उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति का गठन 2013 में हुआ था। इस मामले में हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति का गठन किया था, ताकि इसमें पारदर्शिता लाई जा सके। इस मामले में आदेश का पालन नहीं होने पर हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जनहित याचिका दायर की गई है। इस मामले में जल्द ही सुनवाई हो सकती है। (अवैतनिक) और प्रबंधक (वैतनिक) का चयन राज्यपाल करते हैं। पंजीकृत पुजारी मतदान के जरिए पुजारी प्रतिनिधि का चयन करते हैं। उपाध्यक्ष, प्रबंधक और पुजारी प्रतिनिधि का कार्यकाल तीन साल निर्धारित होता है। मंदिर प्रबंधन समिति में प्रबंधक का पद करीब 15 माह से खाली चल रहा है। उपाध्यक्ष का पद करीब चार माह से रिक्त चल रहा है। इसके अलावा पुजारी प्रतिनिधि का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है। इसके अलावा बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पास होने के बाद भी मंदिर समिति मंदिर समिति सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में अब तक नहीं आ पाई है। जिला प्रशासन भी सरकारी स्तर से इस समिति से संबंधित आईटीआई नहीं दे रहा है। इसी सब के मामले में जनहित याचिका दायर की गई है।
याचिका में कहा कि हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को आदेश दिए थे कि जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति का हर साल ऑडिट नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से कराएं। करीब दस साल बीतने के बाद भी इस समिति का सीएजी ऑडिट नहीं हो पाया है। प्रबंधक तीन साल का कार्यकाल पूरा होने पर अपने स्तर से सीए का चयन कर उन्हीं से ऑडिट कराते आए हैं। मंदिर समिति में कई ऐसे प्रस्ताव भी पास हुए हैं, जिनमें पांच सदस्यीय समिति से सहमति नहीं ली गई है। यहां केवल दो सदस्यों के हस्ताक्षरों से भी प्रस्ताव पास हुए हैं। समिति में उपाध्यक्ष के अधिकार भी नियम विरूद्ध तरीके से सरकारी अफसरों को सौंप दिए गए थे। जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति में चुने हुए तीनों सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। पांच अक्टूबर 2024 से प्रबंधक के स्थान पर प्रशासक की नियुक्ति चल रही है। इसी माह पांच दिसंबर को पुजारी प्रतिनिधि का भी कार्यकाल पूरा हो गया था। मौजूदा समय में ये संस्था पूर्ण रूप से सरकारी मोड पर संचालित हो रही है। इसके कारण केवल कर्मचारियों की सेलरी, बिजली बिल और पुजारियों के अंशदान का वितरण आदि सीमित कार्य ही मंदिर समिति कर रही है। अन्य नए कार्यों नहीं हो पा रहे है।







