रही है।