टिहरी। उत्तराखंड को देवभूमि यानी देवी-देवताओं की धरा भी कहा जाता है। यहां प्रसिद्ध चारधाम, पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग के साथ ही कई सिद्धपीठ भी मौजूद हैं। इन्हीं में से एक सिद्धपीठ टिहरी में मौजूद सुरकंडा देवी मंदिर भी है। माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु माता के दरबार में आता है, मां उसकी झोली भर देती हैं। सुरकंडा देवी सिद्धपीठ की महिमा दूर-दूर तक है, लेकिन आज हम आपको सुरकंडा मंदिर के पास मौजूद जल धारा से अवगत कराएंगे, जिसे गंगाजल के समान माना जाता है।
टिहरी के सिरकुट पर्वत पर मौजूद है सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी का मंदिर। टिहरी जिले के कद्दूखाल में सिरकुट पर्वत पर सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी का मंदिर है। माना जाता है कि यहां पर माता सती का सिर का भाग गिरा था, जिस वजह से यह स्थान सिद्धपीठ कहलाया। इसका जिक्र स्कंद पुराण के केदारखंड में भी किया गया है। माना जाता है कि मां सुरकंडा देवी के दर्शन करने मात्र से ही भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं। यही वजह है कि खासकर नवरात्रि के मौके पर भक्तों का हुजूम उमड़ता है।
गंगाजल की तरह पत्रिव माना जाता है पानी। यह सिरकुट पर्वत काफी ऊंचाई पर मौजूद है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस सिरकुट पर्वत पर कहीं भी पानी नहीं है। सिर्फ मंदिर के कुछ ही दूरी पर नीचे की ओर एक पानी की जलधारा है। इस जलधारा को गंगा के समान माना जाता है। यही वजह है कि सुरकंडा मंदिर में गंगा दशहरा मनाया जाता है। इसी गंगा की जलधारा से माता सुरकंडा देवी का स्नान करवाया जाता है। साथ ही इसी से प्रसाद आदि भी बनाया जाता है।
सुरकंडा जलधारा की मान्यता। यहां के जलधारा को काफी पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि जब राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे तो उस समय भगवान शिव की जटाओं से गंगा की एक धारा निकलकर यहां गिरी थी। तब से इस जगह पर एक जल स्रोत निकलता है। जिसका पानी गंगाजल के समान माना जाता है, इसका वर्णन केदारखंड में भी किया गया है।
सुरकंडा देवी के दर्शन करने वाले भक्त ले जाते हैं जल। जो भी भक्त माता सुरकंडा देवी के दर्शन करने आता है, वो इस गंगा की जलधारा से बोतल में भरकर ले जाते हैं। जिसे पवित्र जल मानकर लोग घरों में रखते हैं। यहां का पानी गंगा जल के समान होता है।
सुरकंडा देवी मंदिर कैसे पहुंचे। सुरकंडा देवी मंदिर पहुंचने के लिए पहला रूट ऋषिकेश से होकर चंबा पहुंचना होता है, फिर चंबा से बस या छोटी गाड़ियों से कद्दूखाल पहुंच सकते हैं। दूसरा रास्ता देहरादून से मसूरी और धनोल्टी होते हुए कद्दूखाल का है। कद्दूखाल से सुरकंडा मंदिर तक पैदल या रोपवे पहुंच सकते हैं। कई लोग पैदल ही मां सुरकंडा के दरबार तक पहुंचते हैं।