Sunday, September 21, 2025
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दर्शकों ने दी स्टैंडिंग ओवेशन चक्रव्यूह के शानदार मंचन से भावविभोर हुए लोग

देहरादून। विरासत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मची हुई है, जिसका लोग जमकर लुत्फ उठा रहे हैं। विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल में महाभारत युद्ध के बेहद महत्वपूर्ण घटना चक्रव्यूह का नाट्य मंचन किया गया। जिसे देखने के लिए भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी। गढ़वाली लोक नाट्य प्रस्तुति चक्रव्यूह की पटकथा का निर्माण और लेखन प्रोफेसर दाताराम पुरोहित ने किया है। जिसका स्थानीय कलाकारों ने शानदार मंचन किया। दाताराम पुरोहित ने बताया कि इस चक्रव्यूह की पहली प्रस्तुति साल 2001 में गंधारी गांव में हुई थी। सनातन की धार्मिक मान्यताओं ने गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को गढ़ा हैं और गढ़वाल की ऐसी ही एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत पांडव नृत्य है। जिसे पांडव लीला के नाम से भी जाना जाता है। यह विस्तृत धार्मिक नृत्य और नाट्य मंचन सदियों से उत्तराखंड के गांवों में किया जा रहा है। जिसे दस्तावेजों में पिरो कर इसे डॉक्यूमेंट और मंचन से वृहद स्तर पर मंचन किया जा रहा है।

उत्तराखंड में पौराणिक समय पांडवों के संबंध में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में नृत्य नाटिका कीचक वध (कीचक का वध), नारायण विवाह (भगवान विष्णु का विवाह), चक्रव्यूह (गुरु द्रोण द्वारा डिजाइन की गई एक सैन्य रणनीति), गेंदा वध (डमी गैंडे की बलि) जैसे विभिन्न लोक कथाओं और लोक साहित्य पर आधारित हैं. उन्होंने बताया कि आज भी रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों की मंदाकिनी और अलकनंदा घाटियों में बसे इलाकों में इसकी परंपरा जीवित है. जब कड़ाके की सर्दी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों को अपनी चपेट में ले लेती है। तो गढ़वाल के कई छोटे-छोटे गांवों में इस तरह के धार्मिक अनुष्ठानों में पांडव नृत्य देखने को मिलता है. पुरोहित बताते हैं कि इन इलाकों में पांडवों की यात्रा व उनके निशान को लोग परिलक्षित करते हैं। पांडव नृत्य पांचों पांडव भाइयों के अलग अलग वृतांत को बताते हैं। जो उनके जन्म से लेकर स्वर्गारोहिणी यात्रा यानी उत्तराखंड से होते हुए स्वर्ग तक की यात्रा के निशान ताजा करते हैं।

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