दून अस्पताल में भले ही बड़ी-बड़ी बीमारियों का इलाज होता है लेकिन अब चिकित्सकों के साथ मारपीट और झगड़े की पुनरावृत्ति की बीमारी का भी इलाज जरूरी है। अगर पांच महीने की घटनाओं पर नजर डालें तो अस्पताल की ओपीडी और इमरजेंसी में करीब सात मारपीट और झगड़े की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इससे चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा दांव पर लगी हुई है। मंगलवार रात अस्पताल की इमरजेंसी में एक चिकित्सक के साथ हुई मारपीट की घटना ने इस सवाल को और अधिक खरा कर दिया है। दून अस्पताल में अलग-अलग संवर्ग में करीब पांच हजार कर्मचारी हैं। इसमें चिकित्सक, पीजी डॉक्टर और इंटर्न समेत अन्य स्वास्थ्यकर्मी शामिल हैं। अस्पताल की ओपीडी और इमरजेंसी में हर रोज करीब ढाई हजार मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो इसके लिए इंतजाम काफी लचर हैं।
इमरजेंसी का गेट करना पड़ा था बंद
अस्पताल में करीब 100 सुरक्षाकर्मी है और दून पुलिस चौकी में एक-दो ही पुलिसकर्मी तैनात हैं। कभी-कभी चौकी पूरी तरह खाली भी रहती है। पिछले दिनों हुई घटनाओं ने अस्पताल की सुरक्षा की परतें पूरी तरह खोल के रख दीं। 14 दिसंबर की देर रात इलाज कराने आए दो गुटों में विवाद इतना बढ़ गया कि इमरजेंसी का गेट बंद करना पड़ा था।इस दौरान रात्रि ड्यूटी में तैनात महिला चिकित्सक समेत कई स्वास्थ्यकर्मियों से अभद्रता करने की बात सामने आई थी।इस मामले में 25 आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसके एक दिन बाद 16 दिसंबर की रात इमरजेंसी में तीमारदारों ने इलाज में देरी का आरोप लगाकर एक चिकित्सक की पिटाई कर दी।इसमें चिकित्सक को काफी चोंट आई थी। घटना के दौरान दून चौकी में एक भी पुलिसकर्मी तैनात नहीं था। इसके अलावा इमरजेंसी में सिर्फ चार ही सुरक्षाकर्मी थे। बार-बार हो रही इन घटनाओं का इलाज अब प्राथमिकता से होना चाहिए।







