Sunday, September 21, 2025
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इन अस्पतालों की छतें भी बारिश का पानी रोकने में सक्षम नहीं बारिश में टपकने लगी CMO कार्यालय की छत

मरीजों का इलाज करने वाले स्वास्थ्य विभाग के भवनों को ही उपचार की दरकार है। करीब 2.42 करोड़ की लागत से बने सीएमओ कार्यालय की छत पहली बरसात में ही टपकने लगी है। वहीं रैमजे अस्पताल और बीडी पांडे अस्पताल की छतें भी बारिश के पानी को रोक पाने की स्थिति में नहीं हैं। इससे स्वास्थ्य अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ ही मरीजों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।ऐतिहासिक रैमजे परिसर स्थित सीएमओ कार्यालय भवन जर्जर हो गया था जिसे एक दशक पूर्व अस्पताल को हस्तांतरित कर दिया गया। इसके बाद विभाग ने कार्यालय भवन बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया। 2022 में 2.42 करोड़ की लागत से नए कार्यालय भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ। काम पूरा होने के बाद बीते वर्ष 2024 में सीएमओ कार्यालय नए भवन में शिफ्ट किया गया, लेकिन पहली बरसात में इस भवन की छत टपकने लगी है।कार्यालय की छत से पानी टपकने की सूचना निर्माणदायी संस्था आरडब्ल्यूडी को दी गई है। आरडब्ल्यूडी की ओर से ही छत की मरम्मत की जाएगी। इसके लिए संस्था के अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। – डॉ. हरीश चंद्र पंत, सीएमओ

रैमजे अस्पताल में खाली बेड फांक रहे धूल
रैमजे अस्पताल का भवन खंडहर जैसा हो गया है। आलम यह है कि कभी मरीजों से फुल रहने वाला अस्पताल आज ए टाइप पीएचसी ही रह गया है जिसमें एक दिन में मुश्किल से चार से पांच मरीज आते हैं। अस्पताल की छत भी अब बारिश के पानी को रोकने में सक्षम नहीं है। इस कारण भवन में लगी लकड़ी भी सड़ने लगी है। बंद वार्ड में धूल फांक रहे बेड अपनी दुर्दशा बयां कर रहे हैं। अस्पताल के सीएमएस डॉ. गणेश धर्मसक्तू ने बताया कि शासन स्तर पर अस्पताल के सुधारीकरण के लिए पत्राचार किया गया है।

बीडी पांडे अस्पताल में बेड खिसकाकर पानी से बचाने की हो रही जुगत
बरसात शुरू होते ही बीडी पांडे अस्पताल की कमियां भी सामने आने लगी हैं। यहां अस्पताल के कर्मचारियों का ध्यान मरीजों के इलाज पर कम उन्हें बचाने पर अधिक है। बारिश का पानी छत से जच्चा-बच्चा वार्ड, लेबर और नर्सिंग ड्यूटी रूम में टपक रहा है। स्टाफ बेड खिसकाकर मरीजों को बारिश के पानी से बचा रहे हैं। इतना ही नहीं बाल्टियां लगाकर अस्पताल में पानी भरने से रोक रहे हैं। पीएमएस डॉ. टीके टम्टा ने बताया कि टपकती छत ठेकेदार को भी दिखाई गई है। जल्द ही छत का काम कराया जाएगा, ताकि वार्ड में पानी न टपके और मरीजों को दिक्कतों का सामना न करना पड़े।

भवाली सेनिटोरियम में धूल फांक रहीं मशीनें
लाखों मरीजों को इलाज दे चुका 378 बेड वाला भवाली टीबी सेनिटोरियम अस्पताल आज खुद बीमार है। एक ओर यहां कमरों में बंद मशीनें धूल फांक रही हैं तो अस्पताल के कई भवन जर्जर हो चुके हैं। आज सेनिटोरियम केवल 60 बेड का अस्पताल रह चुका है। आज भी देश के कई राज्यों से टीबी के गंभीर रोगी यहां इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। अस्पताल के प्रभारी पीएमएस डॉ. संजीव खर्कवाल ने बताया कि वर्ष 2004 में सेनिटोरियम को चेस्ट स्पेशलिटी अस्पताल बनाने की बात उठी थी। इसके लिए अस्पताल में सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड मशीन व सेंट्रल ऑर्गनाइज्ड मशीनें लगाई गईं, लेकिन आगे कोई प्रयास नहीं हुआ जिसके बाद सभी मशीनें खराब हो गईं। भवन खराब होने और पानी गिरने से एक्सरे मशीन भी खराब हो गई है। यहां प्रतिदिन 40 से 50 मरीज भर्ती रहते हैं।

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